-सुप्रिया

सौंदर्य अपने आप में एक कला है, जिसको आजतक कवियों, लेखकों, बुद्धि-जीवियों, प्रेमियों इत्यादि ने अपने-अपने तरीक़े से देखा और परखा है। कहते हैं सौंदर्य, देखने वाले की आंखों में होता है।

एक पादरी की निगाह में गिरजाघर अथवा एक पुजारी की निगाह में मंदिर से सुंदर वस्तु शायद ही कोई हो। बच्चों के लिए ‘अप्पूघर’ किसी स्वर्गधाम से कम नहीं होगा, तो कोई प्रकृति प्रेमी फूलों, झरनों और बर्फ़ से ढके पहाड़ों में सुंदरता की तलाश करेगा। इसी तरह एक प्रेमी की निगाह में संसार में अपनी प्रेमिका से बढ़कर शायद ही कोई हो।

किन्तु इस सबसे अलग हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हमारे बीच कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो सबको प्रभावित करते हैं और सभी उन्हें प्यार करते हैं। यहां पर केवल शारीरिक सौंदर्य की बात ही नहीं होती बल्कि उनके व्यक्तित्व की संपूर्णता ही उन्हें सर्वमान्य बनाती है। महात्मा गांधी, अब्राहम लिंकन या मदर टेरेसा को इसी श्रेणी में रखेंगे।

पिछले दिनों एक विवाह समारोह में गयी थी। वहां मैंने सारिका को एक भोले-भाले पर बेहद खूबसूरत, देहाती युवक से बहुत घुल-मिलकर बात करते देखा। वह एक जिज्ञासु की भांति बहुत ध्यान से उसे सुन रही थी। आलू और मक्के की खेती कैसे की जाती है। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि सारिका पक्की शहरी लड़की है, गांव उसने देखा नहीं बल्कि वह घृणा की हद तक ग्रामीणों को नापसंद करती है।

जब मैंने सारिका को उसके इस विपरीत आचरण पर टोका, तो वह चंचलता से मुसकुराकर कहने लगी, “यार, देख तो वह कितना सुंदर है। बिलकुल देवदूत जैसा लगता है।”

दूसरी ओर नीना को लें। शारीरिक सुंदरता की दृष्टि से वह संभवतः एक आदर्श युवती कही जायेगी। किंतु अपनी जान-पहचान के सर्किल में यह बेहद अप्रिय है, कोई उसे अपने घर बुलाना या सामाजिक स्तर पर मिलना पसंद नहीं करता है। उसमें कुछ ऐसा है जिसे अन्य महिला मित्र सख़्त नापसंद करती है।

अगर हम ऊपर के दोनों उदाहरण लें तो उनसे स्पष्ट है कि सौंदर्य का मानदण्ड अलग-अलग है। विपरीतलिंगी व्यक्तियों में संभवतः शारीरिक सुंदरता ही सबसे पहले आकर्षित करती है जबकि एक ही लिंग के व्यक्तियों में केवल सौंदर्य ही प्रभावित नहीं करता। संभवतः इस परिस्थिति में मन की सुंदरता या अच्छा आचरण और सद्भावना ही सुंदरता की मानदण्ड होगी और किसी को सर्वमान्य बनाने के लिए शारीरिक गठन काफ़ी नहीं, बल्कि मन की सुंदरता ही अधिक बहुमूल्य होगी।

आवश्यकता है कि हम सौंदर्य के सत्य को जांचें, परखें और पहचानें। इसमें शंका नहीं कि हम सभी अपने को अच्छे-से-अच्छा बनाना चाहते हैं, शारीरिक दृष्टि से चाहे सुंदर हों अथवा न हों। कुछ लोग शारीरिक सुंदरता के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। कहते हैं, ‘चार्ल्स’ प्रथम मरते समय अपने नक़ली बालों को लेकर बहुत विचलित था। वह नहीं चाहता था कि मरने के बाद कोई भी बिना ‘विग’ के उसका चेहरा देखे। यह एक अनोखा केस हो सकता है, पर सामान्य रूप में भी लोग अपनी शारीरिक न्यूनताओं को लेकर परेशान रहते हैं। किसी को लगता है कि सफ़ेद होते बालों से वह शीघ्र बूढ़ी लगने लगेगी तो कोई अपनी छोटी आंखों, चपटी नाक या मोटी उंगलियों को लेकर परेशान रहती है।

