कहानियां

एक टांग वाला मुर्गा

वह पैटून पुल आस-पास के छ: गांवों को जोड़ता था। जब से उज्ज दरिया पर यह पुल बनाया गया था लोगों को बड़ी राहत मिली थी। बॉर्डर पर बसे गांव सकोल के लिये यह पुल बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ था। इस गांव और समीप के लगते गांवों की ज़रूरतों को देखते हुये गांव का माध्यमिक विद्यालय हाई स्कूल में तबदील ...

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खुशबू

  -सुरेन्द्र कुमार ‘अंशुल’ आज मैं बहुत खुश हूँ। आँखों से नींद कहीं दूर छिटकी हुई थी। खुली खिड़की के उस पार मुस्कराते हुए चाँद को देख कर मेरे होंठ मंद ही मंद मुस्करा रहे हैं। मन का पंछी नीले आकाश पर फैले बादलों के पास उड़ान भर रहा है। क्यों न हो ऐसा? आज … हाँ आज ही मुझे ...

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दांव

“किसकी इज़्ज़त कैसी इज़्ज़त और लोग भी अपनी बीवियाँ दांव पर लगा रहे हैं …. तू भी चल।” बापू कपड़े धोने वाली थपकी उठा लाया ।

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बलबीर

एक थी नर्स बलबीर। अब आप गुस्सा न करें कि कहानी की शुरूआत अजीब है। अब आप ही कहिए जब राजा-रानी होते थे तो कहानी की शुरूआत बड़ी आसान थी। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। बस क़लम उठाई और शुरू कर दी कहानी, एक थी रानी या फिर एक था राजा या फिर एक था राजा, एक थी रानी। अब ...

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बापू का देश

                               – डॉ. अनामिका प्रकाश श्रीवास्तव “तुम भी किस ज़माने की बात करते हो, सुखी?  अरे अब ये सब बातें छोड़ो, ये सत्य, ये अहिंसा, ये सदाचार, ये नैतिकता, ये सब बुज़दिलों की बातें हैं। वो ज़माना गुज़र गया जब लोग इनके बल पर  ही समाज में ...

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सुगंध

-डॉ राज बुद्धिराजा वह एक अनोखा विवाह था। हमारे जैसे दस-बीस लोगों को छोड़ कर सभी बाराती-धराती मूक-बधिर थे। टेंट वालों, बिजली वालों, कैमरा-वीडियो वालों और खाना बनाने वालों से लेकर-परोसने वालों तक। युकलिप्टस से घिरे जगमगाते मैदान की शांति को शहनाईवादन और हमारी अनुशासित हंसी भंग कर रही थी। सभी अपनी उंगलियों, हथेलियों, नेत्रों, होंठों की संकेती भाषा से ...

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नई उड़ान

मेरे मन रूपी अंधेरे से एक चीत्कार-सी उठ रही है कि मैं कहां हूं? क्यों हूं? बस हर बार यह टीस हृदय को अत्यधिक उद्वेलित कर देती है। सोचते-सोचते ही मैं लेट गई और अपनी आंखों को बंद करके स्वप्नों में विचरण करने लगी थी कि मुझे मेरा ही नाम सुनाई दिया। “मोहिनी” “मोहिनी” आंखें खोलकर देखा तो पन्नाबाई मुंह ...

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त्याग

-विनोद ध्रब्याल ‘राही’ पूरा हॉल ठहाकों से गूंज रहा था। करीब दो महीने बाद वर्मा और खन्ना परिवार इक्ट्ठे हुए थे। “मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि हम दोनों समधि बन जाएंगे। राजीव और काजल की सगाई ने हमारी बचपन की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दिया।” राजीव के पिता खन्ना जी बोले। “सच कह रहा हूँ, मुझसे ...

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तकिया क़लाम

                                                                                                                        ...

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गाड़ी रुकी नहीं

आख़िरकार न न करते हुए राजेेेश इस बार आशा तथा बच्चों को शिमला घुमाने के लिए मान गया था। पिछले वर्ष भी प्रोग्राम बना था लेकिन ऐन वक़्त पर राजेश को कार्यालय के नाम से बंगलौर जाना पड़ा था और बना बनाया प्रोग्राम स्थगित करना पड़ा था। लेकिन इस बार बच्चों के स्कूल में ग्रीष्मावकाश होने से पहले ही बच्चों ...

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