-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

भारत में जनसंख्या में वृद्धि का अलंकृति नाम जनसंख्या विस्फोट है। बढ़ती आबादी की समस्या सारे संसार में उथल-पुथल मचा रही है परन्तु भारत में यह समस्या बड़ी विकट होती जा रही है। प्रत्येक दस वर्ष के बाद जनगणना होती है। प्रत्येक जनगणना में जनसंख्या में वृद्धि की मिक़दार बढ़ती जा रही है। भारत की स्वतंत्रता के समय यह आबादी लगभग 35 करोड़ थी जो अब बढ़कर 135 करोड़ हो गई है। इसलिए बढ़ती हुई आबादी देश की प्रगति में अवरोध पैदा कर सकती है। भारत में जन्म दर मृत्यु दर की अपेक्षा कहीं ज़्यादा है इसलिए आबादी का बढ़ जाना कोई हैरत नहीं है। इस बढ़ती हुई आबादी ने जीवन की गति को थाम लिया है। जिसके कारण जनता को हर क्षेत्र में समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। शुक्र है कि अब सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने सन् 1975 में बढ़ती आबादी को रोकने के लिये नसबन्दी अभियान चलाया था। परन्तु इस अभियान के लिये लोगों को जागरूक नहीं किया गया था बल्कि ज़बरदस्ती पकड़ कर पुरुषों और स्त्रियों के सन्तान रोधक ऑप्रेशन किये जाते थे। जिस कारण यह नीति असफल रही और इन्दिरा गांधी बुरी तरह परास्त भी हुई थी। 

भारत के लोग धार्मिक आस्था से जुड़े हैं। और उनकी प्रवृत्ति यह है कि बच्चे भगवान् की देन हैं इसलिए सन्तान उत्पत्ति में अवरोध भगवान् की मरज़ी के ख़िलाफ़ है। मुस्लिम वर्ग में बहुविवाह प्रथा विद्यमान है इसलिए उनके परिवार भी लम्बे चौड़ेे होते हैं। भारत में अभी भी अनपढ़ता और रूढ़िवादिता का बोल-बाला है। लोग यह मानने के लिये तैयार ही नहीं कि जनसंख्या पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है। और बच्चों को भगवान् की देन समझ कर पैदा किए जाना कोई समझदारी नहीं है। यह उनके अपने वश की बात है, वो चाहे तो गर्भ निरोधक गोलियों से, कॉपर टी या नसबन्दी ऑप्रेशन या निरोध के प्रयोग से सन्तान की उत्पत्ति में लगाम लगा सकते हैं परन्तु कोई माने तब न?

भारत की आबादी चीन के बराबर पहुंच चुकी है और आने वाले वर्षों में यह उससे भी अधिक बढ़ जाएगी। शायद लोग यह नहीं जानते कि चीन का क्षेत्रफल एरिया भारत के मुक़ाबले बहुत बड़ा है। चीन की गिनती विकसित देशों में है। उसके आय के संसाधन भारत से कहीं अधिक हैं और उसको वीटो पावर भी हासिल है। भारत अभी विकासशील देश है। इसको सामर्थ्यवान बनने और विकसित देश कहलाने में अभी और वर्ष लगेंगे। यह हमारा दुर्भाग्य है कि यदि संसार के लोगों की एक लम्बी लाइन लगाई जाए तो हर छठा व्यक्ति भारतीय होगा।

मैनुअल पावर किसी देश की प्रगति के लिये आवश्यक है परन्तु आधुनिक युग मशीन और टेेकनोलॉजी का युग है। मशीनें सैंकड़ों आदमियों का कार्य अकेले कर सकती हैं। जे.सी.पी मशीनें, बुल्डोज़र कई आदमियों को मात दे सकतेे हैं। कम्प्यूटरीकरण ने कार्य को बहुत सरल बना दिया है। संचार और यातायात के साधन बड़े आसान हो गये हैं। इसलिए बढ़ती हुई आबादी किसी भी रूप में फ़ायदेमंद नहीं है।

परन्तु यह बढ़ती हुई आबादी किस कारण इस अवस्था में पहुंची है। भारत में इतनी ग़रीबी है कि 20 करोड़ लोगों के पास रात का खाना नहीं है, सोने केे लिये छत नहीं हैं, पहनने के लिये कपड़े-जूते नहीं हैं। न उनके पास टेेलीविज़न है, न रेडियो, न मोबाइल। मनोरंजन का कोई साधन न होने के कारण वे लोग सड़कों पर ही बच्चों को जन्म दे देते हैं। चाहे कुपोषण के कारण यह बच्चे बीमारी का शिकार हो कर मर जाएं परन्तु उनकी यह लीला जारी रहती है।

