-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

आधुनिक समाज में नशे की प्रवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि देश के युवक-युवतियां इसके चंगुल में फंस चुके हैं। इस नशे ने समाज के ढांचे को तहस-नहस कर दिया है। मां-बाप दु:खी हैं। जिनकी संताने अपने भविष्य को अंधकार में तो ले जा ही रही हैं, घर-परिवार, समाज, संस्कृति, आचरण और अनुशासन का भी सत्यानाश हो रहा है। नशे के लिये चोरी, डकैती, बलात्कार, अपहरण जैसी घटनाएं प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इस नशे ने युवक-युवतियों को कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त कर दिया है। शराब, गांजा, कोकीन, हेरोइन के आदी नवयुवक और युवतियां देश की रक्षा कैसे करेंगे? कैसे हमारे ये बच्चे सेना, पुलिस और सुरक्षाबलों में भर्ती होकर देश की रक्षा करेंगे? कैसे सरकारी ज़िम्मेदारियां निभाएंगे? हम नशे से छुटकारा पाने के लिये बहुत कोशिश कर रहे हैं परन्तु यह समस्या जस की तस बनी हुई है। जिन हाथों में देश की बागडोर सम्भालने का उत्तरदायित्व है, यदि वही पतन के गर्त में गिर रहे हैं तो कौन इस देश को ऊंचा उठायेगा। महात्मा गांधी ने तो कहा था, “लाये हैं हम तूूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के।”

ये नशेड़ी बच्चे कैसे देश की प्रगति में भाग लेंगे। हमारी विरासत में गांवों के बच्चे और नौजवान शरीर को हष्ट-पुष्ट रखने की ओर सबसे अधिक ध्यान देते थे। कबड्डी, कुश्ती, लम्बी छलांग, दौड़ें और व्यायाम करके दूध-दही, मक्खन का सेवन करते थे। नशे का कहीं नामो-निशान नहीं था। आज भी नशे को ख़त्म करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों में खेलों का प्रबन्ध करना होगा। हमने केवल किताबी कीड़ा बनने वाले छात्रों का निर्माण नहीं करना है, इंजीनियर, डॉक्टर या अफ़सर ही पैदा नहीं करने हैं बल्कि सेना में भर्ती होने योग्य युवक भी तैयार करने हैं। श्रमिक, किसान और उद्योग धन्धा बढ़ाने वाले नागरिक भी बनाने हैं। नशे से मुक्ति दिलाने का बस यही तरीक़ा है कि बच्चों को खेलों से जोड़ा जाए। खेलें दो प्रकार की होती हैं, इन्डोर-आउटडोर खेलें। इन्डोर खेलों में शतरंज, जूूड़़ो कराटे, मार्शल आर्ट, बॉक्सिंग, लॉन टेनिस हो सकती हैं, आउटडोर खेलों में फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबॉल, कबड्डी, बास्केट बॉल, शॉट पुट, दौड़ें, तैराकी आदि हो सकती हैं।

देशी और विदेशी खेलों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

खेलें आज के युग में नशा मिटाने के लिये वरदान सिद्ध हो सकती हैं। इनसे शरीर की वृद्धि, मानसिक और बौद्धिक विकास होता है। आज शिक्षा का उद्देश्य बच्चे का सर्वांगीन विकास करना है जो खेलों के बिना सम्भव नहीं हैं। खेलों से प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होती है, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ पैदा होती है। अब वह ज़माना चला गया जब कहा जाता था- ‘पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होवोगे ख़राब।’ परन्तु हमने नवाब नहीं बनाने हैं, सामाजिक प्राणी बनाने हैं, जो समाज और देश की भलाई कर सकें।

यह तभी सम्भव है कि यदि हम युवक-युवतियों को खेलों से जोड़ें।

नौकरी पाने के लिये भी खेलें सहायक हो सकती हैं। स्टेट लेवल, राष्ट्रीय स्तर पर चुने जाने वाले खिलाड़ियों को नौकरी में अधिमान दिया जाता है। नशे की लत को ख़त्म करने के लिये सरकार खेलों को बहुत महत्त्व दे रही है। गांव-गांव, नगर-नगर में बड़े-बड़े स्टेडियम बनाये जा रहे हैं। ताकि आने वाले समय में युवक नशे का शिकार न हों। खेलों में जो युवक-युवतियां ऐशियन गेम्ज़ या ओलम्पिक में पदक प्राप्त करते हैं वे देश के लिये गर्व बन जाते हैं।

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