-डॉ. अशोक गौतम

आपके घर में पिछले दस दिनों से पानी नहीं आया, यह कोई समस्या नहीं। आपके बल्बों में दस दिन से बिजली नहीं, यह भी कोई समस्या नहीं। मुहल्ले की स्ट्रीट लाइट्स महीनों से बंद पड़ी हैं, बीसों बार कमेटी में शिकायत करने के बाद भी नहीं सुधरे तो छोड़िए। शिकायत करने से यहां सुधरा क्या है? और भी बिगड़ा है। आपके मुहल्ले का पाइप महीनों से टूटा है तो टूटा रहने दीजिए। विभाग वाले पाइप जोड़ने की नहीं, तोड़ने की खाते हैं। आपके आदर्श मुहल्ले में गंदा पानी महीनों से सड़क पर फैले डेंगू मच्छर के लिए बच्चादानी का काम कर रहा है तो होने दीजिए। जिस मुहल्ले की सड़कों पर गंदा पानी न हो, वह मॉडल मुहल्ला नहीं होता। जिस मुहल्ले के नागरिक बिजली पानी से महरूम न हों, वह मुहल्ला नहीं नरक है।

परन्तु नागरिको, इन सब समस्याओं से बड़ी समस्या है रिश्वत की। सज्जनों, रिश्वत वह आम समस्या है जिससे सभी को रोज़ चाहे न चाहे, कहीं न कहीं, कभी न कभी, दो चार होना ही पड़ता है। ऐसे में यह रिश्वत, रिश्वत देने वालों के लिए तो समस्या है ही, लेने वालों के लिए भी कम समस्या नहीं। यह सच है कि रिश्वत अगर रिश्वत लेने वालों की मरी आत्मा को भी मरने के लिए विवश करती है तो देने वाले की आत्मा को भी कचोटती है पर क्या करें, रिश्वत देना और लेना समय की मांग है। जो रिश्वत देने व लेने में माहिर नहीं समझो वह ज़िन्दगी की दौड़ में बहुत पीछे रह गया है। यह सच है कि रिश्वत लेने के बाद खुद को कितना ही ईमानदार साबित क्यों न करे पर होता वह बिल्कुल नंगा ही है।

रिश्वत देते हुए रिश्वत लेने वाले की आत्मा जितनी मरती है, देने वाले की आत्मा उतनी नहीं मरती। दोनों में बेसिक अन्तर यही है। रिश्वत देने वाले को ही पेट का एहसास नहीं होता, रिश्वत लेने वाले को भी पेट का एहसास होता है। तब दोनों ही न चैन से सो पाने, न चैन से जाग पाने की समस्या से जूझते रहते हैं। दोनों को सोए हुए भी ऐसा लगता है कि वे पाप में डूबे हैं पर मजबूरी है भाई साहिब!

मात्र रोटी खाने से आदमी को सुस्ती नहीं आती, मोटापा नहीं आता, आलस्य नहीं घेरता पर रिश्वत खाने से घेरता है धीरे-धीरे रिश्वतख़ोर अपने जीवन को बाहर से सार्थक, भीतर से निरर्थक समझने लगता है और नतीजा, आर्थिक तौर पर आप चाहे कितने ही मोटे क्यों न हो जाएं, भीतर से पुराने पेड़ की तरह खोखले होते हैं, जिसमें दीमक, चींटियां, सांप और बिच्छू रहते हैं। वैसे नए मूल्यों के तहत रिश्वत खाना बुरा नहीं पवित्र कर्म है। वह चाहे मंत्री हो या संतरी, रिश्वत पर सभी का हक़ है इसलिए हक़ से मांगो रिश्वत। रिश्वत लेना व देना सभी का जन्म सिद्ध अधिकार है पर सलीक़े से, ईमानदारी से अगर रिश्वत खाई जाए तो यह समस्या नहीं। जीवन को जब हम रिश्वत के लिए मान लेते हैं, समस्या तब होती है। रिश्वत समस्या तब बनती है जब आप उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते रिश्वत में डूबे रहते हैं। बन्धुओं, रिश्वत समस्या तब बनती है जब हम अपना पेशा छोड़ कर रिश्वत को अपना पेशा बना लेते हैं।

मैंने नोट किया है रिश्वत समस्या तब बनती है जब हम घर में सब कुछ होने पर भी खुद को ख़ाली महसूस करते हैं। हाई-फाई दिखने के लालच में रिश्वत समस्या बन जाती है। रिश्वत लेते हुए देने वालों की हैसीयत का ध्यान रखें, देने-लेने में आनन्द मिलेगा। वैसे रिश्वत लेनी भी चाहिए, देनी भी चाहिए। इससे व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ती है और दूसरी ओर समय की बचत होती है परन्तु इससे घर में कलह बढ़ती है पर चलो, कलह किस घर में नहीं। 

