काव्य

स्वपन

गोद में नन्हें को लिये, मुस्करा रही थी, खुद ही खुद बतिया रही थी, मेरा राजा बेटा, मेरा राजकुमार मेरी आंखों का तारा

Read More »

औरत

बिख़र गई हूं पंक्ति बन कर मैं। अपने-अपने दृष्टिकोण पर, सबने परखा मुझको। मनचाहा अर्थ लगाया मेरा। कौन समझा सही अर्थ को ?

Read More »

नये अशआर

लांघ कर जिस दम रिवायत की हदों को आएगी देख लेना फिर वो बस्ती भर में पत्थर खाएगी चांद तारे मुंह छिपा लेंगे घटा की ओट में कोई गोरी अपनी छत पर ज़ुल्फ़ जब लहराएगी

Read More »

कौमी एकता

वो तवायफ़ कई मर्दों को पहचानती है शायद इसलिये दुनिया को ज़्यादा जानती है उसके कमरे में हर मज़हब के भगवान् की एक-एक तस्वीर लटकी है

Read More »

लिख दो

तुम्हारे नाम लिख दिए हैं वे खूबसूरत नज़ारे भी जो अभी देखने बाक़ी हैं उन फूलों की खुशबू भी जो अभी खिलने बाक़ी हैं उन झरनों की झंकार भी

Read More »

लड़की जब सोलह साल की हुई

आईना शरमाने लगा, यौवन बल खाने लगा, लड़की जब सोलह साल की हुई। बाबुल के जूते सरकने लगे, मैया के सपने चटकने लगे, लड़की जब सोलह साल की हुई।

Read More »

पैबंद

ज़र्रा-ज़र्रा, कतरा-कतरा दुश्मन मेरा होता गया सिलसिला हर बात से जब तेरा होता गया तेरे नाम का जो पैबंद मेरी जिंदगी पर लग गया

Read More »