-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक परमात्मा ने सृष्टि की रचना करके यह ज़िन्दगी हमें तोहफेे के रूप में दी है। ज़िन्दगी सबसे अनमोल वस्तु है जो हमें आगे बढ़ने की प्ररेणा देती है। ज़िन्दगी क्या है, कैसे मिली, कहां से मिली इसका विश्लेषण करने से पूर्व यह ज़रूरी है कि परमात्मा के अस्तित्त्व के बारे में जान लें। जड़ और चेतन जगत् की पहचान कर लें।

कहते हैं कि प्रभु के सिवा इस जगत् में सिर्फ़ शून्य विराजमान था। केवल उसका ही साम्राज्य चलता था। न पृथ्वी न आकाश न कोई जीव न पर्वत न वन और न सागर न नदिया यहां तक ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अस्तित्त्व भी नहीं था। अस्तित्त्व था केवल भगवान का और उसकी मर्ज़ी का। हवा, बादल, जल सभी नदारद थे। अरबों, खरबों साल यह स्थिति बनी रही और वह सुन्न समाधि में लीन रहा। धरती, गगन, चांद, सूरज, तारे कोई नहीं था यहां केवल अंधेरा ही अंधेरा था।

गुरु नानक देव जी कहते हैं “अरबद नरबद धुंधुुकारा धरण न गगना हुकमि अपारा।”

अर्थात अरबों, खरबों वर्ष तक कुछ भी नहीं था अंधेरे का धुंधुुकारा था। धरती, आकाश नहीं थे, तब केवल उसका हुक्म ही चलता था।

सर्वप्रथम प्रभु के मन में ख़्याल आया कि मैं एक से अनेक हो जाऊं, यह विचार विस्फोट से कम नहीं था यह सोच आते ही उन्होंने सृष्टि की रचना कर डाली।

उस सर्वशक्तिमान ने पहले पवन को पैदा किया, पवन से जल, और जल से जीवों, वनों, स्त्री-पुरुष का निर्माण करके उस सत्पुुुुुरुष ने ज़िन्दगी का वरदान दे दिया।

God made a man and man made the country

गुरु नानक जी कहते हैं, “सांचे से पवना भई, पवना से जल होई, जल ते त्रिभुुवन साजिया घट-घट ज्योति समोए।”

वह अन्तर्यामी, निराकार भी है और साकार भी है। निराकार रूप में वह हमारे अन्तर में विद्यमान है। साकार रूप में वह किसी माध्यम से प्रकट होता है और साकार रूप में प्रकट होकर हमारा मार्गदर्शन करता है।

कबीर साहिब कहते हैं कस्तूरी कुण्डल बसे मृग ढूंढत वन माही, ऐसे घट-घट राम हैं दुनिया जानत नाहि।”

आगे चलकर कहते हैं, जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमग में आग। तेरा साईं तुझ में है तू जाग सके तो जाग।”

परन्तु मन के विकारों के कारण मनुष्य मुझसे मिल नहीं पाता। वरना बुल्ले शाह तो यह कहता है रब्ब दा की पाना इधरों पुटना ओधर लाऊना।”

मन को उस तरफ सिर्फ़ मोड़ना है, वह परमात्मा मिल जाएगा।

प्रभु का मतलब है वो एक मालिक। वाहेगुरु, राम, रब, खुदा, यीशुु, अल्लाह उसके पर्यायवाची नाम हैं।

इस ब्राह्मांड में तीन लोक हैं, पृथ्वी लोक, जिस पर हम रह रहे हैं। स्वर्ग लोक, देव लोक, पाताल लोक।

इन तीनों लोकों के अलग-अलग परमात्मा ने स्वामी नियत किये हैं जो सृष्टि चलाते हैं।

ब्रह्मा जी- रजोगुण विभाग संभालते हैं और स्त्री-पुरुष को, नर-मादा को सन्तान उत्पत्ति की छूट देते हैं अर्थात जीव उत्पत्ति के कारक हैं।

श्री विष्णु जी- सदगुण प्रदान स्वामी हैं जो जीवों के पालक हैं उनकी रक्षा का भार उन पर है।

श्री शिव जी- तमोगुण के अधिपति हैं वे मृत्यु के कारक हैं, किसी को मृत्यु दंड या क्षमा याचना उनकी इच्छा पर निर्भर है।

इन तीनों लोकों के इलावा एक ब्रह्मलोक है जिसको सच खंड कहते हैं वहां केवल पूर्ण अक्षर पुरुष है जो सारे संसार की जड़ है।

देह केवल बुद्धं शरणम गच्छामि, तथा पूर्ण सतगुरु की कृपा से मिलता है।

रजोगुण प्रदान ब्रह्मा तीन तरह से सृष्टि उत्पादक की भूमिका निभाते हैं, जिसमें अंडज, पिंडज और वनज। प्राय: तीनों ही एक सैक्स प्रक्रिया के अधीन हैं।

मक्खियां, मच्छर, मुर्गियां, बतख़ेें नर मादा के सहयोग से अंडे देती है, अंडों से जीव निकलते हैं।

अंडे से लारवा, प्यूपा और पूरा कीड़ा बनता है।

पिंडज में पशु और इन्सान आते हैं जो नर-मादा, स्त्री-पुरुष के सैक्स तुष्टीकरण से नर-नारियों को जन्म देते हैं।

