-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

आज शिवानी और मोहित की जीत हुई थी। शैलजा के हौसले के दम पर अपराधियों को उम्र कैद की सज़ा मिली थी। शैलजा के हौसले ने मोहित और शिवानी को लोहे जैसा ठोस बना दिया था। मंत्रियों की तरफ़ से बड़े-बड़े प्रलोभन दिये गये। समझौते के लिये बेटी को सरकारी नौकरी की ऑफर दी गई। पुलिस कमिश्नर की तरफ़ से जान से मार देने की धमकियां मिली। विरोधियों का हर वार सीने पर सहन करते हुये एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी गई थी। आज फिर से सब याद करते हुए उनकी आंखें भर आई थी। जीत का संतोष दर्द को कुछ कम कर रहा था पर टीस अब भी बाकी थी।

उनके ज़ेेहन में कभी नहीं आया था कि ऐसी दुर्घटना से सामना हो जाएगा। वे तो पति-पत्नी बड़े उत्साह और प्रसन्न भाव से सैर को निकले थे। वे रोज़ाना शाम पांच बजे शहर की माल रोड पर चहल कदमी करते थे। उस दिन भी मोहित और उसकी पत्नी शिवानी बड़े खुशमिज़ाजी माहौल में सड़क के किनारे-किनारे आपस में वार्तालाप करते हुये चले जा रहे थे। सुबह-शाम सैर करना उनकी आदत बन गई थी। इससे उनकी सेहत तन्दुरुस्त और चुस्त थी। 50 वर्ष की आयु में मोहित के चेहरे पर बहुत चमक थी। उसका शरीर फुर्तीला और ऊर्जा से भरा हुआ था। शिवानी का यौवन भी ढला नहीं था। पौष्टिक आहार और व्यायाम ने उसको बहुत सुन्दरता एवं आभा बख़्शी थी। वह मनमोहक और आकर्षण की मूर्ति जैसी थी। 40 वर्ष की हो जाने पर भी वह किसी नवयौवना से कम नहीं थी। चेहरे का नूर और पतली कमर के झटके, नागिन सी बल खाती जब अपनी घनी ज़ुल्फ़ों को बिखेर कर लहराती थी तो हवा में महक भर जाती थी। दोनों पति-पत्नी की जोड़ी कमाल की थी। उनके प्रेम की चर्चा से सभी अवगत थेे। उनमें कलह-क्लेश या आपसी मन-मुटाव का नामोनिशान नहीं था।

सूर्य धीरे-धीरे ढल रहा था। हवा का झोंका शरीर को ठंडक पहुंचा रहा था। यह कोई सुनसान सड़क नहीं थी। राहगीर आ जा रहे थे। मोटर गाड़ियां, थ्री व्हीलर, मोटरसाइकल सवार सड़क पर दौड़ रहे थे। शहर के अन्य लोग भी सैर का लुत्फ़ उठा रहे थे। मोहित और शिवानी भी अपनी मौज मस्ती में आगे बढ़ रहे थे।

अचानक दो मोटरसाइकल सवार उनके पास आकर रुके थे। इतने में दूसरा मोटरसाइकल भी वहां रुका था। अब तीन जन थे। एक ने शिवानी का हाथ पकड़ कर उसे मोटरसाइकल पर बिठाने का प्रयत्न किया था। शिवानी ने प्रतिरोध किया था। शिवानी को मुसीबत में देख मोहित उस युवक से उल्झ गया था। तीनों युवक उस पर टूट पडे़ थे। वह अकेला कहां तक लड़ता। वह उनके लात-घूंसों से घायल हो गया था। उन्होंने यहां ही बस नहीं की थी। वो उन दोनों को खींच कर सुनसान जगह पर ले गए थे। मोहित को एक वृक्ष के साथ कस कर रस्सी से बांध दिया था। अब उन्होंने शिवानी की इज़्ज़त के साथ घिनौना खेल आरम्भ कर दिया था। फिर तीनों ने बारी-बारी से इन्सानियत को शर्मसार किया था, मुंह काला किया था। फिर उसी कटी फटी हालत में शिवानी को सड़क पर फेंक दिया था और मोहित की रस्सियां खोल दी थी। वो गिरता पड़ता शिवानी के पास पहुंचा था। लोगों की भीड़ आ जा रही थी। शिवानी अपने कटे फटे कपड़ों को संभालते हुए अपने हाथों से खुद को ढकने का प्रयत्न कर रही थी। कुछ सिरफिरे अपने मोबाईल पर उनकी तस्वीर खींच रहे थे। अपराधियों में से एक व्यक्ति ने पहले ही वीडियो बनाकर उसे वायरल भी कर दिया था। मीडिया वालों को पता लगा तो उन्होंने इसकी फुटेज सार्वजनिक कर दी थी। तस्वीर में जो दरिंदे दिख रहे थे। उनको पहचानना मुश्किल नहीं था। एक पुलिस कमिश्नर का बेटा और दो मंत्री पुत्र मोटरसाइकल पर भाग रहे थे।

