-दलबीर चेतन
नीचे जंगल ही जंगल था तीनों तरफ़ से पहाड़ों से घिरा हुआ जंगल। समय किसी हथेली से पानी की तरह फिसल रहा था और उसका जहाज़ पल-पल हवा के समुंदर में डूब रहा था। बेरोमीटर की सूई लगातार पीछे को आ रही थी। फ्लाइट लेफ्टिनेंट मनिंदर सिंह विर्क की पूरी कोशिश थी कि जहाज़ इस घने जंगल के ऊपर से निकल जाए। जहाज़ का इंजन सीज़ हो चुका था और वो ग्लाइड् करता हुआ आसाम के इन घने जंगलों में धंस जाना चाहता था। जब जहाज़ की रफ़्तार और ऊंचाई बहुत ही कम होनी शुरू हो गई तो उसने एअॅर ट्रैॅफ़िक कंट्रोल को सूचित करते हुए जहाज़ छोड़ने की इजाज़त मांगी, इजाज़त मिलते ही उसने आपातकाल सीट के हैंडल को प्रैॅस किया। आपातकाल सीट जहाज़ से निकल के ऊपर को गई और फिर बड़ी ही तेज़ी से नीचे को आने लगी। एक ख़ास ऊंचाई पर ऑटोमेटिक गॅन चली और उसके साथ ही विर्क अपनी सीट से अलग हो गया। अब उसकी अपनी पैराशूट खुल चुकी थी और वो उसके साथ नीचे को आ रहा था।
जब उसने नीचे देखा तो नीचे चारों तरफ़ ही जैसे जंगल की चादर फैली हुई थी। उसे लगा जैसे आसमान से गिर कर खजूर में अटकने वाली बात आज सच साबित होनी हो। ये सोच कर उसको सामने दिख रही भयानकता पर भी हंसी आ गयी। उसके पास अब और कोई चारा ही नहीं था। जंगल के वृक्षों को छूने से पहले उसने बीती ज़िन्दगी का स्मरण किया और अपनी आंखे मूंद लीं। आकाश मे उड़ते हुए भी जिस ज़मीन का आश्रय उसके लिए सब से बड़ा होता था आज उस को उसी से भय आ रहा था।
वृक्षों की कुछ टहनियां उसके पैरों के नीचे टूटी और कोई खूंटी उसका फ़्लाइंग सूट फाड़ कर उसकी बग़ल में घुस गयी। वृक्षों में अटकते फिसलते उसके पांव ज़मीन पर लगे। पैराशूट की तनियों से उसका सारा शरीर खींचा पड़ा था। उसने ऊपर को देखा, कई जगह से फटी हुई पैराशूट अभी भी वृक्षों में अटकी हुई थी। उसने अपने आप को पैराशूट की तनियों से मुक्त किया और किसी वृक्ष का आश्रय लेते हुए अपने दर्द से कांप रहे शरीर को सीधा किया, सिर से हेल्मेट उतारा, अपने बूटों के फीतों को ढीला किया और अपने शरीर को टटोल के देखने लगा।
जंगल में भयानक शोर था। दरिंदे जानवर अवारा हुए फिर रहे थे और वो जैसे किसी तीखी सलाखों वाली क़ैद में आ पड़ा था। उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि जंगल भी इतने घने होते हैं। तीनों तरफ़ से पहाड़ों से घिरे जंगल में घने वृक्षों से जैसे दिन में ही रात पसरी हुई थी। अस्त होते सूरज की किरण भी ज़मीन तक नहीं पहुंच रही थी। उसे तो इस बात पर ही हैरानी थी कि वो ज़मीन तक पहुंच कैसे गया था। ये विशाल कुदरत की कौन-सी क़ैद थी कि जिसमें मनाही के हुक्म भी साथ में ही जारी हो गए थे।
उसके गिरने के बाद थोड़ी देर में ही सर्च पार्टी भी पहुंच गयी। उसे हेलीकाॅप्टर तो नहीं नज़र आ रहा था पर आवाज़ सुनाई दे रही थी। उसने अंदाज़ा लगाया कि उसकी पैराशूट का नारंगी रंग हेलीकॉप्टर के लिए मददगार साबित हो रहा था।
