-गोपाल शर्मा ‘फिरोज़पुरी’
युग युगान्तरों से नारी को उसके अधिकारों से वंचित रखा गया है। पुरातन काल से ही उसे अवहेलित भावना का शिकार होना पड़ा है। आदिकाल से वह शोषित और पीड़ित रही है। यद्यपि समाज के उत्थान में नारी की भूमिका बहुत अहम है परन्तु उसे अध्ययन के क्षेत्र में कभी भी रुचिकर प्राप्ति नहीं हुई है। घर की चारदीवारी उसका प्रशिक्षण केन्द्र रहा है और पति उसका परमेश्वर। इक्का-दुक्का शिक्षित नारियों का उदाहरण मिल जाए तो अलग बात है। इतना ही नहीं पुराने ज़माने में केवल राजघरानों तक ही शिक्षा सीमित थी। गुरुकुलों की चौखट तक आम व्यक्ति की जब पहुंच नहीं थी तो नारी शिक्षण की कल्पना करना भी व्यर्थ लगता है।
मध्ययुगीन नारी ने भी अनपढ़ता का संताप भोगा है। इतिहास ने कई रंग देखे कई उतार-चढ़ाव देखे कई परिवर्तन देखे, राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक का सफ़र अनगिनत क्रान्तियां लाखों आन्दोलनों और न जाने कितनी कुर्बानियां देकर आधुनिकता के दौर तक पहुंचा। आज गणतन्त्र देशों ने यह महसूस किया है कि यदि किसी राष्ट्र ने अस्तित्त्व में बने रहना है। यदि प्रगति के पथ पर अग्रसर रहना है तो उस राष्ट्र की नारी का शिक्षित होना अत्यावश्यक है। भारत में पुरुष और नारी को बराबर के संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। प्रत्येक नागरिक कानून की दृष्टि से समान है और रंग, भेद, नसल, जाति के आधार पर किसी विशेष समुदाय को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता। नारी को भी धार्मिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक समानता है। वह जितना चाहे अध्ययन प्राप्त कर सकती है। ऊंचे पदों पर आसीन हो सकती है वह अपनी मर्ज़ी का व्यवसाय चुन सकती है। शिक्षित नारी समाज की रीढ़ है उसका अशिक्षित रहना समाज के कल्याण में गतिरोध पैदा कर सकता है।
पुरुष पढ़-लिख कर केवल अपना हित या अपने कुल का हित कर सकता है परन्तु लड़की मायके में रहे तो मायके को संवारती है और ससुराल में रहे तो ससुराल को संवारती है एक तरह से देखा जाए तो पढ़ी-लिखी नारी दो कुलों के मध्य एक सेतु का कार्य करती है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज की उत्तम संरचना में अपना सहयोग देती है। राष्ट्र के निर्माण में पढ़ी-लिखी नारी का योगदान तारीफ़ के क़ाबिल है।
परन्तु भारत जैसे ग़रीब निर्धन और विकासशील देश में रोज़ी-रोटी की समस्या इतनी अहम है कि निर्धन परिवारों में शिक्षा की ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। विशेषकर नारी वर्ग अधिकांशत: साक्षर नहीं हो पाता। ग़रीब परिवारों की लड़कियां मजबूरी में अनपढ़ रह जाती हैं। पुरुष और नारी समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। यदि एक पक्ष अधूरा है तो समूचे समाज की उन्नति भला कैसे सम्भव है। अत: यह अत्यावश्यक हो जाता है कि ग़रीब-दलित और असहाय नारी वर्ग को शिक्षित किया जाए। साक्षरता का ऐसा अभियान चलाया जाए कि अनपढ़ता का यह कलंक