मीडिया वालों ने इस दुर्घटना पर बढ़ चढ़ कर रोल अदा किया था। यदि शासन के प्रतिनिधियों और कानून के रखवालों की सन्तानें जघन्य अपराध करेंगे तो जनता कैसे महफूज़ रहेगी। नतीजे के तौर पर तीनों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

मोहित बहुत परेशान था। वो समाज का सामना कैसे करेगा। इसलिये उसने अपनी जीवन लीला समाप्त करने की योजना बना ली थी। उसने सुसाईड नोट भी लिख लिया था। मोहित ने लिखा, “मैं अपनी पत्नी की इज़्ज़त की हिफ़ाज़त नहीं कर सका। दरिंदों ने मुझे जकड़ रखा था इसलिये पति का फ़र्ज़ नहीं निभा सका। मैं आत्म हत्या कर रहा हूं, मेरी आत्म हत्या नहीं हत्या है। इसके दोषी मेरी पत्नी के बलात्कारी हैं।” शिवानी तो घृणा और ग्लानि से भर चुकी थी। जहां उसका मन उन दरिंदों के प्रति घृणा से भर चुका था वहीं उसे खुद से भी घिन आने लगी थी। अपनी इस हालत से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाने के लिए उसने भी मरने की ठान ली थी। शिवानी ने मौत के नोट में लिखा, “मैं अपने पति के क़ाबिल नहीं रही इसलिये आत्महत्या कर रही हूं।” गनीमत थी कि समय रहते ये काग़ज़ के टुकड़े शैलजा के हाथ लग गये। वो अंदर तक हिल गई थी।

उसने दोनों को बिठाया और प्यार से समझाया था। उसने पूछा था उनसे “ये क्या बुज़दिली है। आपको बिना क़सूर किए मरने की क्या ज़रूरत है। भाढ़ में जाए समाज और भाढ़ में जाएं रिश्तेदार, हमें धैर्य और हौसले से जंग जीतनी होगी। ज़िन्दगी को ख़त्म करना कायरता है। ऐसा विचार मन में भी मत लाना।आपने कभी यह सोचा है कि आप चले गये तो मेरा क्या होगा, यह सोचा आपने।” दोनों ने शर्मिन्दा होकर सिर झुका लिया था। इसके बाद शैलजा ने देर तक अपनी मां को दिलासा दिया था और फिर शिवानी की काउंसलिंग का भी इन्तज़ाम किया था। जल्दी ही शिवानी लड़ाई के लिए तैयार हो गई थी।

आज जीत के वक्त भी माता-पिता की उदासी को भांपते हुए शैलजा ने आज फिर उनका मनोबल बढ़ाया था। उनके साहस भरे क़दम के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताते हुए उसने उनको एहसास दिलाया था कि उनका यह काम कितना महत्वपूर्ण है।

मोहित मुस्कुरा कर बोला था, ‘‘शिवानी, शैलजा ठीक कह रही है, हमारी लड़ाई और लोगों के लिए उदाहरण बनेगी। जहां पीड़ितों को लड़ने के लिए ताकत मिलेगी वहीं ऐसे लोगों के आगे बढ़ने से ही अपराधियों के हौसले पस्त होंगे। हमने जो सहना था सह चुके। हम समाज से नज़र चुरा कर नहीं, अपना सिर गर्व से उठा के चलेंगे और समाज के लिए मिसाल बनेंगे।” तीनों की आंखों में अब खुशी के आंसू चमक उठे थे।

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