उसने सर्वाइवल पैॅक खोला सिग्नल पिस्टल निकाल कर पीले रंग का कारतूस हेलीकॉप्टर की आवाज़ की तरफ़ दाग़ दिया। वृक्षों से निकल कर पीले रंग की चादर जैसे आसमान में फैल गयी। कुछ टहनियां उसके नीचे गिरने की वजह से टूटी थी, कुछ पत्ते रंगें कारतूस के छर्रों ने झाड़ दिए। उसे लगा जैसे उसके लिए आसमान में एक खिड़की-सी बन गयी और उस खिड़की से उसको उड़ रहे हेलीकॉप्टर का कोई हिस्सा नज़र आ जाता।
विर्क ने यह भी सोचा कि वह किसी तरह वृक्ष की सब से ऊपर की टहनी पर खड़ा हो कर हाथ हिलाए और हेलीकाॅप्टर से लटक रही सीढ़ी को पकड़ वहां से उड़ता बने पर ऐसा संभव नहीं था। उसके शरीर का दर्द पल-पल बढ़ रहा था। उसने अपनी बग़ल के ज़ख़्म को अपनी पगड़ी से बांध तो दिया था पर खून अभी भी बह रहा था। उसका दायां पैर एकदम सुन्न हो गया था। उसके होंठ तो वैसे ही सूखे पड़े थे और गला भी खुश्क हो रहा था और पानी की कहीं से भी कोई आशा नहीं थी। उसे पता था कि हेलीकॉप्टर किसी तरह से भी मददगार नहीं हो सकता था पर जब तक उसकी आवाज़ आ रही थी वो विर्क को एक ढारस-सी दे रही थी अब तो वैसी कोई भी आवाज़ आस-पास नहीं थी। सर्च पार्टी भी शायद निराश हो कर वापिस चली गयी थी। विर्क अपने आप को रिझाने के लिए ‘सर्वाइवल पैॅक’ की चीज़ें निकाल कर देखने लगा। लंबा कमानी वाला चाकू निकाल कर उसने अपनी बग़ल में रख लिया। इस भयानक जंगल में यही एक हथियार उसके पास था। अपने सूख रहे मुंह में उसने पैॅक में से निकाल कर एक चॉकलेट का टुकड़ा डाला और पॅैक से निकली माचिस को उसने संभाल कर अपने फ्लाईंग सूट की ऊपर वाली जेब में डाल लिया।
हेलीकॉप्टर की आवाज़ फिर सुनाई देने लगी और उसकी टूट रही आशा जैसे फिर ज़िन्दा हो गयी। आवाज़ कितनी ही देर तक उसके सिर पर मंडराती रही। ‘‘हे……आ।’’ उसने अपना दायां हाथ उठा कर उसको आवाज़ दी उसको पता था कि उसकी आवाज़ कहीं नहीं पहुंचेगी पर इस से उसको अजीब-सा सकून मिला।
‘कड़-कड़….’ ‘तड़क-तड़क…..’ खड़क करके कुछ टहनियां टूटी और जंगल में शोर और ऊंचा हो गया। हेलीकॉप्टर से कुछ फेंका जा रहा था। एक किट बैग उसके दार्इं तरफ़ कुछ ही दूरी पर गिरा, एक और पंद्रह बीस गज़ दूर था और एक अभी तक टहनियों में ही अटका पड़ा था। उसे यक़ीन हो गया कि एअर बस वालों ने आज उस तक पहुंचने को लेकर हार मान ली है और अगले यत्नों तक उस तक जीते रहने के लिए सारी चीज़ें मुहैया करवा दी हैं, जिसमें से ज़्यादातर अभी तक भी उसकी पहुंच से बाहर थी। विर्क का दिल किया कि उसके पास वाली किट पानी से भरी हो, तो वो एक सांस में ही इतना पानी पी सकता था। वो पागलों की तरह अपने जिस्म को घसीटता हुआ किट तक पहुंचा। किट को वज़नदार करने के लिए