मुकेश अग्रवाल

वन हैं तो जीवन है

यदि पर्यावरण की उपेक्षा यूं ही जारी रही तो एक दिन ऐसा आयेगा जब पहाड़ वासियों को गर्मी से निजात पाने के लिए दिल्ली की ओर कूच करना पड़ेगा। सोचिए क्या मौसम का ऐसा वीभत्स रूप हमें स्वीकार्य होगा?

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गारंटी

मां-बाप की सारी ज़िंदगी इस विश्वास के सहारे कट जाती है कि बेटा बड़ा होकर उनकी सेवा करेगा। क्या इस विश्वास की डोर इतनी कच्ची होती है कि मां-बाप को दो वक़्त की रोटी के लिए बेटों को लालच देना पड़े?

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आंच

'पापा! पापा! अलमारी में से पटाखों के पैकेट निकाल दो न।' बच्चों ने मुझे झंझोड़ते हुए कहा। मैं मौन रहा। 'आख़िर ऐसा क्या है उन पटाखों में जो उन्हें साल भर से रखे बैठे हो।' मुझे चुप देख कर पत्नी ग़ुस्से में बोली।

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विजय दशमी के दिन

रावण का पुतला जलाते समय लाखों, करोड़ों लोगों का केवल एक ही मत यह होता है कि रावण को माता सीता के अपहरण की सज़ा युगों के बाद भी मिल रही है। किन्तु आज के सभ्य कहे जाने वाले समाज में तो एक-दो नहीं बल्कि लाखों रावण मौजूद हैं।

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कच्ची फ़सल

इस बार अपने हिस्से वाल ज़मीन पर अच्छी फ़सल होने के आसार नहीं हैं। पिता जी तो कुछ और ही राग आलाप रहे हैं..... समय से पूर्व फसल काटना धरती मां का अपमान है। धरती मां जैसा भी दे खुशी से स्वीकार करना चाहिए। अब तुम ही बातओ आजकल के ज़माने में ऐसी दक़ियानूसी बातें…..।"

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बेटा-बेटी में असमानता कहां तक उचित

-मुकेश अग्रवाल रमेश के यहां लड़की होने का समाचार पाकर मैं उसके घर बधाई देने चला गया। उसके घर जाकर देखा तो वहां एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। रमेश की मां एक कोने में बैठी आंसू बहा रही थी तो स्वयं रमेश भी किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था। औपचारिकता की रस्म निभाने के बाद मैंने उदासी भरे ...

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