रिश्वत शब्द से यद्यपि छुटकारा नहीं पाया जा सकता है, जीवन से पाया जा सकता है। जब तक रिश्वत देने वाले रहेंगे, लेने वाले भी रहेंगे। रिश्वत शब्द से छुटकारा पाने के लिए ज़रूरी है जीवन जीने के ढंग में बदलाव लाया जाए। जितना वेतन मिले, उसमें खुश रहें। हालांकि यह कर पाना मुश्किल है पर ऐसा करने पर निडर होकर दफ़्तर में बैठा जा सकता है। सौ चूहे खाकर हज करके आने वालों की भी राय है कि अगर आपको अति के आए रिश्वत देनी ही पड़े और समाज में अपनी गिरती साख बचाने के लिए रिश्वत लेनी ही पड़े तो इतनी भर लें दें कि आप रिश्वतख़ोर न कहलाएं। रिश्वत में आप मुर्गी लें या अण्डा? कृपया एक ही चीज़ लें। दोनों चीज़ें एक साथ लेने से बदनामी होती है और समाज का संतुलन भी बिगड़ता है। रिश्वत इतनी लें जिससे अपकी ईमानदारी पर शक न हो। रिश्वत जहां तक हो सके सूखी लें। पीने-पिलाने से नैतिक पतन सड़कों पर आ जाता है।

कम रिश्वत लेने से समाज में आपकी छवि बनी रह सकती है। आप रिश्वत लेकर भी टोटल ईमानदार बने रह सकते हैं पर अगर आपका मन ज़्यादा रिश्वत लेने को करे तो मन की इच्छा को दबाए नहीं, वर्ना आप टोटल ईमानदारी के चक्कर में डिप्रेशन में जा सकते हैं। पहले खुद फिर ईमानदारी साहिब! रिश्वत जब भी लें, हो सके तो इतनी लें कि आप परम्परा निर्वाह के लिए ले रहे हैं, जीवन निर्वाह के लिए नहीं। सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हलाल न करें। लालच से बचें। काठ की हांडी एक ही बार चूल्हे पर चढ़ती है। रिश्वत धर्म न रहकर समस्या तब बनती है जब आप लालची हो जाते हैं। जब हर आने जाने वाले की जेब पर नज़र रहती है। आप रिश्वत देने को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानें जितना लेने वाले को मानते हैं।

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ज़रूरी है कि जब आपका मन रिश्वत लेने के लिए न कर रहा हो तो सामने वाले की खुली जेब खुद उठकर बंद कर दें। रिश्वत से मिले धन से दान भी करें। इससे रिश्वत का पाप कम होता है। मैं तो नहीं पर अपने गांव के बोधराम शास्त्री का कहना है- रिश्वत लेने के बाद मंदिर जाने को मन करे तो हो आएं, इससे मन की शुद्धि तो नहीं होती पर शुद्धि का भ्रम ज़रूर होता है। रिश्वत देने व लेने को आदत न बनाएं, इसे शौक़ मानकर लें और दें। रिश्वत देना अगर आपका शौक़ है तो रिश्वत समस्या नहीं, रिश्वत लेना अगर आपका शौक़ है तो रिश्वत आपके लिए भी समस्या नहीं। रिश्वत देने व लेने कि लिए कोई प्रतिज्ञा की आवश्यकता नहीं। हां, अगर रिश्वत लेना और देना आपकी सोच बन गया है तो नरक की विभिन्न काल्पनिक यातनाओं का वर्णन गर्दन तक अधर्म में डूबे शास्त्री जी से सुन कुछ दिमाग़ साफ़ किया जा सकता है और रिश्वत देते और लेते हुए भी शुद्धतापूर्ण जीवन जीया जा सकता है।

रिश्वत देने व लेने की समस्या से निजात पाने के लिए ज़रूरी है कि रिश्वत देते हुए तो नहीं पर लेते हुए भगवान् को ज़रूर याद रखें। रिश्वत कम खाएं, पानी ज़्यादा पिएं। रिश्वत खिलाने वाला कितना ही दे, वह तो देगा ही पेट तो अपना है भाई साहब! रिश्वत से उपजी समस्याओं से निजात पाने के लिए ज़रूरी है कि रिश्वत लेने के नियमों का सख़्ती से पालन हो। 

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