-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

मनुष्य जन्म से ही संवेदनशील, जिज्ञासुु, कल्पनाप्रिय, तर्कशील, आकांक्षारत तथा अनुसंधानकर्ता रहा है। नये-नये स्थानों की खोज, नये-नये आविष्कारों और प्राकृतिक रहस्यों को जान लेने की धुन उस पर सदा सवार रही है। प्राकृतिक सौन्दर्य, पर्वतों, पहाड़ों, झीलों, नदियों, ग्लेशियरों तथा स्मरणीय स्थानों के प्रति उसके मन में सदैव आकर्षण रहा है। सुन्दर-सुन्दर जीवों, पशुओं और पक्षियों के अतिरिक्त उपवन, गुलशन विभिन्न प्रकार के आकाशीय पिण्ड देखने की अभिलाषा उसके हृदय को विचिलत करती रही है। वह आकाश में उड़ना चाहता है, पक्षियों की तरह अपने परों से आसमान नापना चाहता है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने पांव तले ज़मीन को नाप ले। नये-नये देशों की परिक्रमा करे। उनमें स्थापित दर्शनीय स्थानों की अपनी यात्रा को अपना लक्ष्य बनाये। संसार को जानने की इच्छा पर उसे किताबों के अध्ययन, लोगों की ज़ुुबानी या किसी के द्वारा की गई यात्रा संस्मरणों से सचना मिलती है। रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से भी यह जानकारी अब सम्भव है। जब ये साधन नहीं थे तब भी विभिन्न देशों के यात्री संसार को जानने के लिये निकल पड़ते थे। और अपनी यात्रा का वृत्तांत अपनी डायरी में अंकित कर देते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग, फ़ाहियान का ज़िक्र इतिहास के पन्नों में अंकित है। भारत को सोने की चिड़िया समझकर अनेक विदेशी अमीर बनने की चाह में भारत पहुंचे हैं।

मनुष्य आज चन्द्र पर जा रहा है तो यह उसकी जिज्ञासा की ही भूख है। इसी प्रकार अनेक राजाओं तथा पर्यटनकारियों को संसार के प्रसिद्ध नगरों और उसमें स्थापित दर्शनीय पिरामिडों, मकबरों, गिरजा घरों, मन्दिरों और मस्जिदों को देखने की अभिलाषा ने प्रेरित किया है। कौन नहीं चाहता कि वह दुनिया की सैर करे। वहां की संस्कृति, कल्चर, रहन-सहन, जलवायु तथा रीति-रिवाज़ों से परिचित हो।

सबका दिल चाहता है कि कैनेडा के लयाब-आई हौज, बंफ नैशनल पार्क को देखे। सी.एन.टावर को देखकर भरपूर आनन्द उठाये। कैपिलानो, सस्पेंशन पुल का लुत्फ़ उठाये, अथाबस्का ग्लेशियर तथा जसपर नैशनल पार्क को देखकर अपनी स्मृतियों में समा ले। फ्रांस का अदभुुत ऐफिल टॉवर भी यात्रियों के मन को मोह लेता है। यदि यू. एस. ए में जाने का अवसर मिले वो ग्रैंड कैनियन पार्क, स्टैचूू ऑफ लिबर्टी, नैशनल म्यूज़ियम, गोल्डन गेट ब्रिज, वॉल्ट डिज़्नी वर्ल्ड रिज़ॉर्ट आपकी बुद्धि को हैरत में डालता है। इसी तरह इंग्लैंड का बिग बेन, स्टोनहैंज रिवर, थेम्स, ब्रिटिश म्यूज़ियम, विंडसर कैसल मन के कई पर्दे खोलता है। हैंगिग गार्डन ऑफ बेबीलोन के दर्शन आपको तिलिस्म की दुनिया में ले जायेंगे।

