-डॉ. पूरन सिंह

विशाल और सुहासिनी दोनों ही कम्प्यूटर इंजीनियर थे। उनके साथी तो उन्हें कम्प्यूटर आइकॉन कहते। वे दोनों जब भी साथ होते उनमें प्रायः तर्क-विर्तक होता और कभी-कभी तो स्त्री-पुरुष सम्बन्धों और सामाजिक परिदृश्य पर भी चर्चा करते थे वे दोनों। विशाल सुहासिनी से कहता ‘सुहा मुझे ऐसी लड़की चाहिए जो खुले विचारों वाली हो, बोलने में, खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने में भी। स्पष्ट बोले चाहे किसी की कोई भी बात हो। पहनने में एकदम मॉडर्न यू नो, मिनी, मिडि, स्लीवलैस् एण्ड बैक्लेस।’ ‘यू अन्डॅरस्टैण्ड् मी, आई अन्डॅरस्टैण्ड् यू विशाल।’ सिर्फ़ इतना ही बोलती थी सुहासिनी और अंदर ही अंदर कहती- मैं तुम्हें समझती ही नहीं विशाल, मैं तुम्हें प्यार भी करती हूं। संभवतः चाहत विशाल में भी थी। धीरे-धीरे चाहत ने प्यार का जामा पहन लिया और सही समय और मुहूर्त देखकर उन दोनों ने शादी कर ली थी। हर तरह से सक्षम थे दोनों, इसलिए मां-बाप ने कोई आपत्ति नहीं की थी।

सुहासिनी दुलहन बनकर विशाल के घर आ गई थी। विशाल खुश था। समय उड़ने लगा था। तभी एक दिन विशाल बोला था- ‘सुहा एक बात कहूं।’

‘एक नहीं एक हज़ार कहो।’

‘तुम अब नौकरी छोड़ दो। मैं काम करता हूं इतना काफ़ी है हमारे लिए।’ बिल्कुल आदेशात्मक भाषा में बोला था विशाल।

‘छोड़ दी’, समर्पिता सुहासिनी ने विशाल के गले में दोनों बांहें डाल दी थी। अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि विशाल ने सुहासिनी से पूछा था- ‘सुहासिनी एक बात पूछनी थी।’

‘एक नहीं एक हज़ार पूछो।’

‘तुम ये जो इतना तेज़-तेज़ बोलती हो। यू नो मम्मी-डैडी को अच्छा नहीं लगता और हां मम्मा कह रही थी कि बहू ये जो मिनी पहनकर घूमती है उन्हें पसंद नहीं और प्लीज़ तुम बैकलेस् तो बिल्कुल नहीं पहना करो। मम्मी चाहती हैं … यू नो…।’ विशाल एक सांस में बोलता चला गया था।

‘मम्मी क्या चाहती यह बात मम्मी जाने। मैं सिर्फ़ आपसे पूछती हूं आप क्या चाहते हैं। मम्मी का सहारा मत लो विशाल। जिस दिन तुमने मेरी नौकरी छुड़वाई थी उसी दिन मैं जान गई थी कि तुम में पुरुष जाग गया है। मैं चुप रही थी और अब, अब तो तुमने…। सुनो विशाल तुम्हें प्रेमिका तो इक्कसवीं सदी की चाहिए लेकिन पत्नी … पत्नी आज की अठाहरवीं सदी की। मैं जानती हूं तुम्हारा यथार्थ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ छोड़ दूंगी लेकिन तुमसे एक बात पूछती हूं।’ सुहासिनी विशाल की आंखों में आंखें डालकर पूछने लगी थी।

… विशाल मौन था।

‘तुम मेरी खुशी के लिए क्या छोड़ सकते हो?’ इतना कहने के बाद सुहासिनी फिर विशाल की आंखों में अपने प्रश्नों के उत्तर तलाशने लगी थी और विशाल वह तो अब भी मौन था।

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