-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

युग बदला, इतिहास बदला परन्तु नारी की वेदना वही है, नारी का दु:ख वही है और नारी की पीड़ा वही है। सदियों से उसके अस्तित्त्व पर मौत की तलवार लटक रही है। कभी दहेज के नाम पर तो कभी सती कहकर उसको मौत की भट्ठी में धकेला गया है। सतयुग, त्रेता, द्वापर सभी युगों में यदि इतिहास के पन्ने खोलकर देखें तो कैसे-कैसे अत्याचार उस पर हुये हैं, पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वैसे तो धर्म ग्रन्थों में लिखा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। परन्तु कब किसने की है नारी की पूजा? क्या किसी ने उसको सत्कार दिया है? वह तो मर्द की मंगल कामना हेतु सकट चौथ और करवा चौथ का व्रत रखती रही है। क्या कभी किसी मर्द ने उसकी सलामती के लिये ऐसा क़दम उठाया? कदापि नहीं। उसे केवल अपनी हवस का शिकार बनाया है और हर युग में उसका चीरहरण हुआ है। अपनी जायदाद समझकर जुए में हराया है। उसके साथ बलात्कार हुआ है। कभी उसे विष कन्या बनाया है और कभी कोठे पर बिठाया गया है तो कभी जन्म होते ही ज़हर देकर मार दिया गया है। परन्तु आधुनिक काल में तो आदमी बेशर्मी की सभी हदें पार कर गया है। उसे जन्म लेने ही नहीं दिया जाता, पेट में ही कन्या भ्रूण को सामप्त कर दिया जाता है। लानत है ऐसे मां-बाप पर और उनसे बढ़कर उन डॉक्टरों पर जो चन्द पैसों की ख़ातिर ऐसा जघन्य अपराध करते हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि ये मर्द जो अपनी मूंछों पर ताव देकर अपनी मर्दानगी जताते फिरते हैं उनको जन्म किसने दिया है? एक नारी ने अपनी कोख में नौ मास रखकर उसे इस धरती पर उतारा है। नारी नहीं होती तो नर कहां से होता। नर नहीं होता तो नारायण कहां मिलता? छी छी कैसा बेग़ैरत है आदमी जो नारी की छातियों का दूध पीकर पलता है, बड़ा होता है और उसका ही संहार करता है।

