साहित्य सागर

समुद्र के ओर की खिड़की

मैंने तो उसे साफ़ कह दिया था बाक़ी जो मर्ज़ीं करता रह। यह मेरा पेशा है परन्तु मेरे होंठों पर केवल एक का ही अधिकार है। होंठों को अमर के बिना और कोई नहीं छू सकता।

Read More »

हरा समन्दर

मैंने उनका घर कभी नहीं देखा था और आज तक नहीं देखा। फिर भी मन ही मन मैं उनके घर को अपना समझने लगी थी। मुझे लगता कि उनका घर मेरे द्वारा ही संचालित हो रहा है।

Read More »

उत्तर आधुनिकता हई! शावा!!

आज लेखक अमीर है, अपनी खोटी नीयत के कारण खुद को ग़रीब दिखाता है। दो कनाल की कोठी का मालिक होने के बाद भी पांच हज़ारी इनामों के पीछे भागता फिरता है

Read More »

दास्तान मेरी

मैं क्या सुनाऊं तुम्हें दास्तान मेरी क़िस्मत भी है मुझपे हैरान मेरी मैं एक पत्थर पड़ा था गली में कोई बना गया तराश के शान मेरी वफ़ओं के बदले मिली हैं सज़ायें

Read More »

पुस्तक की क़ीमत

"जी, यहां मेरा मायका है।" युवती बिस्कुट खाते हुए बोली।पहली बार सुखनजीत को लगा कि वह धोखे में था क्योंकि उसे कहीं से भी युवती विवाहित नहीं लग रही थी। "आप शादीशुदा हैं?"

Read More »

ब्लैंक चैॅक

कुछ दिनों बाद मेरी तक़दीर ने मेरे साथ एक और घिनौना मज़ाक किया। मुझे सीमा से सच्ची मुहब्बत हो गई, मैं मन ही मन में सीमा को सच्चे दिल से अपनी पत्नी स्वीकार करने लगा।

Read More »

दिल की दास्तान

जिस्म बेजान कोई हो जैसे खुद से अनजान कोई हो जैसे दिल में आहट, न कोई हलचल है राह वीरान कोई हो जैसे हमसे कहते हैं मुस्कुराने को काम आसान कोई हो जैसे

Read More »

इक तेरे चले जाने के बाद

हम भी रोये यह दिल भी रोया बुलबुल भी रोई और गुल भी रोया तन्हाई में डूबा हर पल भी रोया इक तेरे चले जाने के बाद... चुपके से चल दिये न ख़बर की हालत देखो तो आकर जिगर की

Read More »