रूप का अपना महत्त्व है और सौंदर्य में अपार शक्ति है। कोई विरला ही इस तथ्य को नकार सकता है। किंतु एक समाज सेविका होने के नाते मैंने इस सौंदर्य का नकारात्मक पहलू बहुत नज़दीक से देखा है, कि यह किस तरह दूसरों को मोहता है, वशीभूत करता है बल्कि कई बार धोखा तक देता है। स्वयं जार्ज बर्नाड शॉ ने एक बार कहा था, ‘ईश्वर की मुझ पर कृपा है कि मैं सुंदर नहीं हुआ। सुंदर होना अनगिनत समस्याओं की जड़ है और तमाम छल प्रपंचों का जनक भी…।’

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसमें एक राजा को सोने से इतना लगाव था कि देवदूत के पूछने पर उसने यही वरदान मांगा कि ‘वह जिस भी चीज़ को छुए वह सोने की बन जाए,’ बाद में यही वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया क्योंकि खाने-पीने की चीज़ें भी उसका स्पर्श पाते ही सोना बनने लगीं। यहां तक कि उसका इकलौता पुत्र भी उसका स्पर्श पाकर निर्जीव सोने की मूर्ति बन गया था।

कुछ इसी तरह सौंदर्य भी आपको एक अलग श्रेणी प्रदान करता है। यदि आप लड़की हैं तो अत्यधिक रूप राशि अपने सामाजिक दायरे में एक विशेष दर्जा प्रदान करेगी। ऐसे में शायद ही कोई आपसे यह कहने की हिम्मत जुटा सके कि आप बहुत खूबसूरत हैं अथवा यह कि अगले शनिवार को आप क्या कर रही हैं? क्या वह शाम आप मेरे साथ गुज़ारना पसंद करेंगी? कई बार यह अकेलापन, अलगाव भी ला सकता है। जहां सामान्य लोग अपनी अच्छाइयों के लिए आसानी से दूसरों की प्रशंसा पा सकते हैं आपसी हंसी-मज़ाक में शरीक हो सकते हैं, वहीं रूपसी नारी क्या रूपवान पुरुष भी ज़्यादातर इन छोटी-छोटी खुशियों से वंचित ही देखे जाते हैं।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों ने इस विषय पर शोध करके बड़े हैरतअंगेज़ तथ्य सामने रखे हैं। पिछले दिनों मैं किसी प्रख्यात अमेरिकी लेखक की पुस्तक ‘द पॉलिटिक्स ऑफ़ ब्यूटी’ पढ़कर दंग रह गयी जिसमें आंकड़ों पर ज़ोर देकर यह बात कही गयी थी कि अधिक सुंदर लोगों में आत्मविश्वास की बड़ी कमी होती है।

मैंने खुद भी कई सुंदर महिलाओं को नज़दीक से देखा है, उनमें कई तो मेरी सहेलियां रही हैं। इनमें से ज़्यादातर अपनी शारीरिक संरचना और रख-रखाव को लेकर चिंतित रहती हैं। कइयों को मैंने उनके अपने कम्पलेक्शन को लेकर परेशान देखा है। कोई अपने बाल काले और अधिक लंबे चाहती है तो कोई अपने बढ़ते वज़न को लेकर परेशान है, कई इसके विपरीत अपना वज़न बढ़ाने के लिए आतुर हैं।

मेरे विचार से शारीरिक सौंदर्य किसी अंग में न होकर पूरे व्यक्तित्व की संपूर्णता में है। हम अपनी शारीरिक संरचना के किसी दोष विशेष को लेकर इतना परेशान क्यों हों? क्यों न हम अपने संपूर्ण व्यक्तित्व की अच्छाइयों और सकारात्मक पहलुओं पर ज़ोर दें तथा उसे समस्त गुणों एवं दोषों के साथ स्वीकार करना सीखें।

मुश्किल तब होती है जब हम वास्तविकताओं को अनदेखा करके अंधानुकरण करते हैं। यदि आप दो बच्चों की मां हैं और प्रौढ़ यौवन की दहलीज़ पर हैं, तो क्या आवश्यकता है कि आप षोडशी युवती का स्वांग करें। क्यों न अपनी अवस्था के अनुरूप ही रख-रखाव कर अपने व्यक्तित्व को गरिमा प्रदान करें। यदि आपका आचरण इसके विपरीत है, तो मैं कहूंगी कि आप स्वयं अपने पति को प्रेरित करती हैं कि वह आपसे कम उम्र की सुंदरियों के पीछे भागे।

