महिला विमर्श
कुछ फ़र्ज़
कुछ ज़िम्मेवारियां
कुर्बानियां, समर्पण, Adjustments
यही सब ?
नहीं.........
कुछ और भी तो है
जो अपनी बेटियों को बताना है।
हक
अधिकार
महिला के अस्तित्त्व को लेकर
चिंतित हुई है स्वयं महिला।
उसने जाना है अपने महत्व को।
अहसास कराया है अपने होने का।
मोहताज हुआ है मर्द, उसकी उपस्थिति का।
उस बिन विश्व बाज़ार का व्यापार अधूरा है
उसके होने से ही प्रकृति का सृष्टि चक्र पूरा है।
जब किसी शख़्स का कद बढ़ता है
तो तारीख़ उसके हाथ में आ जाती है।
जब दुनियां में वो
अपनी अलग पहचान बना पाता है तो
शख़्स नहीं शख्सियत हो जाता है।
आधुनिक युग की नई नारी
बदली नारी का बढ़ता हुआ कद
नया ज़माना
नया संघर्ष
कुछ संभावनाएं, कुछ दुविधाएं
कुछ अनसुलझे सवाल
कुछ उलझे हुए जवाब
गौरतलब हैं नारी समस्याएं
महिला स्वयं में शक्तिपुंज है,
पर उसे चाहिए संविधान में
मिले अधिकारों का ज्ञान।
उसे चाहिए उसकी योग्यता का सम्मान |
मर्द के बराबर स्थान,
उसकी हर ज़रूरत पर ध्यान देना होगा।
तभी समाज का कल्याण संभव है।
कुछ बातें महिला सशक्तिकरण के बारे में
दया, ममता, त्याग ही नहीं
साहस भी है, हिम्म्त भी है।
सीता ही नहीं रणचण्डी भी है।
चिन्तनीय ही नहीं
चर्चा के योग्य भी है
आज शक्तिस्वरूप महिला
साहित्य
लेखक धरती पर प्रकाश सतम्भ,
जो खराब से खराब मौसम में भी
बुझते नहीं, धुंधलाते नहीं,
खुद को जला कर रोशनी करते,
अंधेरे मिटाते, नई राह दिखाते,
उन्नति के शिखर पर ले जाते।
अक्षरों की दुनियां,
अलफाज़ों की दुनियां,
पढ़ने पढ़ाने के रिवाज़ों की दुनियां
आज इन्टरनेट युग में पढ़ने के रिवाज़ न छूटें
इसलिए आईए आपका पुस्तकों से
तारूफ कराएं।
साहित्य सागर
शब्द मटक मटक चलें तो कहानी,
नृत्य करें तो कविता,
शब्द तीर कमान बनें तो व्यंग्य,
शब्द बिहारी के सतसयै तो लघुकथा
अपने दर्द के आईने से
सारे जहां की पीड़ा का अवलोकन
समूची मानवता का दर्पण
समाज से पाया समाज को अर्पण।
 कमलजीत-सिंह  जर्नलिस्ट  जालंधर
डॉ.एस.पी.एस विर्कविर्क फर्टिलिटी सैंटरजालंधर
गीता डोगरा,संपादकपारसमणि एवं वरिष्ठ लेखिका, जालंधर
 अनुराधा शर्मा  जर्नलिस्ट  तलवाड़ा
 कमलजीत सांघा  समाजसेवक  तलवाड़ा
Feminism isn't about making women strong ..................
Women are already strong ..................
It's about changing the way the world perceives that strength'
- G. D Anderson
रिश्ते
धर्म एवं संस्कृति
कोई कहे सुख का आधार,
कोई माने दु:ख का अम्बार
बेशक मिलते लाखों दंश
इस से बढ़ता हमारा वंश,
रिश्तों के धागे में बंधे,
एक दूसरे के दु:ख सुख में रमे,
बढ़ता जाए यह काफिला।
बना रहे स्नेह सम्बन्ध।
फैलती रहे नेह सुगंध।
अमूल्य शब्दों के खज़ाने
जो कुदरत के शाश्वत मूल्य,
कुदरत के रहस्य,
कुदरत के सिद्धान्त,
कुदरत के नियम समझें और समझायें
उन नियमों पर चलना सिखाए
उन के अर्थ समझाएं
जीवन के दर्शन कराए
जीवन को सफल बनाए।
आप के लिए चुन के लाए।
जीवन रूपी रथ के सारथी की
मुख्य भूमिका निभाने वाले युगल
वास्तविक ज़िन्दगी में दु:ख, सुख भोगते हुए-
कितने ही कवियों की कविता में,
कितने ही लेखकों की कहानियों में
स्वयं उतर आते हैं।
कुछ कही कुछ अनकही
युगलों की कहानी----
पांच दरियाओं की धरती,
पांच दरियाओं का आब,
जहां कुदरत करे कमाल,
गिद्धे भंगड़े की धमाल,
पग-पग बिखरे रंगे जमाल,
सुनहरी कनके, सतरंगी पींघें,
इस धरती के जाये-जहां जाएं छा जाएं।
जिसका जग में नहीं जवाब-
उस धरती का नाम है- पंजाब....
