आनन्द कुमार अनन्त
एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध सेवन मौजूदा समय में एक विस्तृत स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। अधिकांश लोग चिकित्सक से परामर्श किए बग़ैर अपनी मर्ज़ी से औषधियों का सेवन कर लेते हैं जिससे वे बीमारी से निजात पाने के बजाए अनेक गंभीर दुष्प्रभावों एवं बीमारियों से घिर जाते हैं। पटना के डॉ. सत्येश सत्यम् के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित एवं अंधाधुंध सेवन से लोग दस्त, पीलिया, खुजली जैसी समस्याओं के साथ अनेक बीमारियों के शिकार बन सकते हैं।
आजकल लोग हर किसी तकलीफ़ में चिकित्सक से सलाह लिए बग़ैर ही अपने आप या किसी कैमिस्ट से पूछ कर एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने लगते हैं। इससे जीवाणुओं में इन औषधियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाती है और ये एंटीबायोटिक दवाइयां बेअसर हो जाती हैं। कई मरीज़ तो तीन-चार एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन कर लेते हैं।
यही नहीं, कई चिकित्सक विषाणुओं से होने वाली (वायरल) एवं फंगस से होने वाली (फंगल) बीमारियों में भी मरीज़ को एंटीबायोटिक दवाइयों के सेवन की सलाह देते हैं जबकि इन बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाइयों की कोई भूमिका नहीं होती। आमतौर पर वायरल बुख़ार पौष्टिक आहार एवं आराम करने पर स्वतः ही ठीक हो जाता है। कई रोगी चिकित्सक से स्वयं ही एंटीबायोटिक औषधियों को लिखने का आग्रह करते हैं।
एंटीबायोटिक दवाइयों के अधिक सेवन से मुंह में छाले भी उत्पन्न हो सकते हैं। पूरे शरीर में खुजली की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। एंटीबायोटिक दवाइयों के लगातार इस्तेमाल से होने वाली समस्या ‘सूडो मैम्ब्रेसन कोलाइटिस’ भी कहलाती है। इनके अधिक सेवन से ‘ड्रग फ़ीवर’ भी हो सकता है यह भी देखा गया है कि 30 से 40 प्रतिशत मरीज़ों ने एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रयोग बंद कर दिया तो उनकी बीमारी स्वयं ही दूर हो गई।
कई मरीज़ों की धारणा होती है कि उन्हें अधिक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाइयां अधिक फायदा करेंगी परन्तु वास्तविकता यह है कि कोई भी दवाई अधिक या कम शक्तिशाली नहीं होती। ज़रूरत के अनुसार समुचित औषधियों के इस्तेमाल से ही मरीज़ को लाभ हो सकता है। कई लोगों की धारणा यह भी होती है कि एंटीबायोटिक दवाइयां नुक़सानदायक एवं दुष्प्रभाव पैदा करने वाली ही हुआ करती हैं इसलिए वे ज़रूरी होने पर भी इन दवाइयों का प्रयोग नहीं करते यह जानना आवश्यक है कि इन दवाइयों से कतराने पर संक्रमण जानलेवा भी हो सकता है।
जीवाणु-संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक दवाइयां नहीं लेने पर संक्रमण पूरे शरीर में फैलकर ‘सेप्टीसिमियां’ का रूप ले सकता है, जिससे गुर्दे एवं अन्य महत्वपूर्ण अंग ख़राब हो सकते हैं। दरअसल संक्रमण तभी होता है जब जीवाणु शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली को पराजित कर देते हैं। ऐसे में जीवाणुओं को मारने के लिए एंटीबायोटिक औषधियों का सेवन आवश्यक होता है।
एंटीबायोटिक दवाइयों के सेवन से पहले मरीज़ के रक्त के नमूने का कल्चर करके देखा जाना चाहिए ताकि यह पता लग सके कि किस क़िस्म का बैक्टीरियल संक्रमण है तथा उस मौसम में कौन सा जीवाणु अधिक सक्रिय है। आजकल कुछ ऐसी एंटीबायोटिक दवाइयां भी विकसित हो चुकी हैं जिन्हें एक ही बार लेने की ज़रूरत पड़ती है।
अक्सर यह भी देखा जाता है कि कई चिकित्सक मरीज़ को एंटीबायोटिक दवाई की कम डोज़ ही लेने की सलाह देते हैं लेकिन कई बार इससे कोई लाभ नहीं होता। दरअसल दवाई कि खुराक मरीज़ की उम्र एवं शारीरिक वज़न के हिसाब से ही दी जानी चाहिए।
मिसाल के तौर पर साधारण तौर पर उपयोग की जाने वाली दवाएं जैसे एम्पीसिलीन, एमोक्सीसिलीन की 500 मिलीग्राम की खुराक 50 किलोग्राम वज़न के मरीज़ को दिन में दो से चार बार तक दी जाती है। लेकिन चिकित्सक अधिकतर 250 मिलीग्राम की खुराक ही दो से चार बार तक दिया करते हैं। कम खुराक में दवाइयां लेने पर जीवाणुओं में दवाई के ख़िलाफ़ प्रतिरोधिक क्षमता विकसित होती है।
इसके अलावा एंटीबायोटिक दवाइयां जितने दिन लेने को कहा जाए, उतने दिन अवश्य लेनी चाहिए। अक्सर यह देखा जाता है कि मरीज़ ठीक होते ही एंटीबायोटिक दवाइयां लेनी अपने-आप ही बंद कर देता है लेकिन ऐसी स्थिति में वह एंटीबायोटिक दवा बेअसर हो जाती है।