नारी बेटी है, बहन है, मां है, प्रेमिका है, पत्नी है। उसे समाप्त करके ये रिश्ते कहां से ढूंढोगे। नारी तो स्वर्ग की देवी है, नर का मल मूत्र गन्दगी उठाकर अमृत जैसा दूध पिलाकर समाज में खड़ा होने के क़ाबिल बनाती है। हमारी संस्कृति भी विचित्र है। इसमें कुछ अच्छे गुणों के विपरीत अनावश्यक रीति रिवाज़ भी बहुत घातक हैं, जैसे पुत्र ही कुल का चिराग है, वही वंश परम्परा चलाता है। सभी स्त्री को पुत्रवती होने का आशीर्वाद देते हैं, क्या किसी ने पुत्रीवती का आशीर्वाद दिया। कहीं भी कन्यावती भव या पुत्रीवती का वरदान नहीं मिलता। आधुनिक संदर्भ में यदि बात की जाये तो ज़माना प्रगति की ओर अग्रसर है। लोकतन्त्र में संविधान के अनुसार सभी स्त्री-पुरुष नागरिकों के समानाधिकार हैं। क्या आज नारी किसी भी क्षेत्र में कम है? सोचिए इन्दिरा गांधी, झांसी की रानी, लता मंगेशकर, किरण बेदी, पी.टी.उषा, सुनीता विलियम्स, हरमन प्रीत, पी.वी.सिन्धु, सानिया मिर्ज़ा जैसी महिलायों का आज कोई मुक़ाबला है? बोर्ड और विश्व विद्यायल की परीक्षा में हर वर्ष लड़कियां बाज़ी मार जाती हैं। माता-पिता और गुरुजनों के साथ-साथ देश का नाम रोशन करती हैं। अब ये बताओ ज़रा क्या लड़के चांद सितारे तोड़कर लाते हैं? वे तो जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं, बलात्कार जैसे घिनौने अपराध करते हैं। ज़रा सी फ़रमाइश पूरी न होने पर मार-पीट करते हैं। प्रॉपर्टी के लिए मां-बाप की हत्या कर देते हैं। मज़ा आता है जूते खाने में तो खाओ जूते, नहीं तो एड़ियां रगड़-रगड़ कर वृद्ध आश्रम में मरो। क्या किसी बेटी ने मां-बाप को वृद्ध आश्रम में धकेला? अख़बार के पन्नों की सुर्खियों में प्रतिदिन लिखा होता है कि नशे की ख़ातिर बेटे ने पीट-पीट कर मार डाला। दो मर्दों ने अपनी पत्नियों को इसलिये ज़िन्दा जला दिया कि उन्होंने बेटे को जन्म नहीं दिया। अब अक्ल के अंधों को कौन समझाए कि पुरुषों के पास फ़ीमेल एक्स-क्रोमोसोम्स (female x-chromosomes) और मेल वाई-क्रोमोसोम्स (male y-chromosomes) होतेे हैं। स्त्री में केवल फ़ीमेल एक्स-क्रोमोसोम्स (female x-chromosomes) ही होतेे हैं। इसका मतलब यह कि लड़का या लड़की होना यह निर्धारण पुरुषों पर आधारित होता है स्त्री पर नहीं।

सबसे चिन्तनीय विषय तो यह है कि कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है जिससे नारी उत्पत्ति का ग्राफ देश में गिरता जा रहा है। नारी ही समाप्त हो गई तो संसार कहां बचेगा। यदि ठोस क़दम नहीं उठाये गये तो नारियों का तो सर्वनाश होगा ही, नर भी नहीं बचेगा। क्या नारी विहीन समाज और राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है? यह संसार मिट्टी में विलीन हो जाएगा, नारी बिना सब सून हो जायेगा, नष्ट और ग़र्क़ हो जायेगा। अभी वक्त है संभलने का, होश क़ायम रखने का, कुछ अक्ल के पर्दे खोलने का। नहीं तो अपनी ही खोदी कबर में दफ़न हो जाओगे। खुद जागो और आस-पास को जगाओ। देश के कर्णधारों को समझाओ। इस तरह के सख़्त कानून बनवाओ कि कन्याओं को पेट में मारने वालों को मृत्यु दंड मिले। नारी शक्ति को भी स्वयं जागना होगा। जीवन जीने का अधिकार नारी का मौलिक अधिकार है। कोई उसका हक़ छीन न पाये। ख़बरदार समाज के ठेकेदारो कन्या भ्रूण हत्या बन्द करो अन्यथा सृष्टि की संरचना का अन्त हो जाएगा। दहेज के डर से या किसी अन्य वजह से मजबूर होकर कन्या भ्रूण हत्या मत करो। हिम्मत जुटाओ, साहस दिखाओ नारी को शिक्षित करो। नर तो केवल एक कुल चलाता है, नारी कई कुलों को संवारती है। वह सचमुच देवी है। “उसे पूजो वरदान मिलेगा, मारोगे अभिशाप मिलेगा।”

नारी की उपलब्लियों पर ज़रा ग़ौर करें। जितनी नारियां ओलंपिक्स में मैडल ला रही हैं इतने पुरुष नहीं ला रहे। हैदराबाद की नैना ने 8 वर्ष की आयु में दसवीं कर ली। लखनऊ की सुष्मा वर्मा ने 15 वर्ष की आयु में पी.एच डी कर ली, है न नारी का आधुनिक वंडर।

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