नई सदी, नए वर्ष की नूतन भोर में ज़िन्दगियों के नवीन पृष्ठों पर बहुत कुछ नया लिखा जाएगा। कई नए इतिहास रचे जाएंगे, कई नई कहानियां बनेंगी, नई खोजें होंगी। हर व्यक्ति अपने ख़ाली पृष्ठों में नए रंग भरेगा। लेकिन इन पृष्ठों पर बहुत कुछ तो खुद-ब-खुद ही लिखा चला जाता है। हमारे अपने लिखने के लिए तो बहुत कम ही रह जाता है। कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि उसकी ज़िन्दगी का बहुत हिस्सा तो मजबूरियों और लाचारियों में ही गुज़र गया। अब शेष पर वो क्या लिखता। लेकिन रचने वाले तो पलों में इतिहास रच जाते हैं। आपने कभी ध्यान दिया है कि कई बार पत्र भरने पर उसकी एक तरफ़ करके बारीक-बारीक अक्षरों में कुछ लिखना पड़ता है जो कि पहले पत्र लिखते वक़्त ध्यान में ही नहीं रहा होता। लेकिन वो थोड़ी-सी जगह पर तक़रीबन ठूंस कर लिखे गए शब्द बाक़ी सारे पत्र से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। शायद हम में से बहुत से पीछे बीत चुकी बहुत-सी ज़िन्दगी में कुछ ख़ास नहीं कर पाए। क्यों न हम इस नई सुबह में नए सिरे से नई कोशिश करें। कुछ ऐसा कि लोग करें आरज़ू, कुछ ऐसा कि ज़माना मिसाल दे।
“नए दौर में लिखेंगे हम मिल कर नई कहानी।”
लेकिन नया लिखते वक़्त हमें पुरानी बातें बिल्कुल ही भूल नहीं जानी हैं। हमें अपनी की हुई ग़लतियों से सीखना है और अपनी मजबूरियों को याद करते हुए नए हौसले बनाने हैं न कि पश्चाताप में बाक़ी वक़्त भी गंवा देना है। हमारे पास जो वक़्त बच गया है उसी में कुछ कर दिखाना है। नए निशान बनाने हैं। हमने रुकना नहीं है अभी हमने अपनी मंज़िल को पाना है।
लेकिन अपनी मंज़िल पाने के लिए, आगे बढ़ने के लिए दूसरों के रास्ते नहीं रोकने हैं। जो अपनी मंज़िल को पा गए वो जाने जाएंगे। लेकिन उस मंज़िल को दिलाने में जिन्होंने क़ुर्बानी दी, पूजे वही जाएंगे। इतिहास वही कहलाएंगे।
-सिमरन