-दीपक कुमार गर्ग

सन् 2035 की एक सुबह जब मेरी आंख खुलती है तो देखता हूं कि मेरे सामने कुछ अख़बार रखे हुए हैं। रविवार का दिन है। मैं अपने जवान बेटा-बेटी की शादी के लिए अख़बार के मैट्रीमोनियल कॉलम में नज़र डालता हूं। मैं जब विज्ञापन देखता हूं तो मेरी जिज्ञासा बढ़ती जाती है।

व्यवसायिक अग्रवाल परिवार का 25 वर्षीय इकलौता वारिस 6’ एम.बी.ए. सुन्दर, आमदनी 2 लाख रुपये महीना के लिए दुलहन की आवश्यकता है। जाति बंधन नहीं। नीची जाति भी स्वीकार्य, कोई दहेज़ नहीं।

जट, सिक्ख, ढिल्लों, बीस बीघा शहरी ज़मीन – उम्र 29 वर्ष – कद 5’ 11”, बी.ए. पास, सुंदर क्लीन शेव, हीरो जैसी पर्सनैल्टी वाले को पत्‍नी की ज़रुरत है धर्म परिवर्तित सिक्खों की लड़की भी स्वीकार्य है। कोई दहेज नहीं।

लड़कियों की संख्या इतनी कम हो रही है कि लोग बिना किसी दहेज़ के अपनी जाति के बाहर नीची जाति में भी शादी करने के लिए तैयार हैं। जिन लोगों ने ऐसे सपने देखे थे कि बेटे 25 लाख रुपये लेकर आएंगे, और बेटियां 25 लाख रुपये लेकर जाएंगी। उन लोगों के सपने उल्टे हो गए हैं।

मैं आगे पढ़ता हूं।

पढ़ा लिखा खत्री परिवार, मां लेक्चरार, पिता एम.डी.ओ., अपनी डॉक्टर लड़की, कद 5’ 4’’, उम्र 24 वर्ष के लिए ऐसे परिवार में रिश्ता चाहिए जो उनके बेरोज़गार बेटे उम्र 26 वर्ष, कद 5’ 8’’ बी.ए. पास के लिए अपने या अपने किसी रिश्तेदार के परिवार से दुलहन उपलब्ध करवा सके। यही पहली शर्त है।

कैसे हंसने जैसी बात है जिन बेटियों के आने पर हमारा समाज आंसू बहाता था वह लड़कियां आज पढ़ लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच चुकी हैं और बेटे यानि उत्तराधिकारी बेरोज़गार घूम रहे हैं। ननद-भाभी को एक दूसरे के लिए बिकना पड़ रहा है।

कुछ और विज्ञापन देखकर तो मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

एक सॉफ्ट वेयर कम्पनी में काम कर रहे चार नौजवान दोस्त जिनकी उम्र 25 से 30 वर्ष के मध्य है। चारों कुल मिलाकर 10 लाख रुपए महीना कमा रहे हैं के लिए संयुक्‍त रुप से पत्‍नी की तलाश है क्योंकि चारों के लिए चार पत्‍नि‍यां मिलना असंभव है इच्छुक संपर्क करें ।

मैं सोचता हूं कि इस सदी की शुरुआत में हमारा समाज आगे जाने की बातें कर रहा है परन्तु यह किस पुराने युग में पहुंच गया है। पांडवों को एक द्रोपदी के साथ-साथ और भी कई पत्‍नि‍यां मिल गई थी। पर आज तो एक द्रोपदी मिलना मुश्किल हो रहा है। एक और परिवार ने अपने दो बेटों के लिए एक संयुक्‍त दुलहन की तलाश का विज्ञापन दिया हुआ था।

मैं आगे पढ़ता हूं।

30 वर्ष के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत ऑफिसर, वेतन लगभग 35000 रुपये प्रतिमाह के लिए दुलहन की तलाश …. लड़का, लड़की के घर जाने, वहां रहने और उसके परिवार की देखभाल करने के लिए तैयार, लड़के के अपने मां-बाप अकेले अपनी ज़िंदगी व्यतीत करेगें।

जिन मां-बाप ने ऐसे सपने देखे थे कि उनके बेटे बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे वह बेटे घर में बहू लाने की जगह खुद उन्हें अकेला छोड़कर किसी के घर की बहू बनने जा रहे हैं। कोई समय था बेरोज़गार लड़के किसी अमीर घर के घर जमाई बन जाते थे ताकि उन्हें रोज़गार मिल सके। परन्तु आज पढ़े-लिखे अच्छे पदों पर कार्यरत नौजवान खुद ही गरीब घरों के घर जमाई बनने को तैयार हैं। यह उस समाज को एक सबक दे रहे हैं जो लड़कियों की भ्रूण हत्या करके लड़कियों की संख्या को कम रहे हैं।