उसमें पत्थर डाले हुए थे। किट में से एक बंदूक और स्टेनगन निकली। एक लोहे के डिब्बे में कितने सारे कारतूस और भरे हुए मॅग्ज़ीन थे। उसे ये सारा कुछ बड़ा ही फ़िजूल लगा। जंगल में ज़िंदगी की हिफ़ाज़त के लिए तो ये सब कुछ भी ज़रूरी था, परन्तु उस से भी ज़रूरी था ज़िंदगी का क़ायम रहना और उसको लगा कि ज़िंदगी तो जैसे ख़त्म हो रहे तेल के दीये की तरह हर पल बुझ रही थी। उसकी बग़ल के ज़ख़्म का खून बंद नहीं हुआ था।
उसका ब्ाल्ॅड ग्रुप बड़ा रेअॅर था और अब यही रेअॅर ब्ाल्ॅड ग्रुप बेवजह बह रहा था। बह रहे खून की वजह से उसका गला और भी खुश्क हो गया। वो बहते खून की दो-चार बूंदें अपने सूख रहे होंठों पर भी लगा चुका था परन्तु इस वजह से उसके होंठ और भी खुश्क हो गये थे। उसने सोचा कि सर्वाइवल पॅैक में और कितनी चीज़ें थी परन्तु किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि जीने के लिए पानी की कितनी ज़रूरत है। विर्क अंदाज़ा लगाने लगा कि बाकी की किट में और क्या हो सकता है? उसे यक़ीन था कि एक में तो ज़रूर ही खाने-पीने का सामान होगा और दूसरी में शायद ठण्ड से बचने के लिए कंबल वग़ैरा हों। उसने वृक्षों में अटकी हुई किट की तरफ़ चामत्कारिक आशा से देखा और चाहा कि इसमें से कोई चश्मा फूट पड़े। यह सोच कर ही उसके हाथ जुड़ कर उसके होंठों को आ लगे जैसे सचमुच ही कोई पानी की धार बह रही हो।
विर्क ने किट की तरफ़ देख कर कुछ सोचा और किट का निशाना ले कर एक-एक करके गोलियां दाग़ने लगा। रात होने के कारण किट थोड़ी कम नज़र आ रही थी परन्तु वो फिर भी उसकी तरफ़ गोलियां दाग़ता रहा। कभी कोई आवाज़ होती तो उसको लगता जैसे किट नीचे की तरफ़ सरक रही हो। गोलियों की आवाज़ से पक्षियों और जानवरों का शोर और भी बढ़ गया जिस से जंगल और भी भयानक लगने लगा। इस आशा के साथ कि इस किट में पानी ज़रूर होगा उसकी प्यास पल-पल और भी बढ़ रही थी। उसको यह भी चिंता थी कि अगर कोई गोली पानी की केनी को चीर कर चली गयी तो सारा पानी व्यर्थ ही बह जाएगा यह सोच कर वह और भी सावधानी से गोलियां दाग़ने लगा। एक गोली के साथ वो किट उससे दस गज़ दूर आ गिरी। वो अपने ज़ख़्मों की परवाह किए बग़ैर जल्दी से उसकी तरफ़ लपका। किट के पास पहुंच कर उसने पागलों की तरह किट को टटोला। उसमें पानी जैसा कुछ छलका तो उसकी टूट रही सांसों में जैसे जान आई। उसने किट को चाकू से खोला। किट में कुछ पत्थर थे कुछ कंबल और कंबलों के बीच में पानी की छोटी केनी। उसके सूखे हुए होंठों पर एक मुस्कराहट फैली। उसने खोल कर वो केनी मुंह को लगा ली। पहला घूंट भरते ही उस को पता चल गया कि यह पानी नहीं था परन्तु पानी जैसा कुछ तो था। वो उस को पानी की तरह ही पीता रहा। सूखे गले और भूखे पेट में जा रही ब्रांडी के नतीजे से वो भली-भान्ति परिचित था। बाद की