साहित्य सागर

न्याय

भूमाफ़ियाओं द्वारा क़ब्ज़ाये गए भूमि के टुकड़े को वापिस पाने के लिए राम सिंह कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। उसकी यह लड़ाई पिछले पन्द्रह साल से अनवरत जारी है। वह हर सप्ताह या पन्द्रह दिन बाद कचहरी आता है। सुबह से शाम तक न्यायालय की चौखट पर बैठा हुआ मुक़द्दमे की पुकार के इंतज़ार में ऊंघता है।

Read More »

हलाहल

अरे बेटी, एक अकेली मां की जब तक चली, तब तक तो चारों एक ही थे, जब चारों की चार घरों से सीखी, चार बहुएं आ गईं, तो अकेली मां के संस्कार क्या करते? सभी ने तो अपने-अपने मर्द को अपने-अपने पल्लू में बांध रखा है।

Read More »

एक कवि का साक्षात्कार

देखिए, मैं अब पचपन का हूं और बचपन से लिख रहा हूं। वैसे मैं जब पालने में था तब भी लय में रोता था, लय में हंसता था। इसे आप हमारी पहली कविता ही समझिए।

Read More »

डूबता मस्तूल

‘पापा, मैंने बहुत सोच-विचार के बाद निर्णय लिया है कि मैं यहां सब कुछ छोड़छाड़ कर अपने देश आ जाऊं अमला तो यहीं के रंग में रंगी हुई है। मैं अपने बच्चों के लिए लाखों डॉलर जमा कर चुका हूं। उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए वह धन-दौलत बहुत होगी

Read More »

विष कन्या

बस रुकते ही वह हवा के झोंके की तरह बस में चढ़कर मेरे साथ ख़ाली पड़ी सीट पर बैठ गई। उसके स्पर्शमात्र से मेरी रगों में बहते खून की गति तेज़ हो गई। तेज़ी से पीछे की ओर भागते पेेड़ों, पौधों, घरों, खेतों, खलिहानोंं से हटकर मेरी नज़रे उस अप्सरा पर मंडराने लगी थीं।

Read More »

चाइल्ड लेबर

‘पापा, ये चाइल्ड लेबर क्या होती है? आठ साल के अंकुर ने पापा से पूूछा।’ ‘बेटा, जब तुम्हारे जैसे छोटे-छोटे कोमल बच्चे कहीं काम करते हैं तो उन्हीं को ‘चाइल्ड लेबर’ कहा जाता है।’

Read More »

स्मृतियांं

हर पल बिन बुलाए मेहमान की भांति दिल में चुपके-चुपके से घर कर जाती हैं अक्सर तुुम्हारी स्मृतियां।

Read More »

क्योंकि

जब शब्द ज़ुबान नहीं बनते तो आंसू बोलते हैं। मगर उनकी भाषा संवेदनाशुन्य मानव नहीं समझ पाता,

Read More »

धत तेरे की

-धर्मपाल साहिल आज वह ऑफ़िस में रीना का सामना कैसे कर पाएगा। इस बात को लेकर वह सुबह से ही परेशान था। रात भी वह ठीक ढंग से सो नहीं पाया था। आधी रात को एक बार आंख खुली तो बस फिर नींद आंखों के पास न फटकी। करवटें बदलते सूरज चढ़ आया था। रोज़ाना की भांति ‘मॉर्निंग वाक’ के ...

Read More »