-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

रमणीय वसुन्धरा और वनस्पति के दर्शन केवल किसानों के परिश्रम पर ही निर्भर हैं। भारतीय इतिहास भौतिक सम्पदा में एशिया महाद्वीप में सबसे अग्रणी और सर्वोपरि है। भारत का अधिकांश भाग कृषि पर निर्भर करता है। भारत का किसान ऐसा महत्वपूूूूर्ण अंग है जो समूचे भारत को अन्न भंडार देकर सारे भारत का भरण पोषण करता है। यदि हम इस धरती पर ज़िन्दा हैं तो यह हमारे किसान भाइयों की ही अनुकम्पा है कि हम खुशहाल जीवन का निर्वाह कर रहे हैं। भारतीय किसान हमें भोजन ही नहीं उपलब्ध करवाता है बल्कि सुन्दर पेड़ पौधे उगाकर मीठे फल और औषधीय वृक्ष आंवला, जामुन, पीपल, बरगद, नीम, तुलसी, इलायची, अजवायन, हल्दी जैसे पदार्थ भी जुटाता है। रहने के लिए मकान की लकड़ी और पहनने को कपड़े के लिए कपास, पटसन और रेशम जैसे उद्योग भी खेती पर ही निर्भर करते हैं। हमारी दिनचर्या की जितनी भी वस्तुएं है सब कृषि पर ही निर्भर करती हैंं। किसान हमारा अन्न दाता ही नहीं हमारे जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ानेे वाला एक धुरा है जिसके गिर्द सारी सृृष्टि घूमती है। जिस प्रकार सेना के जवान हमें प्रोटैक्शन देते हैंं उसी प्रकार किसान हमें अन्न उपलब्ध करवा कर हमारी सांसों को गति देते हैंं जो किसान पूरी दुनिया का पेट भरता है वह स्वयं भूखा नंगा है। उसके पास न कोई रहने को अच्छा निवास है न पहनने को ढंग के कपड़े, उसका पूरा परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे जोखिम भरा दोजख़ का जीवन जीने पर मजबूर है। दलितों से भी उसकी आर्थिक अवस्था बदतर है।

दलितों और अनुसूचित जाति को तो कई प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं। जैसे गैस के कनेक्शन, आटा, दाल, मुफ़्त लैपटॉप और साइकिल मुफ़्त, शगुन–विवाह पर धन, अस्पताल में मुफ़्त इलाज, फ्री 400 यूूनिट बिजली, 5 मरले के मकान वालों को फ्री पानी। परन्तु ये सुविधाएं किसानों को क्यों नहीं दी जाती, ये कैसा अन्न दाता है जिस पर इतना अत्याचार हो रहा है। उसका पूरा परिवार खेती बाड़ी में हाथ बंटाता है पशुओं के लिए चारा ढोता है। उसकी मासिक आमदनी दो हज़ाार से भी कम है, ऐसे में वेे अपना गुज़ारा कैसे करें, सीधी सी बात है कि वह साहूकार से कर्ज़ लेकर उनके चंगुल में फंस जाता है। बैंकों के कर्ज़ तले डूब जाता है। जब उसके आमदनी के साधन ही पर्याप्त नहीं तो वह लिया हुआ कर्ज़ कैसे लौटाये। बड़ी दयनीय स्थिति में वह आत्म हत्या करके परिवार को रोता बिलखता छोड़ जाता है । महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और मध्य प्रदेश की आत्म हत्यायें अख़बारों की सुर्खियां बनती हैं। सरकारें, सत्ता में आने से पहले कर्ज़ माफ़ी के बड़े-बड़े वायदे करती है परन्तु सिर्फ़ आधा अधूरा ही कार्य होता है जिससे उनका ब्याज़ ही चुकता होता है, ऋण जस का तस सिर पर मंडराता रहता है। सरकार उनके लिए न तो अच्छे बीज और न ही खाद उपलब्ध करवाती है।

