-मुकेश शर्मा

यह घटना प्रथम विश्व युद्ध की है। युद्ध के दौरान एक रूसी इंजीनियर की एक टांग कट गई। उसने नक़ली टांग लगवा ली ताकि अपना काम यथावत करता रहे और युद्ध में देश उसकी सेवाओं से वंचित ना रहे।

एक दिन वह अस्पताल में हताहत सैनिकों को देखने और उनका उत्साहवर्द्धन करने गया। उसने माहौल को विनोदपूर्ण बनाने और घायलों की हौसला-अफ़ज़ाई करने के लिए हंसते हुए कहा, ‘दोस्तो! नक़ली टांग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस पर चोट लगने का एहसास नहीं होता।’ इतना कहकर उसने अपनी छड़ी एक घायल सिपाही के हाथों में थमा दी, और कहा, ‘लो इसे मेरी टांग पर ज़ोर से मारकर देखो।’ उस व्यक्ति ने आनन-फानन में कसकर बेंत मारी। इंजीनियर पहले की ही तरह मुस्कुराते हुए बोला, ‘देखो कोई असर नहीं हुआ।’ अस्पताल में घायल पड़े लोग खिलखिला कर हंस पड़े।

जब अभियंता बाहर निकला तो उसके चेहरे पर पीड़ा भाव देखकर उसके मित्र ने पूछा, ‘क्या हुआ?’ वह बोला, ‘अरे यार! इस आदमी ने मेरी असली टांग पर बेंत मार दी थी। अब पीड़ा हो रही है।’ ‘लेकिन उस समय तो तुम हंस रहे थे?’ मित्र ने आश्चर्य से कहा- ‘हां, मैं उन घायल सिपाहियों की उस थोड़ी-सी हंसी को उदासी या अफ़सोस में नहीं बदलना चाहता था।’ यह बताने के बाद उस इंजीनियर ने फिर अपना दर्द होंठों में दबा लिया।

 

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