जो रात को सोते में देखते हो तुम, उन सपनों के कोई मायने ही नहीं होते। सपने तो दरअसल वो होते हैं जो सोने नहीं देते तुमको। सभी के सपने सच नहीं होते पर फिर भी सभी सपने सजाते तो ज़रूर हैं। अपनी हसरतों के, अपनी आकांक्षाओं के, अपनी मुरादों के सपने। यह सपने ही तो हैं जो जीने की चाह जगाते हैं। कहीं-कहीं ख़ाब खुद ही हक़ीक़त में आने को मुनकर होता है तो कहीं ख़ाब हक़ीक़त की ज़मीं तलाशने को बेक़रार।

हमारे ख़ाबों में हैं बेटियों के जन्म के जश्‍न की तसवीर, बेटियों की खिलखिलाहट, उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति। आज़ाद देश की आज़ाद फिज़ा में बेटियों की आज़ाद सांसें। उन्नति के मार्ग पर पांव बढ़ाती ऐसी बेटी की तसवीर जिसकी ज़िंदगी खुद उसकी अपनी हो, जिसकी राहें उसकी अपनी हों और जिसका हर सपना, हर ख़ाब उसका अपना हो।

यह ऐसा ख़्वाब है जो बन्द आंखों से बेपर्दा होने को बेक़रार है। आकांक्षाएं अपना वजूद तलाशती हैं। लम्बे रास्ते तय हुए हैं। इस संघर्ष की लम्बी दास्तां है। यदि हम पिछली सदी की शुरूआत में औरत की हालत देखें तो समझ पायेंगे। यह संघर्ष तब शुरू हुआ था जब इसकी सच्चाई का कोई ओर छोर भी नज़र नहीं आता था।

घुप्प अंधेरे में जब कहीं दूर तक भी रोशनी दिखाई नहीं देती। कहीं रास्ता नज़र नहीं आता, तभी धरती पर झिलमिलाती हैं हज़ारों जुगनुओं की कतारें। एकाएक तिलिस्मी ख़ाब धरती पर अपना रास्ता तलाश कर उस हलकी रोशनी में अपनी आंखें गड़ा लेता है। ढूंढ़ता है धरती पर अपने ख़ाबों के उतर आने की जगह। ख़ाब ज़मीं पर उतर आने को पनाह मांगते हैं। रोशनी झिलमिलाती तो ज़रूर है पर रास्ता नहीं दिखाती।

कुछ ऐसी ही दास्तां है औरत की आज़ादी की। अंधेरे में अपने ख़ाबों की जगह तलाशती औरत ने बहुत कुछ पाया है और अभी भी अपने स्वाभिमान की तलाश जारी है।

जब भी हम आज़ाद औरत की तसवीर आंखों में बनाते हैं तो हज़ारों सवाल ज़ेहन में उभरते हैं। उसकी तमाम मुश्किलों को देखते हुए लगता है कि कहीं यह तिलिस्मी ख़ाब ही तो नहीं। क्या हम बेबुनियाद सपने जगाकर एक दूसरे को भ्रम में तो नहीं डाल रहीं। लेकिन मन कहता है कि नहीं। यह ख़ाब जमीं पर उतरने को बेक़रार हैं। यह सपना ज़रूर सच होगा। औरत अपने आज़ाद व्यक्‍तित्‍व को पहचान पाएगी।

