-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम पहले कभी आया न था – क़तील शिफ़ाई
बरसात का मौसम आते ही रिमझिम फुहारों के बीच गर्मी से राहत पाने के लिये नहाने को जी चाहता है। पार्कों बग़ीचों में सैर सपाटे के बीच कपड़े भीग जाने की चिन्ता नहीं होती अपितु पहने हुए गीले कपड़ों में आनन्द मिलता है। यह मज़ा और भी दुगना हो जाता है यदि किसी पर्वतीय रमणीय स्थान पर जीने का अवसर प्राप्त हो जाए। बरसात में नदियां, नाले़ और झरने अपने यौवन पर होते हैं। जिनमें स्नान करने और तैराकी का आनन्द लेते हुए मन विभोर हो जाता है। गांवों और शहरों के नन्हे बच्चे नंग-धड़ंग होकर बहती हुई नालियों में कश्तियां काग़ज़ की बनाकर, उन्हें पानी में बहाकर खुशी से नाच उठते हैं।
आषाढ़ की संक्रान्ति से बरसात का मौसम शुरू हो जाता है, उस दिन को धर्म दिहाड़ा कहते है, लोग अपने पितरों के लिये घड़ों में पानी भरकर दान करते हैं। टूटे घड़े के गले जैसे भाग को राड़े कहा जाता है। इस दिन से कन्याएं इन राड़ों को ज़मीन में गाड़ कर रंगों से हर इतवार को विभिन्न रंगों से चित्र के रूप में रंगोली सी बनाती हैं। कई प्रदेशों में ससुराल वाले त्योहार के रूप में सकोलड़े यानी झुमके भेजते हैं। मिजरों का त्योहार भी इसी महीने में आता हैं। सावन संक्रान्ति को राड़े बहते हुए पानी में प्रवाह कर दिये जाते हैं।
इन राड़ों को चित्रते हुए लड़कियां गीत भी गाती हैं। उड़ मर, कूंजड़ीए अड़ीए नी सौण आया।
उत्तर में भी अपने आप ही गाती हैं – किवें उड़ां नी मड़ीए देस पराया।
सावन में तीज का त्योहार भी मनाया जाता है। लड़कियां पींग [झूले] के हुलारे लेकर तीज का त्योहार मनाती हैं, नाचती-कूदती और मनोरंजन करती हैं।
सावन महीने में रिमझिम बरसात में दिल जैसे तली हुई चीज़ें खाने को होता है और तब समोसा, पकौड़े खटाई के साथ मज़े से खाते हैं। चिरकाल से सावन के महीने में मैदे की चरोलियां, पूड़े खीर का सेवन करने की जैसे रिवायत सी है तथा घी शक्कर और आटे की तली हुई सेंवइयां पकाकर खाने में जो लुत्फ़ आता है, वह आजकल की बनावटी मिठाइयों से लाख दर्जे बेहतर था। बरसात के मौसम में तंदूर में पकाई हुई रोटी को आचार के साथ खाने से बड़ा स्वाद आता है। बरसात के मौसम में सावधान रहने की भी आवश्यकता है, इस मौसम में कीड़े-मकोड़े, झींगुर, कॉक्रोच, गंडोए, मच्छर, मक्खियां और कीट पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं इसलिए घर के आस-पास गन्दगी के ढेर नहीं रहने देने चाहिये। गन्दे पानी में नहीं नहाना चाहिये नहीं तो चमड़ी के रोगों का ख़तरा हो जाता है। बाढ़ से भी सावधान रहना चाहिये ताकि बरसात के मौसम का भरपूर आनन्द उठाया जाए।