भटकन उस से बर्दाशत नहीं होनी थी। पर फिर भी वो आधे से ज़्यादा ब्रांडी की बोतल पी गया। कुछ लगातार बह रहे खून के कारण और कुछ ब्रांडी के कारण उसका गला और भी खुश्क हो गया था। वो खुले मुंह से हौंक रहा था। उसकी गर्म सांसें पल-पल और छोटी होती जा रही थी। उसके पूरे शरीर में जैसे जान ही बाकी नहीं थी। हमेशा बुलंद रहने वाला विर्क बेबस-सा हुआ जंगल के अंधेरे में बैठा था।
हर रोज़ खतरों से जूझते हुए उसने अपने आप को बहुत मज़बूत कर लिया था। कभी एक मौत ने उसे उठने लायक़ नहीं छोड़ा था। वो जिसको उसने ज़िंदगी से भी बढक़र प्यार किया था जब वो एक हादसे में मारी गयी तो उसको लगा कि शायद वो जी नहीं सकेगा जैसे उसके बिना जीना कोई जीना नहीं होगा….पर फिर भी वो जीया था। परन्तु उस हादसे के बाद उसका स्वभाव बड़ा ही अजीब-सा हो गया और ज़िंदगी के प्रति उसका नज़रिया ही बदल गया। अब वो जिसको भी प्यार करता उसकी काल्पनिक मौत का तसव्वुर कर के वो अपने आप को मज़बूत करता रहता। उसका अपनी मां के साथ भी बहुत प्यार था परन्तु उसके मरने से पहले ही उसने अपने आप को मौत के लिए तैयार कर लिया था। ऐसे ही कई बार उसने अपनी मौत की भी कल्पना की थी। पर ऐसी मौत के बारे में नहीं सोचा था जैसी सामने दिख रही थी। आज तो उसको ऐसे लग रहा था जैसे वो अपने आप को अंतिम सलाम करने के लिए धीरे-धीरे पिघल रहा हो।
उसको एहसास हुआ कि उसका जिन्दा रहने के लिए तीसरी किट तक पहुंचना कितना ज़रूरी था। अंधेरा इतना बढ़ गया था कि तीसरी किट अब दिखाई भी नहीं दे रही थी। उसने अपने आस-पास से सूखे पत्ते इक्ट्ठे करके आग जलाई। आग की रोशनी ने जंगल की भयानकता को कुछ कम किया। उसको थोड़ी दूर पड़ी हुई किट भी नज़र आई। ब्रांडी के प्रभाव के कारण उसके ठण्डे होते शरीर में कुछ जान आई। परन्तु पांव और बग़ल के ज़ख़्म की पीड़ा के कारण उसको किट तक पहुंचना बहुत मुश्किल लग रहा था पर ये था बड़ा ज़रूरी। उसने अपने जूतों के फीतों को बांधा। फीते बांधते उसका हाथ खून से रंग गया। उसके ज़ख़्म का खून फ्लाइंग सूट से होता हुआ उसके जूतों तक आ पहुंचा था। इसकी परवाह न करते हुए उसने तीसरी किट की तरफ़ रेंगना शुरू कर दिया। पहले झटके के साथ ही उसके ज़ख़्म में खिंचाव महसूस हुआ और उसकी जैसे जान ही निकल गयी परन्तु फिर भी वो अपने शरीर को ज़ख़्मी सांप की तरह खींचता रहा। किट कोई ज़्यादा दूर नहीं थी लेकिन उसका शरीर जैसे बिल्कुल ही साथ छोड़ चुका था। उसने सोचा अगर उसको पानी के कुछ घूंट ही मिल जाएं तो वो किट तक कुछ ही कदमों में पहुंच सकता था। किट के पास पहुंच कर उसे लगा जैसे उसने मौत को मात दे दी हो। अपनी चढ़ी हुई सांसों के साथ वो पागलों की तरह हंसा। एक विजयी की तरह उसने किट का मुंह खोला। किट में बहुत कुछ था फ्राई सब्ज़ी, अंडे, ब्रेड, दूध और पानी से भरी बड़ी केनी। उसने पानी की केनी को मुंह लगाया और फिर लगाए ही रखा।
