-गोपाल शर्म फिरोज़पुरी

नारी सशक्तिकरण की सभी योजनाएं अधूरी हैं जब तक नारी सुरक्षित नहीं है। प्रगतिशील समाज का यह हाल है कि यहां हर पांच दस मिनट में नारी शोषण, आधे घण्टे के अन्तराल में हत्या और प्रतिदिन कहीं न कहीं बलात्कार की घटना उपस्थित हो जाती है। नारी शिक्षित होकर भी पीड़ित और दुःखी है। बेशक नारी ने हर क्षेत्र में पुरुषों को पछाड़ दिया है, परन्तु उसका जीवन अभी भी कांटों की सेज जैसा है। वह तड़प रही है, बिलख रही है, रुदन कर रही है परन्तु कोई उसकी पुकार सुनने वाला नहीं है। प्रशासन क्यूं बेबस हो जाता है, कानून क्यूं घुटने टेक देता है, पुलिस क्यूं ख़ामोश रहती है पता नहीं। देश के प्रधान मंत्री के पद पर नारी रही है, डिफेंस मिनिस्टर नारी रही है, विदेश मंत्री नारी रही है परन्तु नारी समय समय पर दहेज उत्पीड़न, अनमेल विवाह और तलाक और तीन तलाक से पीड़ित रही है। यही नहीं उसके परिधान और घूमने फिरने पर भी अंकुश लगा रहा है। केवल नारी सशक्तिकरण के खोखले नारों से उसका कल्याण नहीं होगा। पार्लियामेंट या विधान सभायों में उसको जगह देने से काम नहीं बनेगा। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। जब तक भ्रूण हत्या बन्द नहीं होगी, वेश्यावृत्ति समाप्त नहीं होगी, उसको मनमर्ज़ी से शादी करने की स्वतंत्रता नहीं मिलेगी। पुरुषों की मनमानी, हवस की ज़ंजीरें जब तक नहीं टूट पाएंगी, नारी पिसती रहेगी।

चिरकाल से भारत में पुरुष प्रधान समाज का बोलबाला रहा है। नारी पर कभी पर्दा, कभी सती प्रथा और कभी राजाओं और अहलकारों द्वारा बहु विवाह पद्धति मुखर रही है।

अब जब कि भारत स्वतंत्र है। संविधान के अनुसार हर नर-नारी को मौलिक अधिकार समान रूप से मिल चुके हैं, तब भी वह खुलकर जी नहीं सकती, पर्यटन नहीं कर सकती धर्म के आडम्बरों से बच नहीं सकती। घर, बाज़ार और दफ़्तर में लुट जाती है तो किसे दुहाई दे, कौन है उस की दाद फ़रियाद सुनने वाला। उल्टे उसे ही दोष दिया जाता है कि अकेले मन्दिर क्यूं गई थी, खेतों में क्यूं गई थी, अंधेरे में बाहर क्यूं निकली थी। उसका साथ देने की बजाए उस पर फब्तियां कसी जाती हैं।

कोई दुर्घटना घटने पर, कोई रेप हो जाने पर उसके साथ न्याय नहीं होता। बाहुबली लोग पैसे के बल पर बड़े से बड़ा वकील करके पहले निचली अदालत फिर ऊपरी अदालत तदोपरान्त सुप्रीम कोर्ट तक केस को ले जाते हैं। बेचारी निर्धन नारी कैसे मुक़दमा लड़े। संविधान बड़ा लचीला है। कोर्ट गवाही मांगता है। भला बाहुबलियों के आगे कौन मुंह खोले। इतना लम्बा मुक़द्दमा लड़ते-लड़ते नारी अधमरी हो जाती है। पुलिस भ्रष्टाचारी है, कानून अंधा है तो नारी किस की शरण में जाए।

इसका उत्तर यही है कि नारी को आत्मबल जगाना होगा। शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या में प्रवीण होना होगा। आत्म रक्षा के लिए तीर, तलवार और गोली चलानी सीखनी होगी। क्योंकि गोली का हल गोली ही है। बुरी नज़र रखने वाले की आंखें फोड़नी होंगी।

परमात्मा भी उनकी मदद करता है जो अपनी मदद आप करते हैं। एक क्रान्ति की जोत जगानी होगी, आन्दोलन के लिए नारियों को एक जुट होना होगा। दुर्गा, वैष्णवी बनकर महिषासुर जैसे राक्षसों का अन्त करना होगा, पद्मनी और झांसी बनना होगा। नारी जन आन्दोलन के लिये नारियों को अपनी सुरक्षा के लिये तैयार करना होगा। तभी आपको धर्मस्थलों और तलाक, तीन तलाक और यौन शोषण से मुक्ति मिल सकती है। नारी एक ज्वाला है, आग का गोला है, अपनी ज़िद्द पे आ जाए तो पहाड़ से टकरा सकती है। इस लिये यदि एक नारी के साथ दुष्कर्म होता है तो समाज की सभी नारियां उसके समथर्न में जुट जाएं। यह बड़ा ही संवेदन शील मुद्दा है, इस के लिये नारियों को सांझा बलिदान सांझा आन्दोलन चलाना चाहिये। क्योंकि जब घी सीधी उंगली से न निकले तो उंगली को टेढ़ी करना ही पड़ता है।

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