दुनिया के सेवन वंडर्ज़ तो आपको चौकुण्ड से कम नज़र नहीं आयेंगे। इन सात अजूबों में भारत का ताजमहल, चीन की 4000 मील की दीवार, क्राइस्ट द रिडीमर, स्टैचू ऑफ ब्राज़ील, द रोमन कोलोसियम, रोम तथा पेट्रा जॉर्डन ऐसी कला कृतियां हैंं जो धरती का स्वर्ग हैंं। यह भी सत्य है कि इन देशों की यात्रा या तो कोई अमीर व्यक्ति या फकीर ही कर सकता है। जन साधारण के पास इतना सरमाया नहीं होता कि अपनी इच्छा की पूर्ति कर सके। परिवार के झंझटों और आर्थिक तंगी की वजह से सारी उम्मीदें, तमन्नायें और इच्छायें धरी की धरी रह जाती हैं। चाहकर भी व्यक्ति मन मसोस कर रह जाता है। नानक, कबीर की भांति हर कोई दुनियां की परिक्रमा नहीं कर सकता। बुद्ध की भांति कोई विदेशों में नहीं घूम सकता। घूमने के लिये धन और समय आवश्यक हैं। घरेलू चिन्तायें ज़ंजीरों में जकड़े रखती हैं। पुरुष भी विवश हैं और महिलायें भी मजबूर हैं। हर एक आदमी की अपनी परिस्थितियां होती हैं।

भारत के छज्जू राम की परिस्थिति अनुकूल थी। उसने सुन रखा था कि अफ़ग़ानिस्तान के दो शहर बलख और बुखारा दुनिया के अजीबो गरीब और दर्शनीय स्थान है। इन शहरों की खूबसूरती अदभुुत और न्यारी है। वहां के लोग महिलायें, पुरुष आदि सुन्दर और सुडौल है। छज्जू राम यात्रा करने का बड़ा शौक़ीन था। उसने इस से पहले भी कई यात्राएं की थी। अब की बार उसने बलख और बुखारा देखने का मन बनाया था। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतुु वह घूमता-घूमता अफ़ग़ानिस्तान में चला गया था। अफ़ग़ानिस्तान में शुष्क मेवे, घोड़ों की नस्लें, आली शान बाज़ार और पहाड़ी झरने और झीलें देखकर उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा।

बुखारा के लयाब-आई हौज, मिरी अरब मदरसा, चश्मा अयूब मकबरा तथा मैगोकी अटोरी मस्जिद को देखकर वह दंग रह गया। इन दर्शनीय स्थानों को उसने कई बार देखा और दिल की जिज्ञासुु प्यास बुझाई।

बलख के अमु दरिया ने उसे बहुत पुलकित किया। हिस्टोरिकल सैंटर ऑफ बुद्धिज़्म और इस्लाम के तो कहने ही क्या थे। ये स्थान किसी तीर्थ स्थान से न्यून नहीं था। यहां इसने अफ़ग़ानिस्तान के प्रसिद्ध शायर की याद में खुरासान का मक़बरा भी देखा जो शिल्प कला और चित्रकला का नमूना था। यह शहर इतना आकर्षक था कि छज्जू का जी चाहे कि यहां ही बस जाए। परन्तु धन की कमी उसे अखरने लगी थी।

उसे न कोई बलख में जानता था न बुखारा में। वह अजनबी बनकर रह रहा था। होटलों, बाज़ारों में बेशक उसको खाने-पहनने, सोने, नहाने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की सुविधा उपलब्ध थी। परन्तु वह समाज और अपने लोगों से कटा-कटा महसूस करने लगा था। अकेलेपन से उसे बोरियत होने लगी थी। एक सामाजिक प्राणी अपने मित्रों, साथियों, सगे-संबंधियों और परिवार से विमुख तन्हाई की आग में तड़पने लगा था।

सामाजिक बन्धन होते ही ऐसे हैं। समाज से दूर या तो देवता रह सकता है या जंगली पशु। हम अपनी आम ज़िन्दगी में यदि रिश्तेदारों के घर भी जायें तो एक दो दिन में ऊब जाते हैं चाहे हमें कितनी ही सहूूलतें मिलें। विवाह शादियों में भी हम ज़्यादा देर नहीं ठहर सकते, घर की तड़प हमें सताती रहती है। छज्जू राम भी लम्बी यात्रा के बाद अपने घर पहुंच गया था। अपने मित्रों और सम्बधियों से मिलकर जो उसे सुकून मिला वह बताये नहीं बन रहा था। अपने घर में कोई उसे रोक-टोक नहीं थी। कोई कानून का बन्धन नहीं था। वह स्वतंत्र और खुलापन अनुभव कर रहा था।

उसने लम्बी सांस खींचते हुये कहा “जो सुख छज्जू दे चौबारे न बलख न बुखारे।” अर्थात् घर जैसा स्वर्ग कहीं भी नहीं है।

अंग्रेज़ी में तो कहावत है East or west home is the best 

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