-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

वैसे तो भारतीय संस्कृति परोपकार से ओतप्रोत है परन्तु पंजाब की सांस्कृतिक विरासत अथवा सभ्याचार अद्भुत और अनोखा है पंजाब की संस्कृति में ऐसे गुण विद्यमान है जो भारत के दूसरे राज्यों से इसे विशिष्टता और ख़ासियत प्रदान करते हैं। पंजाब के लोगों में भाईचारा कूट-कूट के भरा हुआ है और धार्मिक कट्टरता का ज़रा सा भी बोल बाला नहीं है। पंजाब के लोग शूरवीरता और बहादुरी के लिए सारे संसार में जाने जाते हैं। पंजाब के बांके जवानों ने बाहरी आक्रमण के समय चाहे वे मुसलमानों के आक्रमण हों, चाहे पुर्तगालियों, मुग़लों या फ्रांसीसी, अंग्रेज़ों और चीन के आक्रमण हों उनका मुंह तोड़ जवाब दिया है। पंजाब की मिट्टी के कण-कण में उदारता, सहनशीलता और दानवीरता भरी हुई है। पंजाब के लोग हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में शत्रुता नहीं रखते बल्कि मित्रवत् व्यवहार करते हैं। पंजाब में मेहमान को जान से प्यारा मान कर उसकी सुरक्षा और आवभगत की जाती है। पंजाब के गांवों में अभी भी जो मुलाज़िम कार्यरत हैं उनको भोजन, दूध, दही की मुफ़्त सेवा भेंट की जाती है। कहीं कहीं तो कर्मचारियों से मकान किराया भी वसूल नहीं किया जाता रहा है। आजकल महंगाई के ज़माने ने लोगों को मज़बूर कर दिया है फिर भी पंजाब का सभ्याचार खोटी और मोटी कमाई के पक्ष में नहीं है।

पंजाब की सिख परम्परा में नारी को बहुत सम्मान और आदर मिला है। नारी की जितनी उपमा श्री गुरु नानक देव जी ने की है। इतनी किसी ऋषि-मुनि, महात्मा और योगी ने नहीं की। कबीर जी नारी को विषयों की वल्लरी कहते हैं। तुलसीदास कहते हैं “ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी है।” श्री गुरु नानक देव कहते हैं “सो क्यूं मन्दा आखिये, जित जम्मे राजान।” अर्थात् जो राजे महाराजों को जन्म देती है, महापुरुषों को जन्म देती है, उसे क्यूं हीन समझा जाए।

पंजाब के लोगों की क्रान्ति की वजह से ही …. भगत सिंह, सराभा, डोगरा, लाला लाजपत राय की देन से ही, आज़ादी का बीजारोपण हुआ है।

 श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी निर्बल को भी शेर बना देते हैं जब वे कहते हैं “चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं” गुरु जी यहां हर कमज़ोर, निर्बल में बहादुरी भरने की बात करते हैं

“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं

गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं।

सवा लाख से एक लड़ाऊं,

तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।

श्री गुरु हर गोबिन्द सिंह जी ने मीरी और पीरी की प्रथा चलाकर अधर्म और बुराई से लड़ने का संदेश दिया है। गुरु तेग बहादुर जी को तो कहते ही हिन्द की चादर हैं। जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये जीवन बलिदान कर दिया था।

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का कहना ही क्या है…. “पिता वारिया ते लाल चारे वारे हिन्द तेरी शान बदले”

श्री गुरु नानक देव जी ने उदारता, दयालुता, परोपकार, सहकारिता और बन्धुत्व में इस समाज को पिरोया है, जात-पात कर्मकांड का खंडन करते हुए, उन्होंने किरत करो, वंड छको यानि कर्म करो और बांट के खाओ का आह्वान किया है। इस तरह हम देखते हैं कि पंजाब के सन्त, फकीर और ऋषि-मुनि एकता, अखण्डता और भाईचारे का संदेश देते रहे हैं। जिनका अनुकरण करके पंजाब के लोग आज तक उनके बताये हुये मार्ग पर चल रहे हैं।

भाईचारे और एकता की आधुनिक उदाहरण तब देखने को मिली जब खन्ना के पास सुबह पांच बजे रेलवे में रेलगाड़ी पटरी से उतर गई और रेल के डिब्बों में सवारियों का बुरा हाल हुआ, कुछ मलबे में दब गए, कुछ बुरी तरह से घायल हो गये। तब पास के गांवों के लोग कारें, ट्रैक्टर, ट्रालियां, रेहड़ेे, ठेले, टांगे, घोड़े लेकर भागे चले आये। इन ट्रालियों में कस्सी कुदालियां और गैैंतियों के अतिरिक्त खाने पीने का सामान कम्बल और रजाइयां थी, आते ही उन्होंने मलबे में दबे हुए लोगों को बाहर निकालने का काम शुरू कर दिया था। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया था। मुसीबत के मारे लोगों के लिये लंगर लगाया गया था। अपने परिवारों के सदस्यों की सुध लेने आये लोगों के लिये बैठने का उचित प्रबन्ध किया गया था। सरकारी सहायता पहुंचे, इससे पहले ही आस-पास के लोगों ने हर प्रकार की सुविधा हादसे से ग्रस्त लोगों के लिये मुहैया करवा दी थी। पंजाब की ऐसी सहयोग और सहानुभूति की परम्परा देख कर दूसरे राज्यों के जिन यात्रियों को बाल-बाल बचने का मौक़ा मिला था उन्होंने मुंह में उंगली डाल ली थी। इस रेलगाड़ी में एक केरल का फ़ौजी अफ़सर भी यात्रा कर रहा था। उसने केरल में जाकर व्याख्यान दिया कि जैसा भाईचारा और अपनेपन का अनोखा दृष्य मैंने पंजाब के लोगों में देखा, ऐसा किसी अन्य राज्य में मेरी कल्पना से भी बाहर है। पंजाब के लोगों के प्रति मेरा मन श्रद्धा और सत्कार से भर गया है। धन्य हैं पंजाब के लोग उनकी उदारवादी नीति काश ये भावना भारत के कोने-कोने में फैल जाए और हिन्दू, मुस्लिम, ईसाइयों के झगडे़ नेस्तनाबूद हो जाएं।