आगे कुछ ऐसे नौजवानों ने विज्ञापन दिए थे जो कि अपनी मां की उम्र के बराबर की विधवा या तलाकशुदा औरतों के साथ शादी करने को तैयार थे क्योंकि लड़कियों का तो दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था। जो लड़कियां उपलब्ध थी उनकी ऊंची बोलियां लग रही थी।

टी.वी के एक चैनल पर समाचार आ रहा था कि मुंबई के प्रसिद्ध जौहरी विपलभाई शाह ने आज राजस्थान कंजरों के गांव में अपने इकलौते बेटे के लिए गांव की कंजरों में ब्यूटी क्वीन मानी जाने वाली सोनाली को सबसे अधिक 25 करोड़ की बोली लगाकर अपने बेटे की दुलहन बनाने के लिए खरीदा है। इस कंजर बाहुल्य गांव में कुछ और सुंदरियों को खरीदने के लिए अभी भी मुंबई और दिल्ली के कुछ उद्योगपतियों और बड़े-बड़े नेताओं में होड़ लगी हुई है। माफ़ करना मैंने भावुक होकर चैनल की ख़बर को जैसा सुना वैसा ही लिख दिया। पिछली शताब्दी में बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं। उनमें से एक अल्ट्रा साउण्ड मशीन का इन दिनों बहुत दुरुपयोग हो रहा है। इसके ऐसे परिणाम निकलेंगे ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था।

जब यह मशीन नहीं आई थी उस वक़्त कोई नौजवान किसी वेश्या या वेश्या की बेटी या कंजर की बेटी के प्यार में पड़ जाता था तब समाज मे हंगामा खड़ा हो जाता था। पर इस अल्ट्रा साउण्ड मशीन के आविष्कार ने हमारे सभ्य समझे जाने वाले समाज की लड़कियों की संख्या में बहुत कमी कर दी है, वेश्याओं और कंजरों के खानदान में लड़कियों का जन्म लेना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए ज़्यादातर लड़कियां अब भी वेश्याओं और कंजरों के पास ही है। यह लोग भी इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए अपनी लड़कियों को अपने पुश्तैनी व्यवसाय में डालने की जगह उनकी ऊंची-ऊंची बोलियां लगवाकर अमीर घरों की दुलहन बनाने के लिए बेच रहे हैं। यह नतीजा केवल उन्हें ही नहीं भुगतना पड़ रहा है जिन्होंने अपनी लड़कियों को इस धरती पर आने से रोकने के लिए उनकी भ्रूण हत्या करवा दी। बल्कि सारे समाज को यह बुरे नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं क्योंकि नौजवानों की शारीरिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। लड़कियों की कमी के कारण उनकी शादियां नहीं हो रही हैं। वे अपनी मां की उम्र की औरतों के साथ बलात्कार कर रहे हैं इसी कारण व्यभिचार और अवैध संबंधों की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं।

अब मैंने टी.वी. बंद कर दिया है।

एक नौजवान ने अख़बार में अपने मां-बाप को पत्र लिखा है कि मम्मी, डैडी आप मुझे ऐसे समाज में क्यों ले आए। आपने मुझे भी कोख में ही क्यों नहीं मार डाला। मैं आपकी उम्मीदें कैसे पूरी करूं। आपको मेरी ज़रूरत थी ताकि मैं वंश को चला सकूं पर आपने कभी सोचा ही नहीं था कि बेटा मां के पेट में जन्म लेता है। जब मां ही नहीं होगी तो बेटे कहां से जन्म लेंगे। मेरी उम्र 35 वर्ष हो चुकी है और मुझे अभी तक दुलहन नहीं मिली। अब मेरे पास केवल एक ही उपाय है कि मैं आपकी उम्र की किसी मां समान औरत से शादी करके अपने वंश को आगे बढ़ाऊं या समाज में अपनी हस्ती को मिटा दूं।

एक ख़बर छपी थी कि एक मां-बाप को अपने लड़के और लड़की के लिए अदल-बदल करने के प्रस्ताव के बाद भी कोई योग्य रिश्ता नहीं मिला तो उन्होंने मजबूरी में अपने बेटे-बेटी की शादी आपस में ही कर दी। नहीं…..। मैं चीखा …. मेरी आंख खुल गई थी…. मेरा यह सपना कभी सच नहीं होगा। मैं बेटियों की कोख में हत्या कर देने वाले समाज से लड़ूंगा। मैं सुधी पाठकों से मदद माँगता हूँ कि मेरा साथ दें और मेरे सपनों को झूठा कर देंवे। मैं रात को अख़बार में ऐसी ख़बर पढ़ते-पढ़ते सो गया था जिसका शीर्षक था “गर्भपात के कारण जन्म न ले सकी एक करोड़ लड़कियां।”

One comment

  1. अति संवेदनशील!

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