– अनु जसरोटिया, कठुआ

लड़कियों के दु:ख अजब होते हैं,

सुख उस से अजीब,

हंस रही हैं और काजल भीगता है साथ-साथ।”

आज भी नारी अपने गौरवपूर्ण अतीत को ध्यान में रख कर त्याग, समर्पण, स्नेह, सरलता, ममता, सहनशीलता आदि गुणों को नहीं भूली है। दूसरों की खुशी में खुश रहने का जो ख़ज़ाना नारी जाति को विरासत में मिला है उसे शायद वो आज भी संभाले हुए है। आधुनिक समय में नारी हर क्षेत्र में पुरुष के समान क़दम मिला कर आगे बढ़ रही है। यही देखते हुए यह कहा जाता है कि नारी और पुरुष एक बराबर हैं परन्तु वास्तविकता में यह सब नज़र नहीं आता है। किसी न किसी रूप में नारी अनेक समस्याओं को झेलती आ रही है। दिखावे में तो नर-नारी को एक समान दर्ज़ा दिया जाता है, परन्तु असल में आज भी नारी चाहे हर क्षेत्र में पुरुष से अव्वल है परन्तु पुरुष उसे आज भी हीन-भावना से ही देखता है।

“जाने किन-किन मुश्किलों से सामना उनका रहा

बाहर आई जो अपनी चार-दीवारी से।”

प्राचीन काल में नारी को सम्मान और आदर मिला लेकिन मध्य काल में मुगलों के शासन काल में नारी की स्थिति को अत्यंत दर्दनाक बना दिया गया। लेकिन आज के युग ने इसे बद से बदतर बना दिया है। घर-गृहस्थी, घर की चार-दीवारी के बाहर निकलना आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजना। इन सब के चक्कर में नारी हर रोज़, हर पल, हर मोड़ पर कई अग्नि परीक्षाओं से गुज़रती है। उनमें से कुछ तो इस परीक्षा में सफल हो जाती हैं तो कई रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। आज स्वयं नारी “बालिका-हत्या” का आरोप अपने ऊपर ले रही है। आख़िर क्यूं दे रही है वो अपनी ममता की अग्नि परीक्षा ? क्या वो पुरुष प्रधान समाज से डरती है? या वह अपने जीवन काल में नारी पर हुए अत्याचारों से डर चुकी है? कभी वह दहेज़ रूपी कीड़े की शिकार बनती है तो कभी किसी हैवान की हवस की शिकार। कारण चाहे कुछ भी हो पर अगर हर बार नारी ही अग्नि परीक्षा देगी तो समाज का कल्याण संभव नहीं यदि भ्रूण हत्या जैसी बातें ऐसे ही बरकरार रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब नारी जाति का ख़ात्मा हो जाएगा। जैसे किसी चटृान से नदी धारा टकरा कर लौट जाती है वैसे ही कोई भी विरोध स्थाई नहीं रह सकता। पुरुष समाज के रूढ़िवादी अत्याचारों का विरोध करना, आज की शिक्षा ने नारी को सिखा दिया है हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवत:

यानी जहां नारी की पूजा होती है, मान सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं। परन्तु हर बार नारी की अग्नि परीक्षा लेने वाला समाज तथा राष्ट्र नीचे ही गिरता है। ये कटु सत्य है हमें इस सत्य को मान लेना चाहिए कि  कोमल है कमज़ोर नहीं, शक्ति का नाम ही नारी है। 

इतिहास गवाह है नारी ने कभी सीता तो कभी द्रौपदी बन कर अग्नि परीक्षा दी पर जब वह रुद्र रुप में आ जाए तो रानी लक्ष्मी की तरह सैंकड़ों को मौत के घाट भी उतार सकती है। अत: अब भी वक़्त है जागो। मत इतना नारी को विवश करो कि अग्नि परीक्षा देते-देते वो स्वयं ज्वाला बन जाए या कहीं ऐसा ही न हो जाए कि आने वाला समय नारी से वंचित ही हो जाए

 

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