-मीरा हिंगोरानी

ये सभी जानते हैं कि ठहाके मार कर हंसने से, बहुत से रोगों का निवारण होता है। आज के व्यस्त जीवन में, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा। लाफिंग थैरेपी को विशेष मान्यता दी जा रही है।

एलोपेथी, होम्योपेथी, नैचरोपेथी व आयुर्वैदिक ‘यूनानी पद्धति’ की तरह इस लाफिंग थैरेपी को भी आज महत्त्व दिया जा रहा था। इसे लोकप्रिय बनाने हेतु, कई संगठन व संस्थाओं का निर्माण हुआ है। अहमदाबाद में इस थैरेपी के चालक, श्री वी.डी. देसाई का कथन है कि अब तक उनके क्लब में, एक हज़ार से अधिक सदस्य हैं। ये प्रात: काल क्लब में आकर अपने आपाधापी व कड़वाहट भरे जीवन का ख़ातमा, ठहाकों से करते हैं।

पूरे दिन में बीस-पच्चीस बार, ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने से पेट के अंदरूनी हिस्सों का अच्छा व्यायाम होता है। इस तरह मांसपेशियों के अभ्यास से, अंदरूनी रोगों से भी बचा जा सकता है। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक मत है कि कैंसर जैसे घातक रोगों पर भी कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि आपके अंदर आत्म-बल है तो बहुत कुछ सम्भव है। कैलिफोर्निया विश्‍व विद्यालय के डॉ.एल.एस.वर्क के मतानुसार, रोगी के अन्दर जो कैंसर का डब्लयू.बी.सी. का तत्व है, जो कि कैंसर के कारण ही बनता है, ठहाकों द्वारा उस की भी रोकथाम की जा सकती है।

ठहाकों से मानसिक तनाव से राहत तो मिलती ही है, साथ में पेट पर जो दबाव पड़ता है उससे कफ के साथ पित्त की भी समाप्‍त‍ि हो जाती है। ठहाकों से फेफड़ों को भरपूर ऑक्सीजन मिलती है।

यदि आप निपट अकेली या अकेले रहते हैं या कोई हंसने-हंसाने वाला संगी साथी भी नहीं है तो दिन में दो बार अपने किसी (अमुक) मित्र से फ़ोन पर बात करें, कोई हास्य प्रसंग छेड़ें, या कोई दमदार लतीफ़ा सुनाएं। इस तरह हर आयु वर्ग के व्यक्‍ति‍यों को अपनी दिनचर्या में ठहाकों को अवश्य शामिल करना चाहिए। हंसने में कोताही मत कीजिए।

एक बार का ज़िक्र है, हम बस में सफ़र कर रहे थे, एक व्यक्‍ति सीट रहते भी खड़ा रहा। हमने उससे न बैठने का कारण पूछा तो वह बिफर पड़ा – बहन जी माफ़ करना, मैं जल्दी में हूं, बैठने का टाईम नहीं है। अब हम सोच रहे हैं कि जब उस व्यक्‍ति के पास बैठने का ही वक्‍़त नहीं तो हंसने का टाईम कौन-सी दुकान से ख़रीदेगा?

उस दिन गांव से पिताजी का पत्र आया मां काफ़ी बीमार है। मेरे एक क़रीबी मित्र जो खुले स्वभाव के हैं, मेरा हाल पूछने आ धमके। मेरी बहन ने पूछा- “भाई साहिब, पानी लाऊं या चाय?” वे तपाक से बोले “वरमाला लाओ भई, अपने कंवारे दोस्त के लिए।” उनकी बात से वहां का उदास माहौल भी गुलाबी हो गया। मेरे चेहरे की मुस्कुराहट देख, मेरे मुरारी लाल मित्र बोले- “अरे यार! मां की बीमारी अपनी जगह, हंसना-हंसाना अपनी जगह। यूं हर समय लैम्प पोस्ट की तरह मुंह लटकाए रहने से मां ठीक होने से रही। ऐसे करो, वहां जाकर उन्हें भी दो-चार लतीफ़े सुना देना। सुना है हंसने से पेट की कई, बीमारियों को विराम मिलता है।”

अब जाकर हमारे भेजे में यह बात फिट हुई है कि सबको मालूम है कि हंसने का कोई पैसा टका नहीं लगता! फिर भी लोग हंसने में कोताही कर जाते हैं। हर समय बस दलीप कुमार की तरह ट्रेजेडी किंग बने रहेंगे। कुछ लोग तो मुंह पर ‘हेरीसन’ का बड़ा-सा लॉक (ताला) ही लगा लेते हैं। हर समय डर बना रहेगा कि तिजोरी के खुलते ही कहीं दो-चार सिक्के ढुल्क न जाएं। अरे भाई हंसो, खूब हंसो, जी खोल कर हंसो, हंसने पर कभी राशन कार्ड नहीं बना।

उस दिन हम सड़क से गुज़र रहे थे, देखा एक भिखारी, दो हाथों में दो-कटोरे लेकर भीख मांग रहा है। हमने एक कटोरे में एक रुपया डाला। उत्सुकतावश पूछ बैठे “अरे भाई! यह दूसरे हाथ का कटोरा, किस मर्ज़ की दवा है?”

“सर, वो क्या है कि कुछ दिनों से कारोबार इतना बढ़ गया है कि मजबूरन दूसरी ब्रांच खोलनी पड़ गई।” फ़कीर का उत्तर सुन, हम उनकी अक्ल की दाद दिए बिना न रह सके।

हमारा एक लंगोटिया यार है माक्खन लाल, लतीफ़ों का पिटारा लिए घूमते है अपने संग। एक दिन हम प्लेटफार्म पर, अपने मामा के आने का इंतज़ार कर रहे थे ‘मियां लतीफ़ुल्ला’ इसी नाम से बुलाते हैं हम उन्हें, मिल गए। हमें अच्छा लगा-चलो, अब समय अच्छा कटेगा बोले- “क्यों भाई! मदन जी, उस दिन यूं पार्टी से ग़ायब हुए, जैसे गधे के सिर से सींग!” हम एक बेंच पर पसर गए, उनका पिटारा खुला- सुनो एक बार एक नेता मैदान में पत्थर चुन रहे थे! एक राहगीर ने पूछा- “क्यों भाई, पत्थर क्यों चुन रहे हो?” नेताजी खिसियाई हंसी हंसे बोले- “वो क्या है कि कल इहां मैदान में, हमरा भाषण है।” राहगीर मुस्कुरा कर बोला- “आपको कष्‍ट करने की कौनो ज़रूरत नाहीं। आप घर जाइए, आराम फरमाएं, यो पत्थर उठाने, फेंकने का काम, जनता जनार्दन पर छोड़ देवें। आप काहे कष्‍ट उठा रहे नेताजी।” मेरे मित्र ने अंतिम वाक्य हाथ नचाकर कुछ इस अंदाज़ में कहा कि सामने से आते साईकल सवार, अख़बार वाले छोकरे का बैलेंस बिगड़ा – एक अख़बार मेरी गोद में आ गिरा! पहले ही पृष्‍ठ पर बड़े अक्षरों में लिखा था- “ठहाके लगाईये-रोग भगाईये”।

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