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समलैंगिकता की यूं तो बाहर के यानि पश्‍च‍िमी देशों से शुरूआत हुई है। लेकिन इन दिनों हमारे देश में भी यह ज़ोर पकड़ती जा रही है। पश्‍च‍िमी संस्कृति से प्रभावित हो हमारे देश में भी खुलेपन में इज़ाफ़ा हुआ। इसी के साथ समलैंगिकता ने भी अपने पाँव पसार लिए हैं।

Dr. SPS Virk_1यदि हम पुरातन साहित्य का अध्ययन करें तो हम यह नहीं कह सकते कि हमारे देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ लेकिन हमारे देश की कट्टर परम्पराओं के कारण इस पर कभी खुल कर बात नहीं हुई और न ही इसे कभी खुले तौर पर स्वीकारा गया ।

पश्‍च‍िमी देशों में किसी भी मुद्दे पर खुलकर बात की जा सकती है चाहे वो बात उचित हो या कितनी भी अनुचित। वास्तव में वहाँ सही मायने में लोकतन्त्र है। इंग्लैंड, जर्मनी तथा बहुत से अन्य देशों में तो समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल गई है। वहाँ समलैंगिक लोग शादी कर सकते हैं और अपने घर बसा सकते हैं। कुछ देशों में समलिंगी पुरुषों (होमियोसेक्चुयल) और समलिंगी स्त्रियों (लेस्बियन) के लिए कुछ क्षेत्र आरक्षित रखे गए हैं। इन लोगों के लिए क्लब बन गए हैं। यानि इन को हर प्रकार से अपने शौक़ पूरे करने की स्वतंत्रता मिल गई है, जीने की स्वतन्त्रता मिल गई है।

अमेरिका इत्यादि देशों में तो माना जाता है कि व्यक्ति को हर प्रकार से जीने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी का आनंद उठाने को वे अपनी स्वतंत्रता मानते हैं। पर हमारे देश में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता ।

यदि आप मेरी राय इस बारे में पूछें तो मैं इसके बिल्कुल विरुद्ध हूँ। हमारे समाज की सभी संस्थाओं को, सभी समितियों को और सभी वर्गों को चाहिए कि खुलकर इसका विरोध करें। आधुनिक परिस्थितियों को देखते हुए प्रतीत होता है कि इसके विरोध में उन सब लोगों को खुलकर सामने आना चाहिए जो इसके ख़िलाफ़ हैं।

यदि हम सेक्स शिक्षा सम्बन्धी बात करें तो हमारा देश पहले से इस बारे में जागरूक है, जागरूकता की कोई कमी नहीं है। सदियों पहले बने खजुराहो और एलोरा के मन्दिरों में पुरुष और स्त्री की संभोग क्रियाओं से युक्‍त तस्वीरें दिखाई गई हैं। यदि ग़ौर किया जाए तो लगभग 1015 वर्ष पुराने इन मंदिरों में सेक्स के कई आसन बताए गए हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि उन मूर्तियों में भी समलिंगी कामना ग्रस्त जोड़े की कोई मूर्ति नहीं है यानि हमारे समाज में इस बात को कभी मान्यता प्राप्‍त नहीं हुई।

हालांकि मैं इसके विरोध में हूँ, पर फिर भी मेरा यह मानना है कि यदि कोई ऐसा जोड़ा है तो उनको चुपचाप अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जी लेनी चाहिए। इस बात का शोर नहीं मचाना चाहिए। मीडिया में नहीं आना चाहिए। जैसे पीछे अमृतसर में हुआ। ज़्यादा शोर-शराबा करके कम से कम बाक़ी समाज को तो प्रदूषित न करें।

हो सकता है कि कुछ लोगों को हॉर्मोनल समस्याएं होने के कारण ऐसी समस्या आती हों जिसका उपचार होना चाहिए। एक धारणा यह भी है कि विपरीत लिंगी आसानी से न मिलने के कारण वे लोग इसे ही सुविधाजनक मान लेते हैं जो कि क़तई तर्कसंगत नहीं है।

यदि इसे वैज्ञानिक तौर पर देखें तो यह प्रकृति के विरुद्ध है। प्राकृतिक तौर पर केवल नर और मादा के शारीरिक सम्बन्ध ही उचित हैं और उनका बच्चे पैदा करना भी प्राकृतिक है। इसके विपरीत समलैंगिक क्रियाएं बहुत घृणित हैं। नर के लिए नर और मादा के लिए मादा सेक्स का कोई ज़रिया नहीं है। बल्कि यह बेहद बुरा है।

प्रकृति ने शारीरिक संबंध बच्चों को जन्म देने के लिए बनाए हैं। यह सिर्फ़ संसार को आगे चलाने के लिए हैं। मनुष्य ने इसे अपने आनंद के लिए एक मनोरंजन का साधन बनाया है।

सेहत विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यह बिल्कुल अस्वास्थ्यप्रद है। इसलिए इसे बढ़ावा देने पर रोक लगानी चाहिए। मीडिया को भी इस बारे में सतर्क रहने की आवश्यकता है।

मीडिया को चाहिए कि इसके एक पक्ष को ही सामने न लाकर बाक़ी पहलुओं पर भी ग़ौर करे। इसको सनसनीख़ेज़ न बनाते हुए स्वस्थ विचार-विमर्श के रूप में ही दिखाए।

– डॉ. एस.पी.एस. विर्क

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