-केवल सिंह डल्हौज़ी

आज की आपाधापी ख़ौफ़, भय, साम्प्रदायिकता, राजनीति और प्रशासन के बिगड़े स्वरूप से कौन आतंकित नहीं है? इनके कारण को और समाधान को कौन ढूंढ़ पाएगा? बहुत सोचने के बाद भी यही जवाब मिलेगा, कोई नहीं।

आज के तीब्र युग में मनुष्य का जीवन कब गुज़रा, कब जवानी के सुनहरे दिन बीत गए, कब वह पारिवारिक बोझ के तले दब गया, उसकी किस चूक ने उसे ज़िम्मेदारियों को पूर्ण करने में असमर्थ बना दिया, इस बात की किसी को कानों-कान ख़बर नहीं हो रही।

बड़े से बड़ा दृढ़ निश्चयी, प्रतिभावान को उनका भविष्य धुंधला दिखाई पड़ रहा है। आज का मनुष्य सुखमय जीवन-जीने की कल्पना तक नहीं कर पा रहा है। साधन सम्पन्न बनना तो असम्भव नज़र आ रहा है। प्रकृति के सबसे बड़े और बुद्धिमान प्राणी की यह दशा कैसे हो गई कोई पता नहीं।

इन सब प्रकार की कुंठा, डर, संशय, वैमनस्य, त्रासदी, दिशाहीनता और विभिन्न मतभेदों को समाप्त करने में एक व्यक्तित्व अभी भी सक्षम है। कौन? गुरू, सदगुरू, अध्यापक।

एक अध्यापक ही सब प्रकार की दुर्भावनाओं को समाप्त करने में सहायक है। यही एक लौ है जो सारे अंधकार को प्रकाशमान बना सकता है। अध्यापक का इस राह में प्रयास प्रेरणादायक सिद्ध हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*