-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

हमारे देश में संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार है। इन अधिकारों में नागरिक के मौलिक अधिकारों का वर्णन है। जिसमें प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार, सम्पत्ति रखने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, पर्यटन का अधिकार, रोज़गार करके आजीविका कमाने का अधिकार और अत्याचार के विरुद्ध न्याय प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। इन समानता के अधिकारों के बावजूद महिलाओं के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। नारी न घर में सुरक्षित है, न बाज़ार, न दफ़्तर और न किसी कार्यालय में। हर तरफ़ समानता के नाम पर उसके साथ छलावा होता है। कहने को तो भारतीय संस्कृति का बढ़-चढ़ कर व्याख्यान दिया जाता है कि नारी देवी है, लक्ष्मी है, नारायणी है, शक्ति है। परन्तु वास्तविक हक़ीक़त क्या है, भूतकाल में भी नारी पीड़ित थी, वर्तमान में भी पीड़ित है और भविष्य भी अंधकारमय होता जा रहा है। संविधान के दिये हुए अधिकार धरे के धरे रह जाते हैं। जब उसके साथ बलात्कार जैसी घटना हो जाती है तो न पुलिस मदद करती है, न कानून। और समाज भी तमाशा देखता है। समाज की आत्मा मर जाती है, नेताओं को सांप सूंघ जाता है। न्याय करने वाले जज दूध का दूध और पानी का पानी नहीं कर सकते। हम सब संविधान के भीतर रह कर कार्य कर सकते हैं।

we are under a constitution, but the constitution is what the judges say it is.

जज जो कहेंगे वह ही संविधान है। संविधान नियमों नीतियों और कर्त्तव्यों तथा अधिकारों की सूची है जिसके अनुसार सरकार कार्य करती है। कुछ अधिकार राज्यों के पास हैं और कुछ केन्द्र सरकारों के पास हैं। केन्द्र विभिन्न राज्यों का संगठन है। हमारा संविधान लिखित, विस्तृत होने के बावजूद इतना लचीला है कि कोई भी क़ाबिल वकील इसको तोड़-मरोड़ सकता है, क्योंकि जज वकीलों की दलीलों पर फ़ैसला देते हैं, वकील पैसे के लिए बिकते हैं इसलिये इन्साफ़ की उम्मीद दम तोड़ जाती है।

पुलिस के सामने भी नारी के साथ बलात्कार हो जाये तो क्या पुलिस अपराधी को पकड़ती है, उसका जवाब होता है जब तक एफ.आई.आर नहीं होती हम पकड़ नहीं सकते। जब नेता लोग ही शेल्टर हाऊसों में सेेक्स रैकेट चलाते हैं तो इन्साफ़ कौन करेगा। जिन धर्मस्थलों पर कई-कई महीनों तक रेप होता है और प्रशासन भी उन्हीं डेरों में आस्था रखता है, ऐसेे में नारी कहां जाकर रोये।

नारी के साथ दुराचार हो जाने पर सड़क की भीड़ या तो आंखें मूंद लेती है या कोई उसकी वीडियो फ़िल्म बना लेता है। कोई भद्र पुरुष उसकी सहायता के लिये आगे नहीं आता। ऐसा लगता है कि उसके आस पास मुर्दे खड़े हैं जिनके पास कोई आत्मा नहीं है। जब कहीं बलात्कार के बाद नारी की हत्या हो जाती है तब समाज के पतवन्ते लोग कैंडल मार्च निकाल कर संवेदना प्रकट करते हैं। जब किसी मज़लूम की समय पर सहायता नहीं की तो ऐसा दिखावा करने का क्या लाभ?

नारी मन्दिर, गुरुद्वारे या चर्च जाते वक़्त रात के समय तो क्या दिन के उजाले में भी किसी की हवस का शिकार हो जाती है। स्कूल और कॉलेज के गेट से उठाई जाती है। सरे बाज़ार उसका अपहरण हो जाता है। शौच के लिए खेतों में नहीं जा सकती। बस, रेलगाड़ी और हवाई सफ़र में भी उसके साथ बलात्कार हो जाता है, कहां-कहां से बचे नारी। नज़दीकी रिश्तेदार भी उस पर बुरी नज़र रखते हैं।