धुल जाए। नारी जीवनोपयोगी-संस्कारों के साथ जुड़ जाए। साक्षरता से हमारा तात्पर्य उसे केवल अक्षरज्ञान या अपने हस्ताक्षर मात्र कर लेना सिखाना नहीं है अपितु उसे ज्ञान-बोध करवाना है जिससे वह समाज में सिर उठाकर जी सके, अच्छे-बुरे की पहचान कर सके। एवं समाज शास्त्र के नियमों में परिपक्व हो सके। शास्त्र से हमारा लक्ष्य उसे किसी वेद-पुराण या उपनिषदों में पारंगत बनाना नहीं है अपितु हमने जिस शास्त्र से उसे जोड़ना है वह है सत्यम्-शिवम् और सुन्दरम्। सत्य है वैज्ञानिक ढंग से जीने की कला। तर्क-वितर्क करने की समर्थ भावना। ऐसी सुुघड़ गृहिणी जो वैज्ञानिक सोच के साथ जुड़ जाए। जो अन्धविश्वासों के साथ टकरा जाए। जो भ्रूण हत्या के विरोध में डटकर खड़ी हो जाए। जो नारी वर्ग की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध हो जाए। गृहिणी के लिए उसका शास्त्र है उसके परिवार का भरण-पोषण। उसको बीमारियों के ख़तरे की समझ-बूूझ। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की ताक़त। समय पर शिशुओं के आहार की व्यवस्था। सन्तुलित भोजन की अहमियत का आवास। मां के दूध का महत्त्व, पोलियो, चेचक, बी.सी.जी तथा हैपेेेटाईटिस केे टीके लगवाने का उत्तरदायित्व। समय पर सुुुुलाने जगाने की ज़िम्मेदारी भी। ऐसी कला की कल्पना एक पढ़ी-लिखी नारी से ही की जा सकती है।
उसका परिवार शास्त्र उसे यह भी सिखाता है कि उसने अपने घर का बजट कैसे प्लान करना है। उसे पता होना चाहिए कि किस चीज़ की व्यवस्था घर में अत्यावश्यक है कौन-सी वस्तुएं ऐसी हैं जिनके बिना भी घर का निर्वाह हो सकता है। कौन से सौन्दर्य प्रसाधन ऐसे हैं जिसके अभाव में भी काम चलाया जा सकता है। मेले-त्योहारों पर पानी की तरह पैसे बहाने से गुरेज़ करती है। बच्चों को खिलौनों-पटाखों की बजाए अच्छी पुस्तकें-कापियों और पैनों का उपहार देती है। गली-गांव नगर में सही तरीके से कैसे विचरना है यह एक शिक्षित नारी से ही सम्भव हो सकता है। इस तरह के ज्ञान की प्राप्ति जिस नारी में है वह ही शास्त्र की असली ज्ञाता है। उसमें यदि आड़े वक़्त के लिए कुछ धन संचित करने की शक्ति और अभिलाषा है तो सही अर्थों में वह शास्त्र या समाज शास्त्र की ज्ञाता है। सबसे बढ़कर यदि वह एक अच्छी मतदाता है और वह राष्ट्र की सरकार चुनने में चुनौती बन सकती है तभी वह साक्षर कहलाने की हक़दार है। नारी के लिए इसी प्रकार की साक्षरता का प्रबन्ध करना अति ज़रूरी है ताकि वे जीवन मूल्यों से परोक्ष अपरोक्ष रूप से जुड़ी रहे।
हमने नारी के लिए केवल शास्त्र या अध्ययन का बीड़ा ही नहीं उठाना है बल्कि उसे इतनी सशक्त बनाना है कि वह अत्याचार का डटकर मुक़ाबला कर सके। अपने सत्रीत्व और नारीत्व की रक्षा कर सके। कोई उसकी इज़्ज़त और आबरू से खिलवाड़ न कर सके। आधुनिक नारी को घर की चारदीवारी के भीतर क़ैदी बना कर नहीं रखा जा सकता। शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्रों में कुछ उपयोगी हासिल करने के लिए उसे रेल-गाड़ियों, बसों का सफ़र करना