मनोज चौहान

चिट्ठियां

आज भी संजोये हुए हूं वो पुरानी चिट्ठियां धुंधले पड़ गए हैं शब्द नर्म पड़ चुके और गले हुए काग़ज़ बचाए हुए हैं अपना वजूद जैसे-तैसे

Read More »

हे प्रकृति मां

अपनी तृष्णा की चाह में मैंने भेंट चढ़ा दिए हैं, विशालकाय पहाड़ ताकि मैं सीमेंट निर्माण कर बना सकूं, एक मज़बूत और टिकाऊं घर, अपने लिए

Read More »

आर्थिक आरक्षण ही कर सकता है जातिगत आरक्षण के उग्रवाद का अंत

– मनोज चौहान आज़ादी के उपरान्त संविधान निर्माताओं द्वारा आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ चुके लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान किया गया था। उस वक़्त यह तय किया गया कि यह आरक्षण मात्र दस वर्षों के लिए अस्थाई तौर पर होगा। जाति को आरक्षण का आधार बनाना ही संविधान की मूल भावना को नकारना प्रतीत होता ...

Read More »

मनचले

 – मनोज चौहान लॉन्ग रूट की बस सर्पीली पहाड़ी सड़क से गुज़र रही थी। कंडक्टर की सीटी के साथ ही बस सवारियों को चढ़ाने के लिए एकाएक रुकी। अन्य सवारियों के साथ दो किशोरियां भी बस में चढ़ी। दो मनचले लड़के भी उनका पीछा करते बस में चढ़ गए थे। बस की सभी सीटों पर सवारियां बैठी थी, इसीलिए दोनों ...

Read More »