भागमभाग, दौड़धूप, दु:ख तकलीफ
से चुराएं कुछ पल,
कुछ गुनगुनाएं, थिरकें,
सब कुछ भूल कर अपने में खो जाएं।
जीवन के चुनिंदा पलों में पर्व मनाएं,
उत्सव को कुछ यूं मनाएं- जीवन उत्सव हो जाए।
जीवन की सारी कड़वाहत भूल जाएं।
प्यार को वात्सल्य, इश्क, इबादत, स्नेह, मुहब्बत न जाने कितने नामों से जाना जाता है। प्रेम के जितने नाम हैं उतने ही रूप हैं। पर जो रूप सर्वमान्य है वो है पवित्र प्रेम जिसे इबादत का नाम दिया जाता है।
पर आज इसके मायने बदल रहे हैं, आज पवित्रता आहत है। प्यार अपने साथ प्रश्न चिन्ह लिए खड़ा है।
क्या हैं ..... आज प्रेम के मायने.....???
जीवन के नियम
मनुष्य के कर्त्तव्य
पहले जानो- फिर पहचानो
फिर अपनाओ
कर्म योगी बन जाओ
गुरू की शिक्षा-दीक्षा लेकर
जन्म जन्म से मुक्ति पाओ।
प्रभु को जानो- प्रभु के हो जाओ।
समाज एवं सामाजिक समस्याएं
उम्र के
बदलते दौर
युवावस्था की दस्तक
नए स्वपन, नई अंगड़ाइयां
तमाम रोकों, तमाम बंदिशों के साथ
अकांक्षाओं, अपेक्षाओं भरा सुहाना सफ़र
Our growing children-Teenagers
वक़्त के साथ दिन रात बदलते हैं,
मौसम बदलते हैं,
तन बदलते हैं, मन बदलते हैं।
जो वक़्त के साथ नहीं बदला
समझो वह इस दौर से पिछड़ गया,
और जो समझदारी के साथ
नहीं बदला वह भटक गया।
बदलाव की कहानी शब्दों की ज़ुबानी।
उपेक्षित महसूस करती बुज़ुर्ग पीढ़ी
हस्तक्षेप से हताहत नई पीढ़ी
तालमेल की कमी
Generation Gap
आज तेज़ रफ़तार ज़िन्दगी में बेहद व्यथित एवं असमंजस की स्थिति में हैं हमारे घर का आधार-हमारे बुजुर्ग।
प्रश्न कई हैं .....???
हर इंसान समान नहीं
सभी महिलाएं समान नहीं
सभी पुरुष व्यभचारी नहीं
बदले समय में बदलने के बावजूद
औरतों के लिए सहयोगी रवैये के बावजूद
पुरुष शंकाओं से मुक्त क्यों नहीं ?
पुरुष समस्याएं गौण क्यूं ?
कुछ सवाल, कुछ शिकायतें..........
भ्रष्टाचारी, बेरोजगारी,बाल मज़दूरी
वेश्यावृत्ति, कन्या भ्रूण हत्या,
मज़दूरों का, गरीबों का शोषण,
लड़कियों से छेड़छाड़, बलात्कार,
बढ़ती नशे की लत, प्रदूषण,
बाबाओं का जाल, दहेज, लिंगभेद,
जात-पात, कट्टरवाद, आतंकवाद--
मेरा हिन्दोस्तान आज इतना बीमार क्यूं है ?
मेरा हिन्दोस्तान आज इतना लाचार क्यूं है ?
बच्चे प्रत्येक देश का उज्जवल भविष्य होते हैं। यह बच्चे उस सारथी के समान होते हैं। जिन्होंने देश रूपी रथ को सही दिशा में अग्रसर करना होता है। परन्तु आज इस देश का भविष्य स्वयं शोषित हो रहा है भटक रहा है, पशोपेश में है।
आज चिन्तनीय है- बाल्यवस्था।
कही अनकही
कोई बात जो होंठों में दबी रह गई,
कोई अफसाना जो सुनाया न गया
एक कहानी जो दास्तां न बन पाई
कुछ कहना था पर कह नहीं पाए
या शायद वो सुन नहीं पाए
कितने ही अफसाने हैं जो सुनने हैं सुनाने हैं।
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