होता है। ऐसे में उसके साथ कहीं भी अनहोनी दुर्घटना हो सकती है। कभी भी, कहीं भी उसके साथ अनैतिक घटना हो सकती है। कहावत है कि परमात्मा उनकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। जलती हुई आग में कोई नहीं कूदता। किसी की मुसीबत अपने सिर कोई मोल नहीं लेता। मुसीबत के समय या तो धैर्य काम आता है या फिर आत्मबल। मनोविज्ञान कहता है कि शारीरिक रूप में नर और नारी की शारीरिक समर्था में ज़्यादा अन्तर नहीं होता। नारी भी उस कार्य को अंजाम दे सकती है जिसकी अपेक्षा हम पुरुष से रखते हैं। केवल नारी को परीक्षण पार करने की आवश्यकता है। दिन-प्रतिदिन नारियों के साथ राहजनी-अपहरण और बलात्कार की इतनी दुर्घटनाएं हो रही हैं कि नारी सुरक्षा का कार्य प्रशासन के लिए भी सिरदर्दी बनता जा रहा है। यौन-शोषण और हत्याओं का यह सिलसिला केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि गली-नुक्कड़ और गांव की चौपाल तक पहुंच गया है। रात के अन्धेरों की बात छोड़िए, दिन के उजाले में नारी का शील भंग हो जाता है। वीरान जंगलों, टापुओं, दीपों या पहाड़ी खण्डहरों में नहीं भीड़-भाड़ और भरे बाज़ार में नारी को नग्न किया जाता है। शायद ही कोई दिन ऐसा ख़ाली जाता होगा जब कोई दरिन्दा किसी स्त्री के साथ मुंह काला न करता होगा। उसके साथ इस तरह का दुर्व्यवहार हो जाने पर एक तो समाज उसे घृणित नज़रों से देेखता है तो दूसरी ओर कानून भी उसे इन्साफ़ नहीं देता। गुंडे बदमाशों के विरुद्ध कोई गवाही देने को तैयार नहीं होता। ऐसी स्थिति में एक नारी या तो खून के आंसू रोती है या फिर हाथ मल कर अपनी क़िस्मत को कोसती है। इस विवशता का केवल यही समाधान है कि वह अत्याचारी से लोहा ले। उसे ज़ुल्म से टक्कर लेने के लिए तैयार करना होगा। साम, दाम, दण्ड, भेद यानी कूटनीति और शस्त्र-विद्या का सहारा लेना होगा। जिन हालातों से आज की नारी गुज़र रही है अब यह अति अनिवार्य हो गया है कि उसे दो-दो हाथ करने का प्रशिक्षण दिया जाए।
परिवार में उसे लड़के की तरह ही लालन-पालन दिया जाए। उसकी ख़ुराक में कोई भेदभाव न किया जाए।
स्कूल कॉलिजों शिक्षण संस्थानों में उसे जूडो-कराटे सिखाया जाए। ज़्यादा से ज़्यादा मिलटरी ट्रेनिंग दी जाए। नृत्य-संगीत, गृह-विज्ञान तक ही न सिखाया जाए कुश्ती, रैसलिंग, तैराकी, पहाड़ों पर चढ़ना सिखाया जाए। घुड़सवारी से लेकर हर वाहन चलाने की ट्रेनिंग दी जाए। लाठी, तलवार, तीरंदाज़ी ही नहीं पिस्तौल, बन्दूक मशीनगन चलाने में परिपक्व किया जाए तभी वह विरोधी के दांत खट्टे कर सकती है। शत्रु को धूल चटा सकती है। झांसी की रानी का नाम यदि आदर से लिया जाता है तो केवल इसलिए कि वह लड़ाई की हर कला में दक्ष थी। मां काली ने त्रिशूल उठाया है। दुर्गा मां ने आठ भुजाओं में शस्त्र पकड़े हैं। मां वैष्णवी ने शेर की सवारी की है, भैरों जैसे राक्षस को यम लोक पहुंचाया है तभी लोग उसकी शक्ति की आराधना करते हैं। अत: अब समय आ गया है कि नारी को शास्त्र के साथ शस्त्र की शिक्षा भी दी जाए।