-रेनू बाला

शालिनी की डोली उठते ही रीमा भागकर घर के एक कमरे में चली आई और बिस्तर पर गिर कर ज़ार-ज़ार रोने लगी। रोती क्यों न, शालिनी उसकी सबसे प्यारी सहेली जो थी। बचपन से जवानी तक का लम्हा दोनों ने संग-संग गुज़ारा था। अब वही शालिनी उसे छोड़कर अपने प्रियतम के घर जा रही थी।

तभी रीमा को अपने कंधे पर किसी के स्पर्श का एहसास हुआ। आंसुओं से तर-बतर नज़रें घुमाई तो देखा उसके पड़ोसी शर्मा जी थे।

‘रो मत, रीमा। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारी सहेली अब अपने घर में जा रही है।’ शर्मा जी मासूमियत से रीमा के बालों को सहलाते हुए बोले।

‘अंकल, अब मेरा क्या होगा?’ शालिनी की याद ने पुनः ज़ोर मारा और उसकी आंखों में आंसू गहरा गए।

शर्मा जी, रीमा के साथ सट कर बैठते उसका मस्तक चूमते हुए फिर उसी नाटकीय स्वर में बोले- ‘रीमा, प्रत्येक लड़की के जीवन में यह मौक़ा आता है। हमें इस अवसर का खुशी से स्वागत करना चाहिए न कि आंखें भिगोकर।’

उन नाज़ुक क्षणों में रीमा को शर्मा जी की सांत्वना बड़ी भली लगी। उनके चुंबन को भी उसने नज़र अंदाज़ कर दिया। तभी किसी के आने की आहट सुनकर शर्मा जी, रीमा से ऐसे अलग हो गए, जैसे उन्हें करंट लग गया हो।

तब रीमा को भी अपनी स्थिति तथा लज्जा का बोध हुआ। वह शर्मा जी जो अपनी ऐय्याशी के लिए मुहल्ले भर में बदनाम थे, वह उसे ही अपना हमदर्द समझ रही थी। शर्मा जी को एक पल के लिए घूरकर वह फ़ौरन बाहर निकल गई।

उपरोक्त उदाहरण में जो कुछ रीमा के साथ घटित हुआ, वह किसी भी लड़की के साथ हो सकता है। क्योंकि भावुकता भरे क्षण ऐसे होते हैं जब लड़की को किसी की हमदर्दी अथवा सांत्वना की अपेक्षा होती है। किंतु यदि इस भावुकता पर अंकुश न लगाया जाए तो इसके परिणाम भयंकर भी हो सकते हैं।

गीता के साथ ऐसा ही हुआ। वह अपने पड़ोस के रहने वाले विकास के किसी मित्र को मन ही मन चाहने लगी। काफ़ी दिन तक जब उसे विकास का वह मित्र दिखाई न दिया तो वह विकास के पास जा पहुंची और अपना हाले दिल बयान कर दिया।

घाघ विकास ने इधर-उधर की बातों को कुरेदते हुए गीता के सामने भावुकता का ऐसा चक्रव्यूह पैदा कर दिया, जिसमें फंसकर गीता अपना सब कुछ गंवा बैठी।

भावुकता हमारे व्यक्तित्व का ही हिस्सा है। भावुकता के क्षणों का संबंध किसी भी अवसर अथवा स्थिति से हो सकता है। जज़बात सीधे दिल से उपजता है, अतः इनमें समझदारी कम ही रहती है। भावुकता के लम्हों में लड़की जिस को अपना सबसे सच्चा सहारा मानकर सर्वस्व तक अर्पित कर देती है, वह वास्तव में ऐसे भंवरे निकलते हैं, जो रसपान करके चल देते हैं। लड़की को बाद में अपनी उस भूल का बोध होता है लेकिन तब उसके पास पछताने के सिवाय और कुछ शेष नहीं होता।

शर्मा जी, विकास जैसे लोग हमेशा लड़की की भावुकता को उभारने के प्रयास में रहते हैं तथा अवसर मिलने पर उसका भरपूर फ़ायदा उठाते हैं।

भावुकता से मूर्खता ही प्रदर्शित होती है। अतः यह निहायत ज़रूरी है कि आप हद से अधिक जज़्बाती न बनें और न ही दूसरों के समक्ष अपनी भावुकता ज़ाहिर होने दें। जब कभी आपके सम्मुख भावुकता की स्थिति उत्पन्न हो, शांत मन से एकाग्रचित होकर आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं। आपको महसूस होगा कि आपका तनाव कुछ कम हो गया है।

जहां तक संभव हो किसी ग़ैर मर्द के सामने अपना दुखड़ा बयान न करें, क्योंकि ऐसे पुरुष विरले ही होते हैं जो उन पलों में किसी लड़की को सही परामर्श देते हैं। अन्यथा दोनों के ही बहकने का भय होता है।

यदि आप प्यार, दर्द, पीड़ा अथवा तनाव से ग्रस्त हैं तो अपने परिवार के किसी सदस्य से परामर्श लें, आख़िर वे आपके अपने हैं। यह संभव न हो तो अपनी उस सखी से मिलें, जिस पर आपको सबसे अधिक विश्वास हो। लेकिन कुछ स्थितियों में यह देखा गया है कि एक सखी ही ईर्ष्या अथवा किसी वैमनस्य के कारण अपनी सहेली को ग़लत राह पर डाल देती हैं। बेहतर तो यह होगा कि आप खुद अपने हृदय को संतुलित रख कर अपना आत्मविश्वास प्रबल करें। भावुकता में उत्तेजित कभी न हों, क्योंकि इससे आपको हासिल कुछ नहीं होगा बल्कि जटिल स्थितियां पैदा हो जाएंगी।

यदि आपको लगे कि कोई आपकी भावुकता का लाभ उठा कर आपके समीप आने की फ़िराक़ में है तब उसको लताड़ने में संकोच न करें। उसकी किसी भी नागवार हरकत को नज़र अंदाज़ करने की बजाय उसका कड़ा प्रतिरोध करें।

खुद को सबल बनाकर आशावादी दृष्टिकोण में जीने की कोशिश करें। आप स्वयं पाएंगी कि आपका आत्मविश्वास इतना दृढ़ है कि अपनी गुत्थियां सुलझाने के लिए आपको किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है।

Hindi article by Renu Bala about emotional weakness. In emotionally weak moments we can not think right things. Women should take care in those moments.

 

 

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