उसको अपना फ़ौजी चाचा याद आया जो अकसर दूसरे विश्व युद्ध में दिखाए जौहरों और पेश आई मुश्किलों की कहानियां बड़े शौक़ से सुनाया करता था। कई बार तो विर्क को लगता था कि जैसे वो झूठ बोल रहा हो। एक साधारण आदमी यह कैसे कर सकता है? उसकी समझ जवाब दे जाती। वो हैरान हुआ कहता, ‘‘जाने दे चाचा भला ऐसा कैसे हो सकता है?’’ उसका चाचा हंसता हुआ कहता, ‘‘तेरे को नहीं पता, बंदा बड़ी कुत्ती चीज़ है, अगर यह अपनी आई पर आ जाए तो इश्वर को भी ज़मीन में गाड़ सकता है।’’ कुत्ती चीज़ उसके चाचा का तकिया कलाम था। उसने जिस चीज़ की भी महानता का ब्यान करना होता वो उसको कुत्ती चीज़ ही कहता। उसकी नज़र में बीवी, बच्चे, भगत सिंह, दलीप कुमार सब कुत्ती चीज़ें ही थीं। वो अपने चाचे की बात याद करके मुस्कुराया। पानी से उसका पेट भर चुका था पर फिर भी छोटे-छोटे घूंट भरता वो अपने चाचा को याद करता रहा। पेट भर ठण्डा पानी पीने के बाद उसे कंपकंपी आई। ठण्ड से उसका शरीर सुन्न होने लगा। उसको लगा उसके ज़ख़्म का दर्द जैसे फिर बढ़ गया हो। यह सब कुछ पहले भी था लेकिन उसकी प्यास के मुक़ाबले शायद यह बहुत कम था इसलिए उसने इस तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था।
विर्क ने अपने इर्द-गिर्द से कुछ पत्ते इक्ट्ठे कर के आग जलाई लेकिन यह चंद पलों का प्रबन्ध था। सारी रात ऐसे आग के सहारे नहीं काटी जा सकती थी। आग की गर्मी से उसके जिस्म में कुछ गर्माहट आई। ज़्यादा पानी पीने के कारण मर चुकी भूख फिर चमकने लगी।
उसने ब्रेड खाई और पानी पीया पर आग के जलते हुए भी उसका शरीर सर्दी से कांपने लगा। आख़िरी किट से चलते वक़्त कंबल और ब्रांडी साथ ले के चलना चाहता था। पर कंबल वो उठा न सका और ब्रांडी की बोतल बड़ी होने की वजह से उसकी जेब में नहीं आई। अब दोनों चीज़ों की कमी उसे बुरी तरह से खटक रही थी। थोड़ी देर बाद ही विर्क को लगा कि वो कंबलों के बिना ज़्यादा देर तक रात नहीं काट सकता। अपने आस-पास के पत्ते उसने जला कर ख़त्म कर दिए थे। उसने अपनी घड़ी की तरफ़ देखा। रात अभी बाकी थी। कंबलों वाली किट तक पहुंचने का रास्ता ज़्यादा नहीं था पर अपने बेजान शरीर के साथ वहां तक पहुंचना उस को नामुमकिन लगता था। जैसे-जैसे उसका शरीर ठण्ड से सुन्न हो रहा था वैसे-वैसे ही उसको कंबलों की ज़रूरत ज़्यादा महसूस हो रही थी परन्तु उतना ही उसका वहां तक पहुंच सकना असंभव लग रहा था। वह एक पल अपने आप को मज़बूत करता पर उसका ठण्डा पड़ा शरीर उसका साथ न देता।
