सुबह जब मेरी आंख खुली तो बरसात होकर हट चुकी थी। बाहर ठंडी तेज़ हवा चल रही थी। दीवार पर लगी घड़ी की तरफ़ देखा तो सात बज चुके थे। सर्द मौसम बूढ़े शरीर को बिस्तर से निकलने की इजाज़त नहीं दे रहा था। आज मेरी शादी की सालगिरह है। इतना सोचने की देर थी कि सीमा की यादों ने मुझे ज़हरीले सांप की तरह डसना शुरू कर दिया। कुछ पलों बाद मेरा गुज़रा हुआ अतीत मेरे सामने आकर खड़ा हो गया लेकिन इस बार आंखों पर नज़र का मोटा चश्मा नहीं था, सिर पर सफ़ेद बालों की जगह काले घुंघराले बाल थे और चेहरे पर वक़्त के साथ पड़ी झुर्रियां भी दिखाई नहीं दे रही थीं। मैं बीस साल पीछे जा चुका था, मुझे याद आ रहा था मेरा वो नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकना। मैं रोज़गार की तलाश में इस क़दर घिस चुका था कि एक कप चाय के लिए भी दोस्तों की जेब टटोलनी पड़ती। इसी बीच मेरी तक़दीर ने मेरे साथ एक अजीब खेल खेला। एक दिन अख़बार में नौकरी का विज्ञापन देखते-देखते मेरी नज़र शादी के विज्ञापन पर गई, जिसमें लिखा था “टेम्प्रेरी वर चाहिए” बात मेरी समझ से बाहर थी। जानने के लिए दिये गए पते पर जा पहुंचा। पता चला एक सीमा नाम की लड़की है जो कैंसर से पीड़ित है। और तीन महीने से ज़्यादा…घर में मातम का माहौल छाया हुआ था। कुछ दिनों के लिए सीमा के पिताजी इसे खुशियों में बदलना चाहते थे। हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर देखना चाहते थे। बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी अपराधी को मौत की सज़ा देने से पहले उसकी आख़िरी ख्वाहिश पूछी जाती है। मेरे ग़रीब मजबूर हालातों ने मुझे सीमा के साथ शादी करने को विवश कर दिया, क्योंकि इस शादी के लिए मुझे दो लाख रुपए मिलने थे। पैसे की लालच में मैं बहक चुका था। सीमा के पिता जी की आंखों में मुझे आंसुओं की जगह हरे-हरे नोट दिखाई दे रहे थे, भूख और बेरोज़गारी की दलदल से निकलने के लिए मेरे पास मात्र यह आख़िरी रास्ता था। मेरे लिए यह शादी नहीं थी, एक नौकरी थी जो मुझे तीन महीने तक करनी थी। एक समझौता था मेरे हालातों के साथ, जिन्हें मैंने दो लाख रुपए के लिए गिरवी रख दिया था। कुछ दिनों बाद मेरी तक़दीर ने मेरे साथ एक और घिनौना मज़ाक किया। मुझे सीमा से सच्ची मुहब्बत हो गई, मैं मन ही मन में सीमा को सच्चे दिल से अपनी पत्नी स्वीकार करने लगा। लेकिन जब भी मैं सीमा से अपनी मुहब्बत का इज़हार करने की कोशिश करता तो वो मेरी बात सुनना तो दूर मेरी तरफ़ देखना भी गवारा नहीं समझती। सीमा मुझे लालची और घटिया क़िस्म का इंसान समझती, क्योंकि पैसे के लालच में मैंने उससे शादी की थी। शायद वो मेरे हालातों से वाक़िफ़ नहीं थी। सीमा की इस बेरुखी से मैं पूरी तरह टूट चुका था। इतना क़रीब होते हुए भी उससे कोसों दूर था। सीमा जानती थी कि वो इस दुनियां में कुछ दिनों की मेहमान है। उसने तो केवल अपने पिता जी का दिल रखने के लिए मुझ से शादी की थी। वो उन्हें और दुःख देना नहीं चाहती थी। शायद वो एक बाप की भावनाओं को अच्छी तरह समझती थी। दिन पर दिन सीमा की हालत ख़राब होती जा रही