एक बार किसी अमेरिकी से पूछा गया कि आप सौंदर्य किसे कहेंगे तो तुरंत जवाब मिला कि सौंदर्य वह चीज़ है जिस पर केवल अमेरिकी कंपनियां करोड़ों डॉलर की पूंजी लगा कर व्यवसाय कर रही हैं और प्रत्येक वर्ष लाखों डॉलर का व्यापार करती हैं। हमारी पुरानी मान्यताओं को इससे गहरा सदमा पहुंचेगा क्योंकि हमारे कवियों ने कहा है कि सौंदर्य तो देखने वाले की नज़रों में होता है। हर प्रेमी को अपनी प्रेमिका इसी कारण सुन्दर दिखलायी देती है। हमारे दार्शनिक भी कहते हैं कि सुन्दर उसी को कहना चाहिए जो सुन्दर कार्य करे। वैज्ञानिकों का दृष्‍टिकोण अधिक वस्तुनिष्‍ठ है। उनके अनुसार सौंदर्य की गहराई हमारी चमड़ी या त्वचा की मोटाई तक ही सीमित है। आज त्वचा का हमारे सौंदर्य से क्या संबंध है तथा त्वचा की देखभाल करना हमारी सुंदरता में क्या योगदान दे सकता है इस बात पर प्रमुख रूप से विचार करेंगे।
त्वचा को हम तीन परतों में बांटते हैं। सबसे ऊपरी परत को एपिडर्मिस या बाहरी परत या बाह्य त्वचा कहते हैं। इसके नीचे की परत को डर्मिस अथवा अंतस्‍त्‍वचा कहा जाता है। इन दोनों परतों के नीचे त्वचा को शरीर से जोड़ने वाले ऊतक होते हैं। बाह्य त्वचा की कोशिकाएं त्वचा के सबसे नीचे के भाग में उत्पन्न होकर वहीं उनका पोषण होता है। ये कोशिकाएं सतह की ओर बढ़ती हैं और सतह तक पहुंचने पर इनमें आमूलाग्र परिवर्तन हो जाता है। इनका प्रमुख कार्य होता है शरीर को बाहरी सम्पर्क से दूर रखना। बाह्य त्वचा में रक्‍तवाहिनियां नहीं होतीं। त्वचा के लिए पोषक तत्त्व सबसे नीचे वाले ऊतकों में ही पाए जाते हैं और वहीं से वे ऊपर आते हैं। इसी कारण त्वचा के बाह्य भागों पर पहुंचते-पहुंचते कोशिकाओं की आयु ख़त्म होने लगती है। बाह्य त्वचा पर आश्रित कोशिकाएं सही मायने में मृत हो जाती हैं। उन कोशिकाओं का स्वरूप बढ़कर एक शल्य स्तर या स्ट्रेटम कार्नियम में बदल जाता है। त्वचा की यह परत केरेटिन नामक प्रोटीन की बनी होती है। हमारे नाखून में भी इसी केरेटिन का प्रमुख भाग होता है। नाखून को हम शरीर का मृत भाग नहीं कह सकते परंतु उन को सही अर्थ में जीवित हिस्सा कहना भी कठिन है नाखून बढ़ने का अर्थ है कुछ कोशिकाओं का ऊपर की ओर बढ़ कर केरेटिन में बदल जाना। इस प्रकार हमारी बाह्य त्वचा का निर्माण भी होता रहता है। ये मृत कोशिकाएं अत्यंत सूक्ष्म कणों के रूप में त्वचा से गिरती रहती है। यह कण इतने सूक्ष्म होते है कि इन्हें केवल आंखों से नहीं देखा जा सकता। माइक्रोस्कोप की सहायता से ही इन्हें देखना संभव है। हमारी त्वचा को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं। प्रथम वर्ग है उन लोगों का जिनकी त्वचा शुष्क होती है दूसरा वर्ग सामान्य त्वचा के लोगों का है और तीसरा वर्ग है चिकनी त्वचा वालों का। शुष्क त्वचा का अर्थ होता है शल्य स्तर में नमी की कमी। चिकनी त्वचा के शल्य स्तर में अत्यधिक नमी होती है। सामान्य त्वचा में नमी की पर्याप्‍त मात्रा उपस्थित रहती है। शुष्क अथवा चिकनी त्वचा शारीरिक रचना पर निर्भर करती है और दोनों ही प्रकार की त्वचा वाले सुखमय जीवन बिता सकते हैं। त्वचा की देखभाल ठीक से करने का अर्थ होता है शल्य स्तर या स्ट्रेटम कार्नियम में नमी की उचित मात्रा बनाये रखना। त्वचा के सौंदर्य पर ही व्यक्‍ति का सौंदर्य निर्भर करता है इसलिए त्वचा की देखभाल को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता रहा है।

