-आकाश पाठक

सफलता की सर्वश्रेष्‍ठ कुंजी है आत्मविश्‍वास। आत्मा यानि कि मन। मन में स्फुटित रंग से आंशिक विश्‍वास को आत्मविश्‍वास में बदला जा सकता है, बस आवश्यकता है तो संकल्प की। ज़िन्दगी में संकल्प और विकल्प हर समय मौजूद रहते हैं ज़रूरत है सिर्फ़ आत्मविश्‍वास की, इच्छा शक्‍ति की।

अक्सर देखा जाता है कि आत्मविश्‍वास के अभाव के कारण चंद क़दम पहले ही लक्ष्य दूर भागता चला जाता है वह लक्ष्य चाहे नौकरी हो या किसी प्रतियोगिता आदि हेतु साक्षात्कार।

सवाल यहां यह पैदा होता है कि आत्मविश्‍वास कैसे बढ़ाया जा सकता है। तो इसकी कोई औषधि या मंत्र साधु-सन्यासी के पास नहीं मिलेगा, इसे स्वयं में ही खोजना होगा और स्वयं के प्रयत्‍न से ही आत्मविश्‍वास का बीज अंकुरित होगा। सिर्फ़ कुछ बातों का अनुसरण करना हितकर रहेगा, बाकी आपके दृढ़ संकल्प एवं इच्छाशक्‍ति पर निर्भर है।

सबसे पहले आवश्यक है कि आप आशावादी बनें क्योंकि आशावादी व्यक्‍ति ही जूझने की शक्‍ति रखता है, हर क़ामयाबी के पीछे आशावादी सोच छुपी रहती है।

मान लीजिए आप किसी साक्षात्कार आदि की तैयारी कर रहे हैं तो उक्‍त विषय पर आपकी जानकारी विस्तृत रूप में होनी चाहिए। महान् पुरुषों की जीवनी या सामान्य ज्ञान का निरंतर अध्ययन करते रहना चाहिए। इससे आपको महसूस होने लगेगा कि अमुक विषय पर मैं अमुक व्यक्‍तियों से अधिक जानकारी रखती हूं और यही पल विश्‍वास की उत्पत्ति करता है।

90 प्रतिशत असफलता का कारण आलस्य होता है शेष 10 प्रतिशत मेहनत होती है। जिसको हम गंभीरता से नहीं लेते हैं। आलसी व्यक्‍ति का दायरा एवं मानसिक सोच संकुचित रह जाती है। नतीजा उसका विश्‍वास आलस्य के साथ-साथ सोता रहता है।

दूसरों को सफल होते देख उनसे ईर्ष्‍या करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, उनसे प्रेरणा लें, मन में ठान लें कि मुझे अमुक व्यक्‍ति से अच्छा ओहदा प्राप्‍त करना है या सफल होना है, यह सही है कि सफलता के लिए ईर्ष्‍या आवश्यक है, क़ामयाबी की गारंटी तो उस वक्‍़त निश्‍च‍ित है जब आप ईर्ष्‍या को प्रेरणा में बदल लें।

अवसर की प्रतीक्षा बेवकूफ़ करते हैं यह बात सोलह आना सत्य है। इसलिए खुद को तैयार करिए कि अवसर स्वयं चलकर आएं। क्लास, सेमिनार आदि में सबसे आगे बैठिए, इससे आप लोगों में पहचान बनाने में क़ामयाब हो जाएंगे। आत्मविश्‍वास जागृत करने का मूल मंत्र है ‘बोलना’। अपने विचार, राय बिना झिझक के अन्य लोगों के सामने रखिए चाहे आप स्वयं अपने विचारों से सहमत हों या नहीं परंतु बोलिए अवश्य।

कुछ बातों को आप पहन लें तो ज्‍़यादा अच्छा रहेगा। मसलन किसी से बातचीत के समय गर्दन न झुकाएं, सामने बैठे व्यक्‍ति की आंखों में झांकते हुए जवाब दें या सवाल करें। बगैर रुपए के दुनियां में एक चीज़ मिलती है वह है मुस्कुराहट। मुस्कुराहट आपका व्यक्‍तित्व होगी। चेहरे पर मुस्कुराहट आपके व्यक्‍तित्व को प्रभावशाली बनाने के साथ-साथ आत्मविश्‍वास जागृत करने में अमृत का काम करती है।

आपकी चाल-ढाल कुछ इस तरह से होनी चाहिए कि लगे आप यहां जिस मक़सद से आए हैं उसे प्राप्‍त करके ही जाएंगे। घिसटते क़दम हीन भावना एवं आलस्य का घोतक है। आपके चलने से जो आत्मविश्‍वास बढ़ेगा वह आपकी सफलता निश्‍च‍ित करता है।

कुछ-कुछ मामलों में घमण्ड किया जाए तो बात ही कुछ और होगी। मसलन आप अपनी भाषा शैली में इतनी मिठास घोले हुए हैं कि सामने बैठा व्यक्‍ति आपके वशीभूत हो जाए। चाल में घमण्ड होना चाहिए। याद रखें कि चाल में घमण्ड ही होना चाहिए अकड़ नहीं।

चलते-चलते आत्मविश्‍वास बढ़ाने का मूल मंत्र और भी है। जिस कार्य से आपको भय लगता है, आप उस कार्य को अवश्य करें। जैसे कि किसी बड़े अधिकारी से मिलना है तो आप उनके सामने जाएं तो झिझके नहीं। अपनी बात उनके सामने रखें। आपका भय जाता रहेगा।

फिर आप महसूस करने लगेंगे कि आत्मविश्‍वास तो मेरे ही शरीर में कहीं छुपा बैठा था।

 

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