editorial design jpg 20हर व्यक्‍ति कामना करता है कि आने वाला समय खूबसूरत हो। समय तो सदा एक जैसा ही रहता है उसे खूबसूरत बनाना पड़ता है। यदि हम आने वाले समय को अपनी कल्पनाओं के अनुरूप बनाना चाहते हैं, यदि हम अपनी अभिलाषाओं की पूर्ति करना चाहते हैं तो हमें खुद प्रयत्न करने होंगे। समय को अपनी कल्पनाओं, अपनी अभिलाषाओं के अनुरूप बनाना होगा।

समय अनवरत गति से चलता रहता है और समय के चक्र से आए नए विचारों को अपना कर नए उद्देश्य बनाए जा सकते हैं।

बहुत से लोग आज के दौर में इस बात से इन्कार करने लगे हैं कि सच्चे व्यक्ति की कोई प्रासंगिकता रह गई है। लेकिन हमें इस सत्य से बावस्ता होना चाहिए कि बुराई का अंत सदा बुरा होता है। बुराई से मिली क्षणिक सफलता का अंत बहुत भयावह होता है।

पहले और आज के समय में बहुत परिवर्तन आया है। आज विज्ञान की प्रगति ने इन्सान को सोचने के नए आयाम दिए हैं। वो हर बात को नए सिरे से सोचने लगा है। इन्सान के जन्म से पूर्व की स्थिति और मौत के बाद की स्थि‍ति के बारे में सोचने लगा है। स्वर्ग और नर्क की बातें तो अविश्‍वसनीय हो गई हैं जो अधिक चिंतन का विषय है वो यह है कि आध्यात्मिकता पर प्रश्‍न चिन्ह लग गया है। एक लेखक ने कहा है, ‘आज के व्यक्ति से उसका भगवान् खो गया है।’’ आज इन्सान जानना चाहता है भगवान् की वास्तविकता और इस सब का श्रेय जाता है वैज्ञानिक प्रगति को।

इसी वैज्ञानिक वर्चस्व के कारण प्रेम और शान्ति का स्थान लिया है हिंसा, घृणा और स्वार्थ ने। इससे उपजते हैं दंगे-फ़साद, उग्रवाद, सांप्रदायिक क्रांतियां और अंतत: युद्ध और इससे उपजते हैं भयानक दृश्य:-

घरों पर गिरते हुए बम,
सरहदों पर मरते सिपाही,
सुलगते हुए खेत के मैदान,
रोती-चीखती माएं, बिलखते बच्चे,
धरती को रौंदते टैंक,
मय्यतों पर रोती इन्सानियत।

इस त्रास का ज़िम्मेवार किसे माना जाए। निर्दोषों के खून का ज़िम्मेवार किसे माना जाए। इन्सानियत का खून क्यूं बहे। आप विचार करेंगे तो मर्माहत हो जाएंगे।

आज हमें दो प्रकार के लोग मिलते हैं एक जो भगवान् के नाम पर प्रश्‍न चिन्ह लगाते हैं, दूसरे जो भगवान् के नाम का फ़ायदा उठाते हैं। हमें ख़तरा किसी धर्म से नहीं अलबत्ता धर्म का सहारा लेकर लोगों को गुमराह करने वाले धर्म के ख़िलाफ़ चल रहे धार्मिक दिखने वालों से है। धर्म के मुखौटे पहने हुए यह भेड़िये किसी के सगे नहीं। यह हमारे अपने बन कर हमें आग में झोंकते हैं। इनसे बचने की आवश्यकता है। यह लोग रुग्ण हैं और इनकी यह अवस्था पूरे माहौल को पीड़ित कर देती है।

ऐसी परिस्थितियों को जन्म देने वालों को अंजाम भी भुगतना पड़ता है। पाप एक दिन सिर चढ़ कर बोलता है। क़सूरवारों को तो सज़ा मिल ही जाती है पर इस सब के दौरान जो बेक़सूर मारे गए उनका ज़िम्मेवार कौन होगा ?

क्या इन सबके ख़िलाफ़ कोई आवाज़ बुलंद करेगा? इस सबसे बचने के लिए किसी न किसी को आगे आना होगा। वरना हम सब भी एक दिन विध्वंसकारियों के हा‍थ का निशाना बन जाएंगे। दहशतगर्दी के आलम को ख़त्म करना होगा। हमें अपना कर्त्तव्य निभाना ही होगा। धर्म के नाम पर गर्मागर्म तक़रीरें, उत्तेजक वातावरण फैलाने की कोशिशें बंद करनी होंगी। इस उन्माद के ख़िलाफ़ हमें एक जुट होना होगा।

आज आवश्यकता है समय की इस कुरूपता को दूर करने की। आवश्यकता है त्रुटियों को दूर करने का दृढ़ संकल्प किया जाए। करुणा और दया के सा‍थ समझबोध को मिला कर कल्पकनाओं की पूर्ति के प्रयत्न होने चाहिए। किसी भी प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प और निंरतर प्रयत्न की आवश्यकता होती है। आने वाले समय को हमने तराश कर खूबसूरत बनाना है। इसके लिए आवश्यकता है जागरूकता की। अपनी त्वरता, दक्षता और कर्त्तव्यशीलता से ही हम सर्वश्रेष्ठ सृजन कर सकते हैं।

आने वाले समय में मज़हब, जाति आदि के नाम पर बटी मानवता की आधारशिला को प्रेमिल और विवेकपूर्ण क्रांति से तराश कर ऐसा खूबसूरत आकार दिया जाए कि आने वाला समय विश्व-बंधुत्व की भावनाओं से ओतप्रोत हो। संपूर्ण मानवता को नवीन चेतना, नवीन ऊर्जा और नई दिशा मिले।

-सिमरन

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