अब सरकार चिंतित है कि इस बढ़ती हुई आबादी से कैसे छुटकारा पाया जाये। गत वर्ष 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा है कि जनसंख्या विस्फोट भारत की प्रगति के लिये घातक है और इसके लिये किसी उपचार की आवश्यकता है। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा है कि प्रत्येक भारतीय को इस विषय में गहरे चिंतन और मंथन की ज़रूरत है। हम इस समस्या के कारण मूल-भूत आवश्यकताओं से वंचित हो जायेंगे। उनका संकेत छोटे ओर सीमित परिवार रखने की ओर था। शायद इस विषय पर भी कानून बन जाए कि दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर परिवार में दम्पति को मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाएगा। तीन तलाक़ का जिस प्रकार ख़ात्मा हुआ, जैसे जम्मू कश्मीर अनुच्छेद 370 और 35A की कानून बनाकर समाप्ति हुई निकट भविष्य में हम दो हमारे दो का कानून बना दिया जाए।

वास्तव में बढ़ती हुई आबादी को रोकना ही उपयुक्त है। छोटा परिवार सुखी परिवार होता है जबकि बड़ा परिवार दु:खों का कारण होता है। हमारी मूल-भूत आवश्यकतायें रोटी, कपड़ा और मकान की हैं।

हमारी भूमि का आकार छोटा होता जा रहा है। बड़े-बड़े कारखानों, नहरों, सड़कों और विशालकाय भवनों ने भूमि को छोटा कर दिया है। इतनी जनता के लिये न तो धरती गुज़ारे लायक़ अन्न उगा सकती है, न कपास, पटसन, सूती रेशमी कपड़े उपलब्ध करा सकती है। मकान बनाने के लिये वनों का कटाव भी हमें जोखिम में डाल रहा है। इतनी जनता के लिये घर कहां से बनेंगे शौचालय कहां से बनेंगे।

बड़े परिवारों में सभी बच्चों को शिक्षा दिलवाना कठिन हो जायेगा। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भीड़ के कारण दाख़िला उपलब्ध नहीं होगा। यदि हो भी गया शिक्षा प्राप्त करने के बाद इतनी जनसंख्या को नौकरी कहां से मिलेगी। डॉक्टर, इंजीनियर और दूसरे कोर्स प्राप्त विद्यार्थी रोज़गार प्राप्त नहीं कर सकते।

रेलों का, बसों का और हवाई सफ़र भी प्राप्त नहीं होगा। अस्पतालों में इतनी भीड़ है कि AIMS और P.G.I जैसेे नामी सरकारी अस्पतालों आदि में प्रवेश के लिए महीनों इन्तज़ार करना पड़ता है। प्राइवेट अस्पतालों का ख़र्च ग़रीब आदमी सहन नहीं कर सकता। सरकार उज्ज्वला योजना चलाये या आयुष्मान, इसका कभी बढ़ती हुई आबादी में सभी को लाभ नहीं मिल सकता।

बढ़ती हुई आबादी स्वच्छता की समस्या पैदा करती है। पानी, वायु का प्रदूषण फैल रहा है, जल संकट बढ़ रहा है। दूध, दही-मक्खन, घी की क़िल्लत हो रही है। संतुलित आहार नदारद है। फल-सब्ज़ियां महंगी हो रही हैं। बढ़ती आबादी ने महंगाई को जन्म दिया है जिसके कारण ख़रीदारी में आम आदमी की कमर टूट गई है। इस बढ़ती हुई आबादी में डिजिटल न्यू इंडिया या मेक इन इंडिया कैसे बनेगा। शिक्षा, विवाह शादियों के वस्त्र और सोने चांदी के मूल्य आसमान को छू रहे हैं।

देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिये बारूद, वर्दियां, ऐम्युनिशॅन टैंक, लड़ाकू जहाज़, पनडुब्बियां कहां से ख़रीदेगें। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सोना आयात निर्यात कहां से करेंगे। 

देखा जाये तो संसार के जितने भी देश, बर्तानिया, रूस, फ्रांस, अमेरिका, जापान और इटली जिन की आबादी कम है वे देश खुशहाल हैं। भारत में जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए लहर जगानी चाहिये, लोगों को जागृत करना चाहिये और छोटे परिवार के महत्त्व को समझना चाहिये। स्कूलों में जनसंख्या शिक्षा का विषय अनिवार्य बनाना चाहिये। आज के बच्चे यदि इस समस्या को समझेेंगेे तो वे बड़े होकर अपनी ज़िम्मेदारी को निभायेंगे। हो सके तो सरकार को परिवार नियोजन के लिये उपयुक्त सामग्री गांव-गांव की पंचायत तक पहुंचानी चाहिये। लोगों की इसके प्रति अवेयरनेस अत्यावश्यक है। नहीं तो टिड्डी दल की तरह बढ़ती हुई यह संख्या मनुष्यता को चाट जाएगी। औरत-मर्द के झगड़े अभी और बढ़ेंगे। धर्म के आडम्बर होते रहेंगे बल्कि घिनौना रूप धारण करेंगे। चूहे, बिल्लियां, कुत्ते काट खायेंगे। कुत्तों के काट खाने के तो कितने क़िस्से हमारे सामने हैं। बच्चों और बुज़ुर्गों पर बढ़ती आबादी भयंकर असर डालेगी। नशाखोरी और वेश्यावृत्ति बढ़ेगी। यह बढ़ती हुई लूट मार हत्यायें जनसंख्या विस्फोट का ही नतीजा हैं।

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