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साहित्‍य के सृजनहार

लेखकगण, कवि सीधा भगवान से मुकाबिल हो जाते हैं जब उन‍को अपनी कल्‍पना शक्‍ति पर ग़रूर होने लगता है। लेखक को लगता है कि जब वो दुनिया का तसव्‍वुर करता है तो बेहद खूबसूरत दुनिया की तस्‍वीर ज़ेहन में उभरती है। लेकिन यह संसार, यह वास्‍तविक दुनिया यदि वास्‍तव में भगवान की कल्‍पना का नतीजा है तो उसे भगवान की ...

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