पिछले दिनों कुछ मजबूरियों, लाचारियों में भी आशा की जलती हुई चिंगारी नज़र आई। कई जगह दहेज़ के लालचियों को पिटते हुए देखा गया। आज इस बात को मां-बाप ने नकार दिया है कि यदि लड़की की शादी टूट गई तो उनकी इज़्ज़त को आंच आएगी। मैं उन लड़कियों के घरवालों को ढेरों मुबारकबाद देना चाहती हूं। आज मां-बाप लड़कियों को अपनी झूठी इज़्ज़त की बलि चढ़ाना गवारा नहीं करते। शादी के नाम पर क़ैद लड़कियों को अपने घर वापिस बुलाने का वास्ता देते हुए भी मां-बाप देखे गए हैं। एक बाबुल की ज़ुबानी- “मैंने अपनी बेटी को यही सीख दी थी कि जिस घर में तेरी डोली जाए वहीं से तेरी अर्थी उठे। मैंने यही चाहा था और मेरी इस सीख ने मेरी बच्ची की दुगर्ति कर दी। अचानक मुझे मेरी भूल का अहसास हुआ। मैं अपनी बेटी को स्वाभिमान की सीख देना भूल गया। मैं भूल गया कि जब-जब उसके स्वाभिमान को चोट लगेगी मेरा सिर नीचा होगा। अगर मुझे उसका ससुराल ढूंढ़ने में ग़लती लगी तो मेरी इस ग़लती की सज़ा वो क्यों भुगते। जिस घर में उसे बहू का नहीं केवल दासी का दर्जा मिले, वहां वो मेरी सीख को क्यों कर माने। मैं आज हर मां-बाप से कहना चाहता हूं कि यदि आपकी बेटी दासी बन कर रहती है तो क्या उस वक़्त आपकी इज़्ज़त को कोई आंच नहीं आती। निभाने की सीख देते हुए भूल न जाना आपकी नाज़ों पली लाड़ली कहीं ग़लत सीख तो नहीं ले रही, कहीं वो ज़िंदगी के मायने समझने तो नहीं भूल गई। कहीं तमाम उम्र उसे शर्मिंदगी में जीने को आपने मजबूर तो नहीं कर दिया।’’ जहां कल लड़कियों की वापसी के रास्ते बंद थे, लड़की के पास मरने के सिवा कोई चारा नहीं होता था, आज मां-बाप उसके साथ खड़े नज़र आते हैं। उनके ज़मीर ने उनको सच्चाई के रास्ते दिखाए हैं। मां-बाप की यह सोच लड़कियों की क़िस्मत ज़रूर बदलेगी, उनको मज़बूती ज़रूर दिलाएगी। मां-बाप की कमज़ोरी ही उनको तिल-तिल मरने को मजबूर करती थी। वो दिन दूर नहीं जब लड़कियों के ससुराल वाले प्रताड़ित करने के नाम से भी डरेंगे।

कानून ने लड़कियों को हक़ दिया है कि यदि कभी ग़लती से शादी के नाम पर वो ग़लत हाथों में पड़ जाएं तो उनसे छुटकारा ले सकती हैं। लेकिन उनको अपने से एक वादा भी करना होगा कि उनसे छुटकारे का मतलब है पूरी तरह छुटकारा। उम्र भर का दु:ख मन में पाल कर जीना है तो कानून द्वारा दी इस सहूलत, इस सुविधा का क्या फ़ायदा। कानून आपके साथ है। मां-बाप और आपके सच्चे हमदर्द आपके साथ होंगे। कुछ घटिया सोच के लोग यदि बुरा बोल भी लेंगे तो उनके आपकी ज़िंदगी में क्या मायने। बुरे ख़ाब की तरह इन बातों को भुलाकर नई ज़िंदगी की शुरूआत ज़ोर-शोर से करना। ताकि आप हर लड़की के लिए ताक़त बन सको, एक ताक़तवर उदाहरण के रूप में।

हमारा ख़ाब अपनी ज़मीं तलाश चुका है। अभी उसे फलना-फूलना है। इस बार तो पंजाब में लड़कियों की लोहड़ी भी मनाई गई है। अब घरों के आंगन में जब भी कोई कली महकेगी तो वो खिलखिलाएगी। उसकी आकांक्षाएं अपना वजूद तलाश पाएंगी।
रोज़ नए ख़ाब सजाने की आदत-सी हो गई है मेरी। मेरा हर ख़ाब आप सबके आंगन में महकेगा ज़रूर।

-सिमरन

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