उनकी फ़सल पर वर्षा, ओले, तूूफ़ान, गर्मी और आग जैसी दुर्घटनाएं हो जाने पर ये अन्न दाता दांत तले उंगली दबाकर रह जाता है। उसको जीवन बीमा या फसल बीमा राशि भी पूरी नहीं मिलती। उसके अनाज को मंडियों में कौड़ियों के दाम खरीदा जाता है। जब उन्हें पूरे दाम नहीं मिलते तो सड़कों पर आलू-टमाटर फेेंक कर रोष जताया जाता है तब भी उनकी पुकार कोई नहीं सुनता। किसान की फ़सल मंडियों में पर्याप्त बन्दोबस्त न होने पर कई-कई दिन पड़ी सड़ती रहती है। आढ़ती लोग उसके अनाज का उचित मूूल्य नहीं देते हैंं और लम्बे समय तक फ़सल की क़ीमत लौटाते नहीं। किसान ने भी बच्चों को पढ़ाना होता है। विवाह-शादियों का ख़र्च उठाना होता है, बीमारियों के इलाज के लिये धन को कहा़ं से प्राप्त करें। अनुसूचित वर्ग को दलितों को सुविधायें देने के लिये सरकार के पास पैसे हैं तो किसानों को गुज़ारा भत्ता क्यों नहीं दिया जा सकता। वह तो दुनिया को अन्न का परम दान देकर सृष्टि की भूख को मिटाता है। उसकी भूख का सरकार को क्यूं ध्यान नहीं अपने वोट को पक्का करने के लिये अनुसूचित वर्ग पर बेतहाशा धन लुटाया जाता है तो किसानों के साथ क्यूं सौतेला व्यवहार किया जाता है। उन्हें कभी ढुलाई की समस्या आती है, कभी पुरानी क़ीमतों की समस्या आती है। यह विडम्बना है कि किसान अपने द्वारा निर्मित प्रोडक्ट का मूल्य स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता। गन्ने, कपास और गेहूं का मूल्य सरकार निर्धारित करती है। कई महीनों तक उनके द्वारा हुई सामग्री का भुगतान पूरा नहीं मिलता, किश्तों में दिया जाता है। दुनिया भर की कम्पनियां और उद्योगपति अपने द्वारा तैयार किये हुए प्रोड्क्टस का मूल्य स्वयं निर्धारित करते हैं परन्तु किसान को इस  अधिकार से वंचित किया जाता है। जमाख़ोर उसके अनाज को सस्ते भाव में ख़रीद कर स्टोर कर लेते हैं, अपना मनमाना भाव लगाकर महंगाई को बढ़ाते हैं। यदि सरकार किसानों की सिंचाई के साधनों को उपलब्ध करवाये, नये-नये बीज और खाद मुफ़्त देकर सहायता करे उनकी यह दुर्दशा नहीं होगी और न वे आत्म हत्याएं करने की चेष्टा करेंगे।

  जिन किसानों की ज़मीन केवल एक-दो एकड़ है वे सब ग़रीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं, उनको मासिक गुज़ारा भत्ता दिया जाना चाहिये। किसान से मज़दूर लाख दर्जे बेहतर है जिसको तीन या चार सौ दिहाडी़ मिलती है। किसान के सारे परिवार की आमदनी 50 रु. भी नहीं बनती, हमारे देश में किसान अन्य देशों की तुलना में कहीं निर्धन है। यह चिन्तन का विषय है कि उनकी आर्थिक व्यवस्था को कैसे सुधारा जाए। जब तक किसान जीवित है तब तक हम जीवित हैं क्योंकि जीने के लिये रोटी चाहिये और वह रोटी केवल हमें अन्न दाता ही दे सकता है। यह देश के लिये शर्म की बात है कि भारत का किसान खेती बाड़ी का धंधा छोड़कर विदेशों में मज़दूरी करने जा रहा है। यदि खेती बाड़ी से उसका निर्वाह हो जाये तो वह विदेशों की धूल क्यूं फांकें। पंजाब जैसे समृद्ध प्रदेश का यह हाल है तो दूसरे शुष्क प्रांतों का क्या हाल होगा।

एक और गहन समस्या है किसानों की ज़रखे़ज़ ज़मीन को सरकार द्वारा सस्ते भाव पर ज़बरदस्ती बेचा जाता है। इससे वे अपनी भूमि के टुकड़े को गंवा बैठते हैं। उद्योगीकरण के नाम पर उनको ठगा जाता है, जिस पर निजी कम्पनियां अपना अधिकार स्थापित कर लेती हैं। किसान के लाख विरोध पर भी उसकी दुहाई कोई नहीं सुनता।

सरकारी मुलाज़िम पे कमीशन लागू करवाने तथा महंगाई भत्ता बढ़ाने के लिए जब हड़ताल कर देते हैं। सरकार उनके आगे घुटने टेक देती है। तो किसानों पर तरस क्यूं नहीं आता। विवश होकर किसान आन्दोलन पर उतर आए। सरकार को उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन देने की बजाय पहल के आधार पर उचित मांगे स्वीकार कर लेनी चाहिये इससे जनता और किसान दोनों की भलाई है।

 

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