पाकिस्तान में बलात्कारी को कोड़े मार कर सज़ा दी जाती है, मुस्लिम राज्यों में बलात्कारी को मौत की सज़ा दी जाती है। बुरी नज़र रखने वाले की आंखें निकाल दी जाती हैं। हमने तो ब्रिटिश राज भारत में देखा नहीं परन्तु सुना है कि नारी सोने से लदकर अर्थात् सोना पहन कर जब जाती थी कोई उससे छेड़छाड़ नहीं करता था क्योंकि कानून का डंडा सख़्त था। अब भारत के हर प्रान्त में इतने बलात्कार होते हैं कि जैसे यह बलात्कारियों का देश हो।

जब दिल्ली जैसी राजधानी सुरक्षित नहीं तो अन्य राज्यों का क्या बनेगा। वास्तव में भारत में बड़ी आसानी से बलात्कार के सबूत मिटाए जा सकते हैं, ग़ल्त मेडिकल रिपोर्ट तैयार की जा सकती है। अपराधियों के डर से कोर्ट में कोई गवाही नहीं देता, कई लोग तो केस लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। पुलिस, वकील उससे अश्लील प्रश्न पूछते हैं। इसलिये नारी झिझकती है, डरती है। एक तो पैसे के अभाव में केस नहीं लड़ पाती, दूसरे मां-बाप और बहन-भाई को मारने की धमकी दी जाती है। कई बार तो उसी बलात्कारी गुंडे से शादी करने का दबाव डाला जाता है, जिसने यह जघन्य अपराध किया था।

विडंबना तो यह है कि जब किसी कुंवारी लड़की से बलात्कार हो जाता है तो उसके घरवाले ही उसे भला-बुरा कहने लगते हैं। “अरी कलमुंही, गई क्यूं थी अकेली वहां, समाज में हमारी नाक कटवा दी। अब या तो हम यहां से दफा हो जाएं या तू ज़हर को निगल कर मर जा।” उसका साथ देने की बजाये उसको ही दोषी मानते हैं। भला कोई यह बताये उसने नाक कैसे कटवा दी। क्या उसने अपनी मर्ज़ी से घटना को अंजाम दिया है। कोई चोरी की है, कोई डाका डाला है, किसी की हत्या की है। मां-बाप को उसकी पूरी सपोर्ट करनी चाहिए। समाज को अपने साथ लाना होगा। बोल्ड होकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाना होगा। उस लड़की को सिर झुकाकर नहीं, सिर उठाकर चलना होगा। अपनी आत्मशक्ति को जगाना होगा। उसे इतना बोल्ड होना होगा कि दुश्मन के दांत खट्टे किये जाएं। समाज को भी आगे आना होगा। आर्थिक तौर पर पीड़िता की मदद करनी चाहिए। स्त्री सशक्तिकरण को दर्शाना होगा। आंदोलन, भूख हड़ताल तथा गांधीगिरी का सहारा लेना चाहिए। युवकों को भी ऐसी पीड़ित लड़कियों के लिए विवाह बन्धन में बंधने का निर्णय लेना चाहिए। अपराधी बच न पाए सामज को एक जुट होकर कार्य करना होगा। वकीलों को भी अपराधियों के केस लड़ने से इन्कार करना होगा। सबसे ज़रूरी है नारी का बोल्ड और साहसिक क़दम उठाना। विदेशी महिलाएं जैसे इस मामले में बोल्ड हैं हमारी नारियों को भी बोल्ड होना पड़ेगा।

न्यायालयों में ऐसे केसों का निपटारा शीघ्र होना चाहिए। ऐसा न हो कि विलम्ब हो जाए और पीड़िता न्याय की गुहार लगाती लगाती दम तोड़ दे। कहते हैं कि भगवान उनकी मदद करता है, जो अपनी मदद आप करते हैं। जब तक नारी और उसके घर वाले पूरी शक्ति से बलात्कारियों का दमन नहीं करेंगे। ये अपराध होते रहेंगे। समाज में बड़ी ताकत होती हैं यदि वह सरकार को बना सकती है तो उसमें सरकार को मजबूर करने की भी शक्ति होती है। समाज ही उसको मजबूर करे कि ऐसे अपराधों के लिए ठोस और सख़्त कानून बनाये। पर वास्तविकता यह भी है कि पहल तो नारी को ही करनी होगी।

“तुम जिधर का रुख करोगे रास्ता बन जायेगा। धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते क़ाफ़िला बन जायेगा।”

One comment

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