वनज में हवा द्वारा पराग उड़कर फूल के गर्भाशय में प्रवेश करती है और वन उपजते हैं।

हमारा विज्ञान भी मानता है कि अणु परमाणुओं के कणों के मेल से जीव और पदार्थ की रचना हुई है।

इलैक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन के संयोग से विस्फोट हुआ है और यह सृष्टि बनी है। कुछ भी हो इन तत्वों, रसायनिक पदार्थों को जन्म देने वाले वैज्ञानिकों को परमात्मा ने ही उत्पन्न किया है।

अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार ही वह किसी को श्रेष्ठ व्यक्ति विभूषित करता है तो किसी को पूर्ण और लाचार बना देता है। यही तो उसकी कलाकारी है कि वह मनुष्य मात्र के गुण और अवगुण देखकर इन्साफ़ करता है।

अब मूल प्रश्न के उत्तर पर आते हैं कि ज़िन्दगी क्या है? 

ज़िन्दगी पांच तत्वों के सुमेल से बनी है पृथ्वी, जल, आग, आकाश और हवा के पुतले में परमात्मा ने अपने स्वरूप में आत्मा भर कर इसे सजीव निर्मित कर दिया है। इस शरीर की आयु पूर्ण होने पर या जितनी अवधि का समय मिला है उसके पूर्ण हो जाने पर शरीर का त्याग करना पड़ता है जिसे मृत्यु की संज्ञा दी जाती है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

”एक जाता है जहां से तो दूसरा आता है उसकी महफ़िल का खाली मकां होता नहीं।”

मनुष्य जन्म लेता है, बचपन, जवानी, बुढ़ापे से गुज़रता हुआ अन्त में परलोक गमन कर जाता है।

यह ज़िन्दगी एक पहेली है, एक रहस्य है और एक न हल होने वाला प्रश्न है।

“ज़िन्दगी सुख-दु:ख का मिश्रण है”

ज़िन्दगी फूलों की सेज नहीं काटों का बिस्तर है।

ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ज़िन्दगी सफलताओं और विफलताओं का जमघट है।

life is full of sorrow and sufferings.

ज़िन्दगी संघर्ष का पर्यायवाची है। चुनौतियों का सामना करना ज़िन्दगी है।

ज़िन्दगी अनमोल भी है और सुन्दर भी है। ज़िन्दगी का लुत्फ़ उठाना चाहिए। ज़िन्दगी क्षणभंगुुर है, अविनाशी है तथा पानी का बुलबुला है।

Man is mortal.

ज़िन्दगी में सुख कम हैं दु:ख ज़्यादा हैं, आख़िर में इन दु:खों को देखकर जैसे बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु देखकर गौतम बुध घर का त्याग करके प्रभु की शरण में चला गया था।

ऋषियों मुनियों के अनुसार आत्मा से परमात्मा का संयोग ज़िन्दगी है। परन्तु आत्मा और परमात्मा का संयोग दुर्लभ है।

मनुष्य में काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार भी विद्यमान हैं जो आगे बढ़ने नहीं देते।

इसके अतिरक्ति मनुष्य में सैक्स, घृणा, नफ़रत, सहानुभूति, सहयोग, आत्म प्रदर्शन और स्वाभिमान की प्रवृत्ति है, जो व्यक्ति के मार्ग में बड़ी रुकावटें हैं।

मनुष्य में संवेग और उद्वेग भी पाये जाते हैं, हंसना, खेलना, रोना, तड़पना, विरह, वेदना, संयोग, वियोग के मनोभाव ज़िन्दगी को प्रभावित करते हैं। दरअसल ज़िन्दगी को हर व्यक्ति अपने नज़रिये से देखता है। एक सैनिक के लिये देश पर क़ुुर्बान हो जाना ज़िन्दगी है, एक वैज्ञानिक के लिए नई खोज करना ज़िन्दगी है।

एक डॉक्टर के लिये यदि वह अपना कर्म निभाये तो मरीज़ की जान बचाना ज़िन्दगी है। एक व्यापारी के लिये धन कमाना ज़िन्दगी है।

एक समाज सेवक के लिये अपंगों, कुष्ट पीड़ितों की सेवा करना ज़िन्दगी है, एक अध्यापक के लिये राष्ट्र का निर्माण करना ज़िन्दगी है। एक प्रधानमंत्री के लिए सबका विकास सब का साथ, अपराधों को रोकना ज़िन्दगी है। कुछ लोगों के लिए मांस और मदिरा का सेवन ज़िन्दगी है। एक प्रेमी के लिये प्रेमिका से मिलाप और उसका संसर्ग ज़िन्दगी है। बच्चे पैदा करना उन्हें शिक्षित करके अच्छा नागरिक बनाना ज़िन्दगी है। अलग-अलग मनुष्यों के लिए अलग-अलग विचार धारा ज़िन्दगी है। जैसे कहा भी गया है कि:-

“कोई हाल मस्त, कोई चाल मस्त कोई खा के रोटी दाल मस्त”

कुछ भी हो ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है। इसे जितना सत्य शिवं सुन्दर बनाओगे प्रफुल्लित होगी। ज़िन्दगी दु:ख का दरिया है और सुख का सागर है।

 

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