– मनोहर चमोली ‘मनु’

महानगरों में ही नहीं हर छोटे-बड़े शहरों में आलीशान और महंगे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुले हुए हैं। जिनमें विलासितापूर्ण वस्तुएं, रसोई और घर से संबंधित वस्तुएं, पहनने के कपड़े, जूते आदि तक मिलते हैं। महंगे और नए-नए उत्पादों की भरमार तो रहती ही है।

राजश्री हर महीने हज़ारों रुपए की शॉपिंग करती है जिसमें सौंदर्य प्रसाधन, घर की साज-सज्जा से संबंधित वस्तुएं और पहनने के कपड़े होते हैं। वो बताती है कि टी.वी. पर विज्ञापनों को देखने के बाद ही वह ख़रीदारी करने जाती है। अनिता धीमान बताती है कि वो अकसर सुपर मार्केट के चक्कर लगाती हैं और पसंद आने पर ढेरों चीज़ें ख़रीद लेती हैं। उनकी ख़रीदारी में महंगी वस्तुएं भी होती हैं। सेल पर मिलने वाली वस्तुएं तो वह कभी छोड़ती ही नहीं। राजपाल सिंह बताते हैं कि उनके पास ख़रीदारी करने का समय ही नहीं है। लेकिन उनकी पत्नी कनुप्रिया को शॉपिंग करने का बहुत शौक़ है। कनुप्रिया हर महीने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कपड़े ख़रीदती है। कनुप्रिया के पास नए पुराने सभी डिज़ाइनों की एक से बढ़कर एक साड़ियों का नायाब कलेक्शन है। कॉलेज छात्र मुकेश कुमार जीन्स और टी-शर्ट के शौक़ीन हैं। उनके पास फ़िल्म अभिनेताओं द्वारा पहनी गई जीन्स की तरह दर्जनों जीन्स हैं। मुकेश कुमार बताते हैं कि उन्होंने पिछले हफ़्ते 1100 रुपए की जीन्स ख़रीदी है।

इस तरह हर वर्ग अपनी रुचियों और क्षमताओं के अनुसार ख़रीदारी करता है। एक अनुमान के अनुसार ख़रीदारी पर होने वाले ख़र्च का लेखा-जोखा करने वालों की संख्या बहुत कम है। भारत में मात्र पन्द्रह फ़ीसदी ख़रीदार ख़रीदारी का लेखा-जोखा रखते हैं। दिलचस्प बात है कि ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या तो बेहद कम है जो ख़रीदारी करने से पूर्व लिस्ट बनाते हैं। अधिकांश उपभोक्ता शॉपिंग कॉम्प्लेक्स पहुंचकर ही सोचते हैं कि उन्हें क्या-क्या ख़रीदना है।

हमारे देश में पश्चिमीकरण का प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहा है। केबल टी.वी. संस्कृति, सिनेमाई फ़ैशन, प्रतिस्पर्धा की भावना, अचूक धन-सम्पत्ति, फ़ैशन और दिखावे की प्रवृत्ति ने शॉपिंग को बढ़ावा दिया है। ज़रूरत के मुताब़िक की जाने वाली शॉपिंग को छोड़कर अनावश्यक की जाने वाली ख़रीदारी की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। बेवजह की जाने वाली ‘शॉपिंग’ की प्रवृत्ति महिलाओं और नौजवानों में ज़्यादा है। धनाढ्य परिवारों में अनावश्यक ख़रीदारी जहां ‘स्टेटस सिंबल’ का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर मध्यमवर्ग का भी, देखा-देखी इस अन्धी दौड़ में शामिल होना मजबूरी बन गई है। सम्पन्न परिवारों को तो इस प्रकार की ख़रीदारी से कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन मध्यम व निम्न वर्गीय परिवार में इस प्रकार की ख़रीदारी से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिवार का मासिक बजट बिगड़ जाता है। आय से अधिक ख़र्च हो जाने पर महीने के आख़िरी दिनों में कई दिक्क़तें पैदा हो जाती हैं। आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उधार लेने की आदत पड़ जाती है। सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आने लगती है। परिणामस्वरूप मानसिक तनाव के चलते घर में कलह होने की सम्भावनाएं प्रबल हो जाती हैं।

अनिश्चित भविष्य और बढ़ती महंगाई के इस दौर में व्यक्ति को बचत करने की आदत डालनी चाहिए। घर के मुखिया को सूझ-बूझ से घर का मासिक बजट बनाना चाहिए। जिससे वह मासिक आय और व्यय में संतुलन बनाए रख सके। गृहिणी को उन वस्तुओं की सूची बनानी चाहिए जिनकी ख़रीदारी को फ़िलहाल टाला जा सकता है। इसके साथ-साथ परिवार के ख़र्चों पर बारीकी से नज़र डालते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे कौन से ख़र्चे हैं जिन्हें रोका जा सकता है।

अगर इन सभी बातों का ध्यान रखा जाए तो निश्चित रूप से सीमित आय में भी पूरे महीने का ख़र्च आसानी से उठाया जा सकता है। इसके साथ-साथ परिवार के आकस्मिक ख़र्चों के लिए बचत भी बढ़ाई जा सकती है।

One comment

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