हर हालत में जवान और सुंदर दिखने की यह प्रतिस्पर्धा अधिकांशतः उच्चवर्गीय और कुछ मध्यवर्गीय महिलाओं में देखी जाती है। मैं तो कहूंगी यह स्थिति किसी के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है। अपनी उम्र और अवस्था के अनुरूप ही सुंदरता फबती है। सुंदरता को युवावस्था के समकक्ष रखने या मिलाने का प्रयास करना मूर्खता होगी। मेरी समझ में तो सौंदर्य का रहस्य है अपनी उम्र और अवस्था के अनुरूप अच्छा दिखना और सर्वप्रिय होना। आपने देखा होगा कि अधिकांश दूरदर्शन उद्घोषिकाएं और वायुयान परिचारिकाएं युवा और सुंदर दिखती हैं, पर यह भी सच है कि इन्हीं में कई महिलाएं सुंदर दिखती हैं किन्तु युवा नहीं हैं।

ज़रा सोचें तो वास्तव में सौंदर्य है क्या? शारीरिक नश्वरता से परे देखें तो एक बच्चे की सुंदरता शिक्षक उसकी बुद्धि और ज्ञान में देखेगा। एक वयस्क पुरुष या नारी की सुंदरता के लिए लोग उसकी उपलब्धियों को देखेंगे। ऐसे में प्रौढ़ या बूढ़े होकर अपना रूप खोने के डर से आप नाहक परेशान होती हैं। यह सुंदरता आपकी उपलब्धि नहीं है। यह तो ईश्वर प्रदत्त है। ऐसे में अपने को सहज और स्वभाविक ढंग से पेश करें। अच्छे रूप के लिए सामान्य चिंतन ठीक है, पर उसके लिए जीवन तबाह करना मूर्खतापूर्ण है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा पर सुंदर पुरुष या नारी भी अपने को कहीं-न-कहीं अपूर्ण पाते हैं और उसके लिए दुखी रहते हैं।

यह सच है कि एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो बाह्य सौंदर्य से बहुत प्रभावित होते हैं, किन्तु याद रखें खूबसूरती अच्छे चरित्र का मानदण्ड कभी नहीं हो सकती। ऐसा बहुत बार देखने को मिलता है कि स्कूल के सबसे सुंदर बच्चे सबसे अधिक उपद्रवी हैं। इसी तरह कई लोग अत्यंत रूपवान होते हुए भी अविश्वसनीय रूप से नकारे और अल्पबुद्धि साबित होते हैं।

एक समय था जब महिलाएं केवल घर की चारदीवारी में रहती थीं और पूरी तरह से पुरुष के साये में काम करती हुई प्यार करने की चीज़ मानी जाती थीं। घर के बाहर केवल पुरुष काम करते थे। पर आज स्थितियां सर्वथा भिन्न हैं क़रीब-क़रीब हर क्षेत्र में अब वे पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहीं हैं। वे केवल भोग-विलास की चीज़ न रहकर अपना रास्ता खुद बना रहीं हैं। ऐसी दशा में नारी के सौंदर्य का मानदण्ड भी बदले परिप्रेक्ष्य में देखना न्यायसंगत होगा।

यह भी सच है कि हम में से अधिकांश महिलाएं सौंदर्य के सिंड्रोम से पीड़ित हैं। उदाहरण के लिए यदि कथित पीड़ित सुंदर और बलात्कारी असुंदर हो तो लोग पीड़ित का बिना अधिक छान-बीन के विश्वास कर लेते हैं और अगर ठीक इससे उलटा हो अर्थात पीड़ित असुंदर और बलात्कारी सुंदर हो तो लोगों का झुकाव बलात्कारी को निर्दोष मानने की तरफ़ होता है। मेरी निगाह में यह एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जिसमें केवल शारीरिक सुंदरता के आधार पर नैतिकता का मूल्यांकन करने का प्रयास किया जाता है।

अतः मेरे विचार में सौंदर्य का मानदण्ड यह नहीं है कि शरीर मोटा है, मांसल है, या दुबला है, बाल छोटे हैं या नाक चपटी है बल्कि शारीरिक संरचना से बाहर उसकी सुंदरता आत्मा की निश्छलता और व्यक्तित्व सद्गुणों में है। अपने कुशल आचरण, सद्व्यवहार और सद्गुणों से अपने आंतरिक व्यक्तित्व को निखारने का प्रयत्न करें। यक़ीन मानिये, आपके अंदर के प्रकाश से आपके बाहरी व्यक्तित्व में स्वयं ही चार चांद लग जायेंगे।

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