-नील कमल ‘नीलू’

ज़िंदगी के सफ़र की मुख़्तलिफ़ राहों पर, मुख़्तलिफ़ मुक़ामों पर कहीं न कहीं किसी हमराज़ की ज़रूरत अकसर पेश आ ही जाती है। क्योंकि अगर अपने राज़ दिल के अंदर ही दबा लिए जाएं, तो वो राज़, राज़ नहीं रहते बोझ हो जाते हैं। दिल की हर बात हर राज़ कभी न कभी, किसी न किसी के सामने लबों पे आना मांगते हैं। इसी लिए ज़िंदगी में कम-से-कम एक हमराज़ होना लाज़िमी है। कितना अच्छा हो, ग़र यह हमराज़ कोई और न हो कर अपना हमसफ़र ही हो। लेकिन क्या हो .. हमसफ़र ही अगर अपना हमराज़ न हो तो ….?

हमसफ़र एक ऐसी शख़्सियत है जो हर अच्छे-बुरे वक़्त, हर ऊँची-नीची राह में हमारा हमक़दम होता है। ज़िंदगी का हर अहम फ़ैसला उसके साथ मिलकर लिया जाता है। शायद बनाने वाले ने हमसफ़र को यही सोच कर बनाया कि एक अकेली ज़िंदगी की बजाय दो ज़िंदगियां मिलकर शायद बेहतर ढंग से जी सकती हों। जब किसी को जीवन का साथी चुन लिया तो उसी जीवन साथी को क्यों कर ज़िंदगी के किसी पहलू से अछूता रखा जाए।

शरीक़े ज़िंदगी को क्यों शरीक़े ग़म नहीं करते।
दुःखों को बांट कर तुम क्यों दुःखों को कम नहीं करते।

हमसफ़र का हमराज़ न होना मुख़्तलिफ़ हालात में मुमकिन है। या तो एक ने दूसरे को भरोसे के क़ाबिल न माना या फिर एक ने दूसरे के राज़ को अपने पास न रखकर किसी तीसरे के आगे ज़ाहिर कर दिया। दोनों ही हालात इस रिश्ते पर, इस नाम पर दाग़ हैं।

हमसफ़र इतना क़रीबी रिश्ता है जिससे कोई भी राज़ छुपाना नामुमकिन है। हर बात आज नहीं तो कल उसके सामने ज़ाहिर हो ही जाएगी। फिर क्यों ऐसा कर उस अपने को दर्द दिया जाए, एक ऐसे अपने को जो पूरी दुनियां में सबसे अपना है। राज़ ज़ाहिर हो जाने पर बचाव का बहुत आसान बहाना है, ‘मैंने सोचा कि तुम्हें यह जानकर दुःख होगा या फिर मैं तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहता था या चाहती थी।’ पर सोचने की बात है कि क्या ऐसे बहाने दिल, दिमाग़ और आत्मा पर लगे आघात की भरपाई कर पाने में सक्षम हैं ज़ाहिर है, क़तई नहीं।

हालांकि रिश्ते की नज़ाकत को मद्दे-नज़र रखते हुए बहुत-सी बातों से हमसफ़र को दूर ही रखा जाता है। पर बात वाक़या इस क़दर गंभीर हो, तो? कहीं ऐसा न हो कि बेवजह ही खुद को उसके दिल से दूर कर बैठें। सोचने की बात है आपकी ज़िंदगी की कोई अहम बात आप ही का हमसफ़र किसी तीसरे से जाने, तो उसे कैसा लगे? या फिर वो बात को जान तो न पाए, पर उसे आपकी या आपके परिवारजनों की किसी प्रतिक्रिया से यह अहसास हो जाए कि कोई ऐसी बात है, जो परिवार में उसी से छुपाई जा रही है। क्या यह सब बातें उसके और आपके दिलों में दूरी ला देने के लिए काफ़ी नहीं?

यह सच है कि ज़िंदगी में बहुत-सी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जो इस रिश्ते को निभाने की ख़ातिर उसी से छुपानी पड़ती हैं। यानी जीवन साथी के सामने राज़ ज़ाहिर करने और छुपाने में बहुत समझदारी की ज़रूरत है। कुछ अत्यधिक गंभीर मुद्दों को छोड़ कोई भी बात आपके हमसफ़र के लिए राज़ नहीं रहनी चाहिए। यह बंधन विश्‍वास का बंधन है। अविश्‍वास की एक छोटी-सी चिंगारी इस रिश्ते के साथ पूरी ज़िंदगी को राख कर सकती है। इसीलिए हमसफ़र, हमक़दम ही नहीं हमराज़ भी होना चाहिए।

जैसा कि पहले कहा कि दिल में छुपे रहने से राज़-राज़ नहीं रहते बोझ हो जाते हैं। दिल का बोझ आप ही की ज़िंदगी को बोझिल नहीं करता, बल्कि इस के कुप्रभाव से आपके साथी व परिवार भी आपसे बच नहीं पाते। निःसंदेह दिल का बोझ स्वभाव में कड़वाहट लाता है और यह कड़वाहट दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार में ज़ाहिर हो जाती है। जीवन साथी के साथ-साथ और रिश्तों में भी फीकापन आ जाता है।

इस बोझ से रिहा होने के लिए इंसान कभी वक़्त-बेवक़्त भावनाओं में बह कर किसी दूसरों के सामने दिल खोल बैठता है और इसका नतीजा जग हंसाई भी हो सकता है और जगचर्चा भी। राज़ एक से दो को और दो से चार को पता चल जाता है।

हमसफ़र के सामने बात करने से विश्‍वसनीय व निष्‍ठा का भी भरोसा रहता है, समस्या का समाधान भी मिलजुल कर आसानी से किया जा सकता है और सबसे बड़ी बात यह कि सांत्वना भी तहे-दिल से जीवन साथी से ही मिल सकती है जिसकी कमज़ोर घड़ियों में इंसान को सब से ज़्यादा ज़रूरत होती है।

अतः हमसफ़र ग़र हमराज़ न हो तो? …… तो या तो आपकी या फिर आपके हमसफ़र की सच्चाई में कहीं न कहीं कोई कमी ज़रूर है। क्या इस झूठ के दाग़ को लेकर अपने हमसफ़र के साथ ज़िंदगी का सफ़र खुशनुमा ढंग से तय कर पाएंगे? ग़ौर कीजिए, स्वयं को आपकी आत्मा का जवाब ‘नहीं’ होगा, यह तय है।

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