थी, अपनी एक तरफ़ा मुहब्बत और सीमा को आने वाली मौत का ग़म मुझे शराब के भंवर में ले डूबा। मैं दिन-रात नशे में धुत्त रहने लगा। जिस दिन का मुझे डर था वो दिन आ चुका था। शाम को जब मैं सीमा के घर पहुंचा तो पता चला वो हॉस्पिटल में हैं, ज़िंदगी और मौत के बीच कुछ घण्टों का फ़ासला बाकी रह गया था, मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सिर पर जैसे किसी ने ज़ोरदार पत्थर मार दिया हो। हास्पिटल तीन किलोमीटर दूर था। मुझे टैक्सी लेने की भी सुध-बुध नहीं थी। मेरे पैरों में तो जैसे मशीन लग चुकी थी। हॉस्पिटल पहुंचा, रिसेप्शन पर पूछकर सीमा के कमरे की ओर दौड़ा, मैं अन्दर दाख़िल होने ही लगा कि तभी पीछे से आवाज़ आई। आप अन्दर नहीं जा सकते, मैं … सीमा का पति हूं, मैंने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा … जी उन्होंने ही आपको अन्दर आने से मना किया है। इतना कह कर वो नर्स सीमा के कमरे में चली गई। दरवाज़े पर लगे शीशे से अपनी बेबस आंखों से खड़ा सीमा को आख़िरी सांसें लेता देख रहा था और मन ही मन में बुदबुदा रहा था। सीमा कम से कम आज तो मुझे मिल लेती, खुद को सही ठहराने का बस आज एक मौक़ा दे देती। नहीं चाहिए मुझे ये दो लाख रुपए, मैं ग़रीबी और बेरोज़गारी में तिल-तिल कर, मरने के लिए तैयार हूं, लेकिन तुम्हें खोने के लिए नहीं, बस एक बार तुम्हें अपनी दिल की गहराइयों से वाक़िफ़ कराना चाहता हूं, सीमा। और फिर मेरे आंसू सीमा के पैरों में बेड़ियां न डाल सके, उस रात हमेशा-हमेशा के लिए वो मुझे छोड़ कर चली गई। तब मैं सीमा के कमरे में दाख़िल हुआ, क्योंकि अब मुझे किसी की इजाज़त की कोई आवश्यकता नहीं थी, समय की भी नहीं। और वो तमाम बातें जो मेरे गले में अटकी थी, कहने का मौक़ा तब दिया, जब वह कुछ सुनने और कहने के क़ाबिल नहीं थी। मैं फूट-फूट कर सीमा की लाश पर रो रहा था। अपने गुनाहों की माफ़ी भी मांग रहा था और अपना क़सूर भी पूछ रहा था। अचानक मेरी नज़र एक बंद सफ़ेद लिफ़ाफ़़े पर गई जो सीमा के सिरहाने रखा था। खोलकर देखा तो एक ब्लैंक चैॅक और एक ख़त मिला, जो सीमा मेरे नाम छोड़ गई थी, जिसमें लिखा था, “शेखर, पापा से तो तुम्हें दो लाख रुपए मिल ही जाएंगे, लेकिन यह चैॅक मैं तुम्हें अपनी तरफ़ से दे रही हूं। तुम्हारी अदाकारी से खुश होकर जितनी चाहे रक़म भर कर कैश करवा लेना और दूसरी शादी कर लेना।” सीमा दर्द समझना तो दूर जाते-जाते मेरे ज़ख़्मों पर नमक छिड़क गई। इस बात का दुःख मुझे हमेशा रहेगा कि वो आख़िरी वक़्त तक भी मुझे ग़लत समझती रही। उस चैॅक को फाड़ कर मैंने वहीं फेंक दिया और वापिस चला आया बिना वो दो लाख रुपए लिए। अचानक एक तेज़ हवा के झोंके ने सीमा की तस्वीर नीचे गिरा दी। मैं अपने गुज़रे हुए कल के खंडहर से बाहर निकल आया, नीचे गिरी सीमा की तस्वीर मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। तस्वीर उठा कर मैंने फिर से दीवार पर लगा दी। शाम का पहरा शुरु हो चुका था। आंखें मली तो मेरे हाथ गीले हो गए। शायद मैं रो रहा था।

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