-डॉ. जी. एम.ममतानी

महिलाओं में कमरदर्द आम समस्या हो गई है, क़रीबन 90 प्रतिशत महिलाएं इससे ग्रस्त हैं। इसका प्रमुख कारण हमारी ग़लत ढंग की दिनचर्या है। महिलाओं में कमरदर्द में मोटापा, मासिक की अनियमितता, मासिक प्रवृत्ति वेदना युक्त, मासिक के पूर्व गर्भाशय में सूजन, गर्भाशय बाहर आना, गर्भावस्था, प्रसूतावस्था, सिज़ेरियन प्रसव के पश्चात् अतिश्रम, अतिआराम, व्यायाम का अभाव, ऊँची हील की सैंडल पहनना इत्यादि कारणीभूत घटक हैं।

इसके अलावा कमर झुकाकर बैठना, लगातार खड़े रहना, स्कूटर आदि वाहन अधिक चलाना, बैठने व सोने का ग़लत ढंग, नर्म बिछावन पर सोना, रीढ़ पर आघात, सिर पर या पीठ पर बोझ ढोना, वृद्धावस्था, रीढ़ की हड्डी में टी. वी. का संक्रमण, रीढ़ की हड्डी का क्षरण, क़ब्ज़ इत्यादि कारण भी पीड़ा के लिए ज़िम्मेदार हैं।

आयुर्वेद में कमर को कटिप्रदेश कहते हैं व कमरदर्द को कटिशूल कहा जाता है। आयुर्वेदानुसार दोषों के स्थान के आधार पर वात दोष का प्रमुख स्थान कटिप्रदेश है। उसमें भी अपान वायु का स्थान कटिप्रदेश है, अतः अपान वायु की विकृति का लक्षण है- कमरदर्द।

क़ुदरती तौर पर मानव शरीर की रचना इस तरह हुई है कि उसमें रीढ़ की हड्डी का महत्वपूर्ण स्थान है। इस रीढ़ की हड्डी के कारण ही मनुष्य अपने शरीर को इधर-उधर घुमा सकता है, सीधा खड़ा हो सकता है, चल सकता है और अन्य गतिविधियां इसकी वजह से ही संभव हैं। इस रीढ़ की हड्डी में कोई ख़राबी या व्याधि होने से मुख्यतः कमरदर्द, चलने-फिरने में तकलीफ़ या असमर्थता आदि लक्षण दिखते हैं। रीढ़ की हड्डी की प्रमुख व्याधियां स्पाइनल स्टेनोसिस, आस्टियो आर्थराइटिस, स्लिप डिस्क, स्पॉण्डिलाइटिस, ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी का बढ़ जाना) टी. वी. सायटिका के कारण कमरदर्द मुख्य लक्षण मिलता है। उपरोक्‍त बीमारियों का प्रमुख कारण आजकल की तनावयुक्‍त ज़िंदगी, ग़लत तरीक़े से उठना बैठना व बढ़ती उम्र में डिजेनेरेटिव परिवर्तन है।

स्पाइनल स्टेनोसिस मुख्यतः वृद्धावस्था में होता है, इसमें मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) की मोटाई सिकुड़ने लगती है जिससे उसमें से निकलने वाली नाड़ियों का दबाव बढ़कर कमरदर्द होता है। स्लिप डिस्क में मेरुदण्ड की दो हड्डियों को एक दूसरे से अलग रखने वाली स्पंज जैसी मुलायम डिस्क खिसक जाने से (किसी कारणवश) दोनों के बीच की हड्डियां आपस में मिल जाती हैं जिससे वहां से निकलने वाली नाड़ियों पर दबाव पड़ता है। परिणामतः असहनीय कमरदर्द इत्यादि लक्षण मिलते हैं।

स्पॉण्डिलाइटिस में मेरुदण्ड की हड्डियों में सूजन आने से कमरदर्द लक्षण मिलता है।

सायटिका में सायटिक नाड़ी में शोथ व क्षोभ होने से कमर से लेकर पैर तक तीव्र असहनीय वेदना होती है। मूत्रवह संस्थान में पथरी या अन्य विकृति होने के कारण कमरदर्द मुख्य लक्षण मिलता है। इसके अलावा पेट में कोई विकार होने पर भी कमरदर्द लक्षण पाया जाता है। अनेक मानसिक कारणों में भी कमरदर्द लक्षण मिलता है। डिप्रेशन के रुग्णों में अकसर कमरदर्द का इतिहास मिलता है।

चिकित्सा- कमरदर्द की चिकित्सा करते समय मूल कारण को निदान करने के पश्चात् ही तदनुसार चिकित्सा करें।

घरेलू औषधि में- 1. सामान्यतः सभी कमरदर्द में विषतिंदुक वटी 1-1 सुबह-शाम महारास्नादि व दशमुलारिष्ट 2-2 चम्मच के साथ भोजनोत्तर सुबह-शाम 2-3 माह तक लीजिये।

2. मोटापे की वजह से कमरदर्द होने पर मोटापा कम करने का उपाय करना चाहिये।

3. स्पॉण्डिलाइटिस या अन्य रीढ़ की हड्डियों से दर्द होने पर त्रयोदेशांग गुग्गुल 10 ग्राम व लाक्षादिगुग्गुल 120 ग्राम को सुबह-शाम पुनर्नवासव व महारास्नादि 2-2 चम्मच सुबह-शाम अन्य औषधियों के साथ लें।

4. क़ब्ज़ होने पर त्रिफला चूर्ण 2 चम्मच रात को सोते समय लीजिए।

5. दर्द के स्थान पर महानारायण तेल की नित्य मालिश व सिंकाई करें।

कमरदर्द के निवारणार्थ ‘कटिबस्ति’ के परिणाम आशाजनक पाए गए हैं। इस कटिबस्ति से ही अनेक कमरदर्द से पीड़ित रुग्णों को आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। कटिबस्ति व अन्य पंचकर्म की जानकारी लेखक द्वारा लिखित “पंचकर्म-स्वास्थ्य की कुंजी” पुस्तक से प्राप्त करें। योगासन में पद्मासन, योगमुद्रा, उत्तान हस्तपादासन, धनुरासन, नौकासन, शलभासन, भुजंगासन, सुप्त वज्रासन, मत्स्यासन, तोलांगुलासन, कोणासन, चक्रासन, पादहस्तासन इत्यादि आसन योग तज्ञ के मार्गदर्शन में करें। पदमासन

 

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