        बाह्य त्वचा पर नमी की मात्रा बढ़ाने के लिए किसी प्रसाधन का निर्माण सर्वप्रथम सन् 150 में ग्रीक चिकित्सक गेलेन द्वारा किया गया। उसने पानी में जैतून का तेल तथा मधुमक्खियों के मोम को मिला कर एक चीज़ बनायी जिसे चेहरे पर लगाने से बाह्य त्वचा अधिक समय तक चिकनी रहती थी। इसका कारण यह था कि पानी द्वारा दी गई नमी को तेल की एक महीन परत अधिक समय तक त्वचा पर क़ायम रख सकती थी। इस महीन परत के कारण पानी का वाष्पीकरण होने में अधिक देर लगती। मोम के कारण पानी और तेल का एक पायस या इमल्शन बना लेते। पानी का वाष्पीकरण होने के कारण चेहरा कुछ ठंडापन महसूस करता इसलिए इसे ‘कोल्ड क्रीम’ कहा जाने लगा। कुछ दिनों बाद जैतून के तेल के स्थान पर खनिज तेलों का इस्तेमाल किया जाने लगा क्योंकि जैतून या अन्य फलों या बीजों से प्राप्‍त तेल कुछ समय के बाद बदबू देने लगते हैं। आज तैयार की जाने वाली अधिकांश त्वचा संरक्षक वस्तुओं का आधार गेलेन द्वारा किया गया अनुसंधान ही है। चिकित्सा वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रमुख रूप से गेलेन के फ़ार्मूले का उपयोग ही थोड़े बहुत परिवर्तन कर किया जा रहा है। विभिन्न तेलों का उपयोग अन्य प्रकार के मोम विविध खुशबू तथा अलकोहल का उपयोग करने से काफ़ी भिन्न दिखायी देने वाले पदार्थ बनाना संभव है परंतु सभी का उद्देश्य एक ही है और वह है बाह्य त्वचा पर उपस्थित नमी को अधिक देर तक टिकाये रखना। दूसरा उद्देश्य होता है त्वचा को साफ़ रखना।
अब इन दोनों उद्देश्यों को लेकर बनाए गए पदार्थों को विज्ञापनों में त्वचा-चिकित्सा को औषधियों के रूप में वर्जित किया जाता है। यह एक ग़लत प्रचार है। न्यूयार्क विश्‍वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.ब्राउर का कहना है कि ऐसा कह कर कंपनिया लोगों को भ्रमित कर रही हैं। यदि त्वचा की कुछ व्याधि या रोग के लिए एंटिबायोटिक क्रीम या कार्टिजोनयुक्‍त क्रीम त्वचा पर लगाने की सलाह दें तो उसे त्वचा चिकित्सा कहने की बात तो समझ में आती है परंतु सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनिया अपने नुसखों से त्वचा रोग का इलाज तो नहीं करती हैं। फिर यह झूठे दावे क्यों किए जाते हैं ? डॉ. ब्राउर के अनुसार गेलेन द्वारा निर्मित ‘कोल्ड क्रीम’ में और आज की आधुनिक त्वचा संरक्षक चीज़ों में कुछ भी मूलभूत फ़र्क़ नहीं है। कुछ कंपनियों द्वारा निर्मित पदार्थों में एमिनो अम्ल मिलाए जा रहे हैं। उनका दावा है कि केरेटिन एक प्रोटीन है और प्रोटीन एमिनो अम्ल से ही बनाते हैं अर्थात एमिनो अम्ल को मिला कर बनाए गए कोल्ड क्रीम में बाहरी त्वचा की नमी को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के गुण होना स्वाभाविक है। कुछ कंपनियां ऐसे भी दावे करती हैं कि उनके द्वारा बनाए गए त्वचा संरक्षक पदार्थ त्वचा के भीतरी हिस्से तक पहुंच कर अपना कार्य करते हैं। इस प्रकार के दावे का प्रमुख कारण वैज्ञानिक शब्दों का प्रयोग कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाना है कि ये पदार्थ विशेष रूप से वैज्ञानिक तरीक़ों से बनाए गए हैं। हमें इन विज्ञापनों के चक्कर में फंस कर यह नहीं सोचना चाहिए कि आधुनिक सौंदर्य प्रसाधन लगभग 180 साल पूर्व गेलेन द्वारा बनाए गए कोल्ड क्रीम से भिन्न है।