ऐसी उदाहरण तब भी मिली थी। जब मुकेरियां, दसूहा के बीच दो रेलगाड़ियों की आपसी टक्कर हो गई थी। इस हादसे की ख़बर सुनते ही पंजाब के लोगों का दिल दहल उठा था और हादसे से निपटने के लिए सहायता देने के लिए अनेकों लोग उमड़ पड़े थे। 

इसके विपरीत जब उत्तरकाशी में बरसात की सुनामी आई थी। लाखों घर तबाह हो गये थे, लोग बेसहारा हो गये थे। तब उन लाचार लोगों का वहां के लुटेरों, गुंडों और शरारती लोगों ने भरपूर लाभ उठाया था। पानी की बोतल 50 रु. में बेची गई थी। पांच रुपये वाला बिस्कुट का पैकेट 100 रु. में बेचा गया था। बेहोश लोगों के सोने-चांदी के आभूषण लूटे गये थे। छोटे बच्चों की तस्करी हुई थी। महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं सामने आई थी। ऐसे-ऐसे दुष्कर्म हुये जिसे देखकर मानवता लज्जित हो जाए। खुदा भी ऐसे घिनौने कर्म देखकर पछताए कि ऐसे धूर्त मनुष्य बनाकर उसने बहुत गल्ती कर दी है।

अब इसी सांस्कृतिक विरासत का ताज़ा नमूना बरसात के कहर ने दिखा दिया है। जिससे आधा भारत बाढ़ की चपेट में आ गया था। उत्तरांचल, बिहार, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान के अतिरिक्त बाढ़ की मार ने पंजाब को भी बहुत नुक़सान पहुंचाया। कई शहर पानी ने डुबो दिये। भाखड़ा डैैम से अतिरिक्त पानी छोड़ने के कारण सतलुज समेत ब्यास नदी ने काफ़ी कहर ढाया। जान, माल, घर सभी उजड़ गये। परन्तु ऐसे में भी पंजाब के लोगों ने धैर्य नहीं खोया। बाढ़ पीड़ितों के लिये सरकार ने जब उदासीनता दिखाई तब पंजाब के लोगों ने बाढ़ पीड़ितों के राशन, दूध, कपड़ों और दवाइयों से उन्हें वंचित नहीं होने दिया। भीड़ की शक्ल में लोगों ने दूध की बाल्टियों, सूखी-गीली रसद, सब्ज़ियां और फल लेकर संकट में घिरे हुये लोगों की सहायता की।

पानी में पांच-पांच घंटे खड़े रहकर रस्सियों और किश्तियों से महिलाओं और बच्चों को रैस्क्यू किया। अपने शरीर की जान की परवाह न करते हुए लोगों को राहत शिविरों तक पहुंचाया। इतनी रसद और दूध बांटा कि मुसीबत में फंसे हुये लोगों नें कहा भईया हमारे पास पहले ही ज़्यादा मात्रा में दूध बचा है। हमारी तरफ़ से अतिरिक्त दूध ले जाओ किसी अन्य को भेंट कर दो। यह उदारता ही थी कि उनके मन में लालच की कोई जगह नहीं थी। इस प्रकार पंजाब के लोगों ने बाढ़ पीड़ित क्षेत्र के निवासियों की सहायता के सारे रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज़ कर लिए जब उन्होंने बाढ़ में बहते लोगों को बचाया ही नहीं बल्कि हज़ारों रेत और मिट्टी की बोरियों से पानी का मुंह मोड़ दिया और एक मज़बूत टैंपरेरी बांध बना दिया। पंजाब के लोगों की इस हिम्मत को टेलीविज़न की स्क्रीन और अख़बारों में दिखाया गया जिसकी सारे भारत में श्लाघा हुई।

केवल पंजाब और भारत में ही नहीं दूर विदेशों में भी पंजाबी सभ्याचार की धूम है। लोक गीत, कहानियों या फ़िल्मी दुनिया की ही नहीं, लोगों के व्यवहार, सदाचार, नैतिकता और कल्याणकारी भावना की भी चर्चा होती है। हमारा एक पंजाबी नौजवान जो कैनेडा की नागरिकता ले चुका था। जिसके वहां एक फ़ार्म है वह मुफ़्त फल बांटता है। एक बच्चे से जब उसने पैसे लिये बग़ैैर फल देने की बात कही तो बच्चे ने घर में आकर माता-पिता को बताया। माता-पिता ने जब उस से पूछा कि आपने पैसे क्यूं नहीं लिए तो नौजवान ने उत्तर दिया कि हमारे गुरु जी का उपदेश है कि वंड के छको यानि बांट के खाओ। वे लोग इतने प्रभावित हुए कि अब वे अकसर डिब्बे में कुछ खाने को ले आते उस पर लिखा होता वंड के छको। यह भावना उन लोगों में भी पैदा हो गई। वे लोग इसे अपनाने लगे। पंजाब का सभ्याचार ऐसा है जो विदेशियों में भी परिवर्तन ला सकता है और अपना सर गर्व से ऊंचा कर सकता है।

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