बुढ़िया की खांसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी निगाहें दरवाज़े की दहलीज़ पर टिकी हुईं थी। परन्तु उसके घरवाले की वापसी का कहीं नामोनिशान तक नहीं था। उसका घरवाला काफ़ी बूढ़ा हो चुका था मगर उसके चेहरे पर झुर्रियों का निशान तक नहीं था। हाथ में लम्बा बांस का डण्डा, फटा हुआ कुर्ता, सटिट्यों वाला गर्म पट्टू का पजामा, पांव में पुराने चमड़े के जूते जिसमें सिर्फ़ सटिट्यां ही दिखाई दे रही थी तथा सिर पर पीला मैला-सा तौलिया पहने उसका घरवाला जंगल से बकरियां चराकर घर वापिस आ रहा था। समय के मुताबिक़ शाम के साढ़े छः बजे थे। अजीब ढंग की आदतों के कारण उसे गांव वाले राजा साहिब कह कर पुकारते थे। राजा साहिब को किसी की परवाह तक नहीं थी। अचानक बुढ़िया को राजा साहिब के पदचाप की आवाज़ सुनाई दी। उसे कुछ आसरा हो गया कि वह कुछ जड़ी-बूटियां खिलाकर इलाज कर देगा। राजा साहिब ने घर की दहलीज़ के अन्दर पांव रखा। एक नज़र बुढ़िया की तरफ़ डाली तथा बिना किसी ध्यान के मिट्टी के घड़े को उठाया और नाले की तरफ़ चल दिया। बुढ़िया की तबीयत इतनी ख़राब हो चुकी थी कि उससे आवाज़ तक नहीं निकल पाई कि उसे रोक सके। क़रीब साढ़े आठ बजे का समय था जब राजा साहिब वापिस लौटे। राजा साहिब ने मिट्टी का बर्तन नीचे रखा और ‘सतदेव-सतदेव’ करता हुआ बुढ़िया के पास आ बैठा। घर में पूरा सन्नाटा था सिवाय बुढ़िया की कराहट के। राजा साहिब ने बुढ़िया से पूछा “कुछ आराम नी बजिन्दा तुक्की?” बुढ़िया ने गर्दन हिलाकर ना का जवाब दिया। राजा साहिब ‘सतदेव-सतदेव’ पुकारते हुए उठे और अपना पुराना-सा संदूक खोला जिसमें से कई गांठों वाला रूमाल निकाला। कई गांठें खोलने के बाद कुछ जड़ी-बूटियां निकाली। उन्हें पीस कर काढ़ा बनाया। बुढ़िया को पिला दिया। कुछ देर बाद बुढ़िया को आराम मिला लेकिन उसके बाद उसकी तबीयत काफ़ी ख़राब हो गई। तबीयत ख़राब होती देख राजा साहिब काफ़ी डर गए। वो अनेक प्रकार के मंत्रों का जाप करने लगा। बुढ़िया अपने होश तक नहीं संभाल रही थी। राजा साहिब को एक तरक़ीब सूझी और बुढ़िया को अकेला छोड़ अस्पताल की ओर चल पड़ा। अस्पताल के बारे में उसने काफ़ी कुछ सुना था। काफ़ी भय था उसके दिल में। वह कभी भी अस्पताल गया नहीं था। आज कारणवश उसे जाना पड़ा। वह काफ़ी घबराया हुआ रात के ग्यारह बजे के क़रीब अस्पताल पहुंचा। उसने वहां का दरवाज़ा खटखटाया। सौभाग्यवश वहां पर डॉक्टर उपस्थित था। उसने वहां का दरवाज़ा खोला। पहले तो वो राजा साहिब के लिबास को देख कर डर गया लेकिन फिर संभल कर बोला कहिए क्या बात है? राजा साहिब अपनी भाषा में बोला, “सिरे विच्च पीड़, खांसी, बुख़ार, कनें जोड़ां-जोड़ां विच्च पीड़ बड़ी भारी है।” डॉक्टर उसकी भाषा समझ गया और काफ़ी देर सोचने के बाद बोला कि इन्जेक्शन लगेगा। राजा साहिब के सिर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। उसने अपनी ज़िंदगी में एक गोली तक नहीं खाई थी। वो सोचने लगा चाहे कुछ भी हो जाए इन्जेक्शन लगवा लूंगा। डॉक्टर ने एकाएक सिरिंज गर्म की और राजा साहिब को लगा दी। राजा साहिब के पसीने छूट गए। और अपने मुंह से कहने लगा ‘सतदेव-सतदेव।’
रात के लगभग सवा बारह बजे वह घर पहुंचा। काफ़ी लंगड़ा कर चल रहा था। घर पहुंचा तो आते ही बुढ़िया से पूछा, “कुछ आराम होया कि नहीं?” मैं तां बड़ी कोशिश कित्ती। इक इन्जेक्शन भी करवाई लिया। हुण अग्गे तेरी क़िस्मत।
‘सतदेव-सतदेव’ कहता हुआ वो अपने बिस्तर की तरफ़ चल दिया। बेचारी बुढ़िया अपने दर्द से कराह रही थी और राजा साहिब इन्जेक्शन के दर्द से बेहाल हो रहे थे।
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