अभी वो इसी उधेड़बुन में था कि उसको कोई आवाज़ अपनी तरफ़ आती हुई सुनाई दी। वह सावधान हो गया। कोई हिंसक जानवर चिंघाड़ता हुआ उसकी तरफ़ बढ़ रहा था। उसे लगा कि उसने पानी और कंबलों के बिना तो कुछ पल निकाल लिए पर अब के कुछ पल सिर्फ़ मोहलत की तरह थे। उसे मौत अपने सिर पर खड़ी महसूस हो रही थी। वो उड़ कर अपने पहले अड्डे पर पहुंच जाना चाहता था, जहां हिफ़ाज़त के लिए हथियार मौजूद थे। उसका मन किया कि वो आग को और ऊंचा कर दे। उसने सुना हुआ था कि जंगली जानवर आग से डर जाते हैं। पर अगर ये आग से डरने वाला जानवर होता तो इस तरफ़ आता ही क्यों? उसको लगा कि यह जानवर बहुत नज़दीक था और शायद हथियारों तक पहुंचने ही न दे।
ख़तरा बेशक सिर के ऊपर था लेकिन उसे पानी के बिना एक कदम भी उठाना वाजिब न लगा। उसने दूध की छोटी बोतल को खाली किया और उसमें पानी भर के फ़्लाइंग सूट की लंबी जेब में डाल लिया। पहले स्थान पर देखा तो वहां सिर्फ कुछ चिंगारियों की मद्धम-सी रोशनी ही बाकी थी। उसने अपने सारे वजूद को इक्ट्ठा किया और अपने पहले स्थान की तरफ़ बढ़ने लगा। उसको अपने शरीर पर हैरानी हुई। उसके बेजान शरीर में पता नहीं यह शक्ति कहां से आ गयी उसकी रफ़्तार पहले से भी तेज़ थी। अभी वह थोड़ी दूर ही गया था तभी उसे लगा कि वो जानवर उसके बिल्कुल ही क़रीब था। वो और भी तेज़ी से रेंगने लगा। वो अपने ठिकाने से थोड़ी दूर था तभी उसे उस जानवर की सांसों की आवाज़ भी सुनाई देने लगी। वो पहले थोड़ा घबराया पर फिर अपने आप को संभालते हुए हर अनहोनी के लिए तैयार कर लिया। लंबा कमानी वाला चाकू निकाल कर अपने हाथ में पकड़ लिया फिर और भी तेज़ी से रेंगने लगा। उसे अपने ज़ख़्म का दर्द बिल्कुल ही भूल चुका था।
पहले ठिकाने पर पहुंच कर उसने जल्दी से राइफ़ल को टटोल कर ढूंढा। जितनी जल्दी भी हो सकता था मैगज़ीन लोड किया और राइफ़ल को काक करके बड़ा चौकन्ना हो कर आवाज़ सुनने लगा आवाज़ थोड़ी और दूर महसूस करते हुए उसने स्टेनगन भी लोड कर ली और बाकी के भरे राइफ़ल और मैगज़ीन उसने अपनी बग़ल में रख कर एक वृक्ष की आड़ में पूरा मोर्चा संभाल लिया। जानवर के पैरों की आवाज़ लगातार उसकी तरफ़ बढ़ रही थी लेकिन वो गोली चलाने में थोड़ा संकोच कर रहा था। अंधेरे में गोली सही जगह न लगने की वजह से जानवर उसके लिए और भी ख़तरा बन सकता था। सुलग रहे अंगारों की रोशनी इतनी नहीं थी कि वो किसी आने वाली चीज़ को देख सके। आवाज़ और पास आई तो उसने गोलियों की बौछार उसकी तरफ़ कर दी। उसको पता था कि ज़्यादातर गोलियां वृक्षों के तनों में ही लग कर रह जाएंगी इसलिए एक-आधी गोली का कोई अर्थ ही नहीं था। वो लगातार गोलियां चलाता रहा। जानवर ज़ोर से गर्जा, पता नहीं गोली लगने की वजह से या गुस्से से। ये पल बहुत ख़तरनाक हो सकते थे। आवाज़ भी बिल्कुल क़रीब से थी। उसने स्टेनगन उठाई और गोलियों की बरसात कर दी। जानवर की आवाज़ आई लेकिन ये गर्जने की आवाज़ नहीं थी। यह दर्द से कराहने की आवाज़ थी। उसने ध्यान से सुना, आगे बढ़ रहे कदमों की आहट बंद हो गयी थी। सारे जंगल में पक्षियों और जानवरों की कुलकुलाहट सुन रही थी। वो थोड़ी देर तक उसी तरह बैठा कदमों की आहट सुनता रहा और जब उसने खुद को ख़तरे से खाली समझा तो फिर आग जलाई। उसे नज़दीक ही कोई जानवर ढेर हुआ नज़र आया। उसने रोशनी में निशाना लगाया और फिर गोली दाग़ दी, पर वो जानवर गोली लगने से पहले ही ठण्डा हो चुका था।
