kamaljit sangha

samlangik

“समलैंगिक रिश्ता” आजकल इस विषय पर बहुत बवाल या यूँ कहें कि धमाल मचा हुआ है। जब इस समाज में कुछ नया होता है तो शोर-शराबा होना बहुत ही आम बात है। कुछ दिन शोर होता है, विरोधी बोलते हैं, जब उनका वेग शांत हो जाता है तो चुपचाप समुंद्री झाग की तरह बैठ जाते हैं और जो कुछ नया हुआ होता है वह अपनी गति से आगे बढ़ता रहता है। क्या कभी किसी ने देखा है कि kamal preet singhजनता की चीखो-पुकार पर कुछ नया होता रुका हो।

अगर कुछ लोगों को समलैंगिक रिश्ते बना कर प्यार और खुशी मिलती है तो इसमें बुरा क्या है? हर एक इन्सान की अपनी ज़िंदगी है, वह चाहे जिस तरह भी इस्तेमाल करे? अगर कोई समलैंगिक रिश्ते बना कर अपनी जिस्मानी, रूहानी ज़रुरतें पूरी कर रहा है तो क्या बुरा है? हाँ, फ़ायदा ज़रूर है। सबसे मेन तो यह फ़ायदा है कि जो बच्चे लड़के-लड़कियों के नाजायज़ संबंधों से पैदा होकर गटरों, नालों, झाड़ियों में रुलते-फिरते हैं। उनकी गिनती कुछ कम हो जायेगी क्योंकि समलैंगिकों के यहाँ तो बच्चा पैदा होने से रहा और जब पैदा ही नहीं होगा तो रुलेगा कहाँ से? भारत की जनसंख्या में भी थोड़ी कमी आ सकती है और आपसी रिश्ते से वह एक–दूसरे को भावनात्मक सहयोग भी देंगे।

समलैंगिक रिश्ते वाले एक दूसरे का रूप भी धारण करते है। पुरुष वेष धारण कर स्त्री अपने को कुछ हद तक मज़बूत समझने लगती है और पुरुष भी स्त्री का रूप धारण कर जान जाता है कि बेचारी स्त्री क्या-क्या सहन करती है।

मेरे विचार में हमें इन रिश्तों से कोई आपत्त‍ि नहीं होनी चाहिए। सबसे ज़रूरी चीज़ है इन्सान की खुशी और अगर ऐसे इन्सान को खुशी मिले तो हमें क्या दु:ख? फ़िल्म ‘रूल, प्यार का सुपरहिट फ़ारमूला’ में समलैंगिक रिश्तों को बहुत अच्छी तरह समझाया गया है और कुछ ऐसा ही नज़ारा हमें अमृतसर में भी देखने को मिला था कि कैसे प्यार में हारा इन्सान जान तक देने को तैयार हो जाता है। तो हमें किसी की जान लेने की क्या पड़ी है?

कुछ लोग समाज की दुहाई देते हैं। क्या उन्हें नहीं पता इसी समाज की देन हैं यह रिश्ते। पहले समाज बढ़ावा देता है और जब उसे अपना पतन दिखाई देता है तो चीखता है, चीखने से पहले क्यों नही सोचता।

अब जबकि रिश्ते बन रहे हैं, टूट रहे हैं तो हमें क्या दु:ख, भई चलने दो।

-कमलजीत सांघा

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