        आम लोगों में यह साधारण ग़लतफ़हमी होती है। वे सोचते हैं कि महंगी वस्तु गुणों में भी अधिक अच्छी होती हैं। इसी कारण महिला वर्ग सस्ते और अधिक कार्यक्षम पदार्थों की तुलना में महंगे पदार्थों का उपयोग करना चाहता है। दुनिया का अस्सी प्रतिशत सौंदर्य प्रसाधन व्यापार इसी ग़लतफ़हमी पर और महंगे पदार्थों का उपयोग करने की मानसिकता पर पनप रहा है। त्वचा को चिकनी और स्निग्ध बनाने का सर्वोत्तम इलाज है पैट्रोलियम जैली का उपयोग करना। चेहरे को साफ़ धोकर गीले चेहरे पर थोड़ा सा वैसलीन मलने से जो परिणाम प्राप्त होंगे वे कितनी भी महंगी चीज़ से बेहतर होंगे। परंतु आधुनिक ज़माने में हम विज्ञापनों से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि कोई भी सस्ता कारगर इलाज हमें रास नहीं आता। सस्ता कह कर हम उसे नहीं अपनाते और अपने धन का अपव्यय करते रहते हैं। कुछ चीज़ें जो प्रतिष्ठा के लिए ही हम रखते हैं या फिर उनका उपयोग खुद को बड़ा दिखाने के लिए किया जाता है। कंपनियों के विज्ञापनों का एकमात्र उद्देश्य होता है ऐसा वातावरण तैयार करना जिसके कारण लोग दूसरी बात सोचना ही बन्द कर दें।
        कुछ कंपनियां ऐसे विज्ञापन देकर लोगों को गुमराह करती हैं कि बूढ़ों की त्वचा भी जवानों के समान दिखने की ताक़त उनके द्वारा निर्मित प्रसाधनों में है। प्रत्येक लोग विशेष रूप से महिलाएं चाहती हैं कि वह जवान दिखलाई दें। बुढ़ापे में त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है। यदि आप सुन्दर दिखने हेतू सूर्य स्नान लेने में विश्वास रखती हैं तो आपके चेहरे पर झुर्रियां बहुत जल्दी पड़ने की संभावना है।
        त्वचा को अधिक कांतिमय बनाने हेतू चेहरे पर विविध प्रकार के लेप भी लगाये जा सकते हैं। ब्यूटी पार्लरों की भाषा में इसे फेशियल कहा जाता है। ये लेप विभिन्न पदार्थों से बनाए जाते हैं और विविध रंगों में मिलते हैं। उनका असर केवल मानसिक ही है। इसे लगाने वाला कुछ सुख का, स्‍फूर्ति का तथा ताज़गी का अनुभव करता है। चेहरे पर मिट्टी का तेल लगाना सबसे पुराना तरीक़ा है और सबसे अधिक कार्यक्षम लेप लगाने से बाह्य त्वचा की कोशिकाएं तथा चेहरे पर उपस्थित मैल को निकाला जा सकता है। यदि आपको यह ग़लतफ़हमी हो गई है कि इससे आपका कायाकल्प हो जाएगा तो आप इसका प्रयोग न करें। बड़े-बड़े भारतीय विद्वानों ने इसे आज़माया था परन्तु ऐसे बहुत कम थे जिन्होंने इस प्रयोग की निरर्थकता को स्वीकार किया।
        हमारी त्वचा की रचना ही ऐसी है कि महंगे से मंहगे पदार्थों का उपयोग करने के बाद भी हम उसमें मूलभूत परिवर्तन नहीं ला सकते। लगभग 1800 साल पहले खोजा गया इलाज आज भी उसी मूलभूत आधार पर कार्य कर रहा है। सस्ते इलाज करना अधिक समझदारी की बात है। विज्ञापनों के चक्करों में फंस कर नये-नये फ़ार्मूलों की चीज़ें उपयोग करने से अधिक लाभ नहीं होगा।
       इसका अर्थ यह क़दापि नहीं है कि उचित सौंदर्य प्रसाधन नाम की कोई चीज़ है ही नहीं है। अब उचित क्या है इस बात का फ़ैसला आपको स्वयं ही करना होगा। यदि आप नहीं कर सकती हैं तो फिर यह फ़ैसला किसी ब्यूटी पार्लर की विशेषज्ञ पर ही छोड़ना चाहिए। यही कारण है कि शहरों व क़स्बों में नये-नये ब्यूटी पार्लर खुल रहे हैं जब तक सौंदर्य पारखी इस दुनिया में विराजमान हैं सौंदर्य प्रसाधनों का महत्त्व बना रहेगा और ब्यूटी पार्लर यूं ही खुलते रहेंगे।

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