जसबीर भुल्लर

पोस्ट स्क्रिप्ट

‘वह देश भी इसी देश जैसा है। वहां भी लोग मक़बरे में रहते हैं,’ मित्ती हंसी, उसकी हंसी में बहुत कांटे थे। वह बोली, ‘जानते हो? ... हमारी ही तरह वे लोग भी नहीं जानते कि जहां वे रहते हैं वो घर नहीं। बस अपनी तरह वे भी रह ही लेते हैं।

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समुद्र के ओर की खिड़की

मैंने तो उसे साफ़ कह दिया था बाक़ी जो मर्ज़ीं करता रह। यह मेरा पेशा है परन्तु मेरे होंठों पर केवल एक का ही अधिकार है। होंठों को अमर के बिना और कोई नहीं छू सकता।

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लिखना फ़िल्मों के लिए

फ़िल्म की शूटिंग पूरे ज़ोरों पर थी। फ़िल्म का सैट एक हवालात का था। हवालात में बंद मुलज़िम (सन्नी देयोल) खून से लथपथ हुआ सलाख़ों वाले दरवाज़े की तरफ़ चलता आता हुआ चीखता है, “मुझे तो तुमने ज़िंदा छोड़ दिया है इंस्पेक्टर, पर अब मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूंगा।”     “कट।” निर्देशक की आवाज़ गूंजी, “राइटर कहां है?”      लेखक काग़ज़ों का ...

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विज़डम ट्री

-जसबीर भुल्लर   विज़डम ट्री अर्थात् बोध वृक्ष फ़िल्म एण्ड टेलिविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इन्डिया, पुणे के प्रभात स्टुडियो के नज़दीक खड़े उस वृक्ष का नाम ‘विज़डम ट्री’ पता नहीं किस समय पड़ गया था। विज़डम ट्री एक साधारण-सा आम का वृक्ष है परन्तु फिर भी वह साधारण नहीं। 1983 में मैं पहली बार फ़िल्म इंस्टीट्यूट गया था। उस समय तक ...

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भूख

क्या इस बात का पता नहीं था चला कि वह घर बेटी के लिए नर्क होगा और संधू सभी के बारे में यही सोचेगा कि और किसी के कंधे पर सिर ही नहीं, “सोचने और कहने का काम केवल उसी ने करना है।” -क्या आपको यह संकेत नहीं था मिला कि संधू का मुंह अभी और खुलना था और भूख ज़्यादा बढ़नी थी।

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मरसिये की उम्र

मीरा के जाते समय उसने मीरा का हाथ छोटे बच्चे के सिर की तरह सहलाया। जिस मीरा के साथ उसने घर बसाने का सपना देखा था, उसी मीरा के लिए उसके बनवासी बोल उभरे, “अपनी कहानी लोरी से शुरू हो कर मरसिया पर ख़त्म हो गई है।” चलती लुओं में मीरा की खामोशी शीत बनी रही। उस के हाथों का ...

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दोस्ती के कमल फूल

  उस दिन अकेलापन निर्धनता की तरह हावी हो गया था। अजनबी चेहरों की भीड़ में अकेलेपन ने अभी आत्मघात नहीं किया था, जब मैंने अपनी ओर घूरती हुई आंखों को देखा। चाल ढाल से उसके फ़ौजी होने का अनुमान मैंने लगा लिया था। उसके नक़्श अवचेतन मन के किसी कोने में दिखाई दिए, इससे पूर्व कि व्यतीत के पानी ...

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मरी हुई तितलियां

जब हम चले तो बहुत से लोग थे। तब जंगल अभी इतना घना नहीं था। एक-दूसरे के साथ हँसी मज़ाक करते हुये हम ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहे। पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां तोड़ते, उंगलियों में मसलते हुये हम चलते रहे। लगता था हमने सारी उम्र इसी तरह चलना है। जंगल धीरे-धीरे घना होता गया। हम एक-एक करके गुम होते रहे। उन में ...

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सांसों के हिस्से की खुशबू अमृता प्रीतम

-जसबीर भुल्‍लर हौज़ ख़ास की सुरमई शाम हरी कचूर बेलों पर फैल गई। इमरोज़ के चंबे में चिड़ियों की रौनक बढ़ गई थी। उसके हाथों से बनाये घौंसलों में चिड़ियां तिनके चुनने लगीं थीं।     दोस्तों के उस घर में मैं बेपनाह परवाज़ की पनाह देखता रहा था।     उस दिन अमृता प्रीतम ने दूधिया पन्नों वाली एक डायरी मुझे ...

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इतनों में से उठे दो शूरवीर

फ़िल्म जगत के इतिहास में मुझे वह दो शूरवीर मिले हैं जिन्होंने कड़ी मेहनत की है, लगातार लड़े हैं और विजयी होकर सामने आए हैं। इन दोनों शूरवीरों की कहानी- परी कहानी की भूमिका जैसी है।

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