उसे एक बार फिर ठण्ड का एहसास हुआ। ठण्ड के साथ ही उसके ज़ख़्म के दर्द ने भी ज़ोर पकड़ा। कंबल उस से कुछ ही दूरी पर थे लेकिन उसे लग रहा था कि अपने टूटे हुए शरीर को इधर-उधर घसीटना उस के बस में नहीं था। पर उसे यह भी मालूम था कि सारी रात ऐसे ठण्ड में बैठ कर नहीं काटी जा सकती, विर्क ने कंबलों तक पहुंचने के लिए एक और कोशिश करने का मन बना लिया। हथियारों को साथ में ले कर चलना उस के बस में नहीं था, परन्तु हथियारों के बिना एक पल भी सोचना उसके प्राणों के लिए ख़तरा था। कुछ सोच के उसने अपने ज़ख़्म पर बंधा कपड़ा खोला और स्टेनगन को कस कर अपनी पीठ के साथ बांध लिया। भरे हुए मैगज़ीन को अपनी दार्इं जेब में डाला उसने कंबलों की तरफ़ दोनों हाथों और दाएं घुटने के बल रेंगना शुरू कर दिया। कई बार रास्ते में सांस ले कर वह कंबलों तक पहुंच गया। वहां पहुंच कर उसको लगा जैसे वो सही जगह पर पहुंच गया हो। उसने अपनी पीठ पर बंधा कपड़ा खोला और स्टेनगन को वृक्ष के तने के साथ लगा दिया। आस-पास से पत्ते इक्ट्ठे करके उसने आग जलाई और ठण्ड से कांप रहे अपने शरीर को गर्माहट पहुंचाने लगा।
लगातार खिंचाव पड़ने के कारण उसके ज़ख़्म को भी टीस पड़ने लगी। उसने ब्रांडी से अपने ज़ख़्म को साफ़ किया और उस पर कपड़ा बांध दिया। ब्रांडी के केन में पानी मिला कर उस ने कुछ घूंट भरे। एक के साथ दूसरा कंबल जोड़ कर गिनती के पूरे आठ कंबल थे। उसके ठण्ड से कांप रहे शरीर के लिए तो जैसे यह भी कम थे पर इतने से गुज़ारा हो सकता था। किट को वृक्ष के तने के साथ लगाकर उसने तकिया बना लिया। उसने एक ही सांस में बची ब्रांडी भी पी ली। भरी हुई स्टेनगन को उस ने अपनी छाती पर रख लिया। ब्रांडी से विर्क का ध्वस्त हुआ शरीर कुछ चहका। उसकी बुझी और थकी हुई आंखों में एक चमक आई। उसे अपने शरीर की असीम शक्ति पर गर्व महसूस हुआ और वो अपने चाचा को याद करने लगा। उसको याद करके वो और गौरवान्वित महसूस करने लगा।
उसने स्टेनगन का बैरल आसमान की तरफ़ करते हुए घोड़ा दबा दिया। टीं….. करती हुई गोली वृक्षों के पत्तों को छलनी कर गयी। उसे लगा जैसे वो इस जंगल का सरदार था। उसने स्टेनगन को फिर अपनी छाती पर रख लिया। ‘वाक़ई में चाचा, तू सही कहता था, बंदा बड़ी….. ’और फिर अपने चाचा का तकिया कलाम ‘‘कुत्ती चीज़’’ कहते उसको हंसी आ गई। वो कितनी ही देर तक जंगल के अंधेरे में बैठा बावलों की तरह हंसता रहा।