ट्रिंग… ट्रिंग… ट्रिंग… ट्रिंग…….

घंटी बजते ही रौशनी डाइनिंग टेबल से उठी। रात के साढ़े आठ बज रहे थे।

‘हैलो डॉ. रौशनी हियर।’

दूसरी तरफ़ से कुछ सुनने के बाद रौशनी ने कहा, ‘ठीक है मैं अभी पहुंचती हूं। आप तब तक सारी फ़ॉर्मेलिटीज़ पूरी कर के ऑपरेशन की तैयारी कीजिए।’

रिसीवर रखने के बाद रौशनी सीधे डाइनिंग टेबल पर पहुंच गई।

‘सॉरी राहुल, आप खा लीजिएगा। हॉस्पिटल से एमरजैंसी कॉल है। बेटे कमल खाना खा कर चुपचाप सो जाना। पापा को तंग मत करना। समझे! मैं शायद अब सुबह ही आऊं। मैं हॉस्पिटल में ही खाना खा लूंगी।’ इतना कहते ही रौशनी बिजली की फुर्ती के साथ अपनी कार की तरफ़ दौड़ पड़ी। उसके हाव-भाव देखकर लगता था जैसे हॉस्पिटल में कोई ख़ास एमरजैंसी वाला केस आया हुआ है। वरना हॉस्पिटल में इतने डॉक्टरों के होते हुए रौशनी को बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

हॉस्पिटल के मुख्य द्वार पर कार की ज़ोर से ब्रेक लगी। रौशनी फटाफट भागती हुई सीधे अपने ऑफ़िस पहुंची। वहां पहले से ही डॉक्टर मौजूद थे। केस को समझकर रौशनी ने मरीज़ को जल्दी से जल्दी एमरजैंसी रूम में शिफ़्ट करने के लिए कहा।

सचमुच आकांक्षा की हालत बहुत नाज़ुक थी। आकांक्षा के माता-पिता को देखते हुए भी अनदेखा कर रौशनी जल्दी से एमरजैंसी रूम में चली गई। रौशनी को पता था फ़ालतू में एक-एक पल गंवाना आकांक्षा के लिए ख़तरे से ख़ाली न था।

एमरजैंसी रूम के बाहर बैठे आकांक्षा के माता-पिता की आंखों से लगातार टपाटप आंसू बहे जा रहे थे। धीरज बार-बार भगवान् से फ़रियाद किए जा रहा था, ‘हे भगवान्, मेरी बच्ची को बचा लो। हम कभी भी उसके साथ किसी काम के लिए ज़बरदस्ती नहीं करेंगे।’

कामिनी तो जैसे अपने होश ही खो बैठी थी। उसे तो आकांक्षा से ऐसी उम्मीद ही न थी। वह तो उसे वैसी ही छोटी-सी बच्ची समझती थी जो हर छोटी-छोटी बात के लिए उससे पूछा करती थी। लेकिन आज उसे एहसास हो चुका था कि आकांक्षा अब बड़ी हो चुकी है। उसके भी अपने कुछ अरमान, भविष्य के कुछ सपने हैं। आकांक्षा कम्प्यूटर इंजीनियर बनना चाहती है। लेकिन धीरज और कामिनी ने तो उसे डॉक्टर बनाने की ठान ली थी। वे उसे उसकी बहन रौशनी की तरह एक क़ामयाब डॉक्टर देखना चाहते थे। चाहे इसके लिए उन्हें कितने भी रुपये लगाने पड़ते। वैसे भी उनके पास रुपयों की कमी कब थी। आकांक्षा के लाख मना करने के बावजूद भी उसका डॉक्टरी कोर्स में दाख़िला करा दिया गया। लेकिन आकांक्षा वहां जाने को बिलकुल तैयार न हुई। आकांक्षा एक इन्टेलिजेन्ट और सुलझी हुई लड़की है। उसने भी कम्प्यूटर इंजीनियर बनने की ज़िद्द पकड़ी हुई थी। और इसी के चलते घर में तनाव इतना बढ़ गया कि आकांक्षा ने अपने दोनों बाजुओं की नाड़ियों को काटकर आत्महत्या का प्रयास किया।

एक घंटे के बाद रौशनी एमरजैंसी रूम से निकली तो काफ़ी राहत महसूस कर रही थी। चेहरे पर भय और चिंता की रेखाएं काफ़ी कम नज़र आ रही थीं। रौशनी ने बाहर निकलते ही धीरज और कामिनी के पैर छुए। ‘मुझे माफ़ कर देना मम्मी-डैडी, उस वक़्त मैं आपसे बात न कर सकी। उस वक़्त एक-एक पल गंवाना ख़तरे से ख़ाली नहीं था।’ रौशनी ने कहा।

‘रौशनी, तू यह बता आकांक्षा कैसी है?’ कामिनी ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा।

‘मम्मी जी, आकांक्षा अब ख़तरे से बाहर है और उसे कुछ ही घंटों के बाद होश आ जाएगा। यदि आकांक्षा को यहां लाने में आपने एक मिनट की भी देरी की होती तो उसे बचाना बहुत ही मुश्किल हो जाता। लेकिन खैर, भगवान् ने सबकुछ अच्छा कर लिया है।’

‘बेटी, आज तू न होती तो हम सारी उम्र अपने को माफ़ नहीं कर पाते। अपनी बेटी की मौत एक कलंक की तरह सारी उम्र हमारा पीछा करती।’ धीरज धन्यवाद के स्वर में कह रहा था।

रौशनी ने घटना को जानने की कोशिश करते हुए कहा, ‘पर पिता जी, यह सब कैसे…।’

ऑफ़िस में बैठकर सारी बातें हुई। सारी बात जानकर रौशनी अपने माता पिता पर टूट पड़ी। ‘पिता जी, आप इतना बदल जाएंगे। मैंने कभी सोचा भी नहीं था। क्या आप वही हैं जिन्होंने मेरी हर इच्छा को अपनी इच्छा और मेरी हर खुशी को अपनी खुशी समझा। जब आप किसी पराए के लिए इतना सब कर सकते हैं तो फिर अपने खून के प्रति यह भेदभाव क्यों?’

धीरज और कामिनी दोनों चुपचाप रौशनी की डांट सुने जा रहे थे। उन्हें अपनी ग़लती का एहसास था।

‘… और मम्मी आप तो इतनी कठोर न थी। आकांक्षा के इतने क़रीब होते हुए भी आप उसकी इच्छाओं, उसकी खुशी को न समझ पाईं। एक बात मैं आप दोनों से साफ़-साफ़ कहना चाहती हूं। आकांक्षा एक होनहार लड़की है। वह जिस भी क्षेत्र में जाएगी। आपका नाम ज़रूर रौशन करेगी। खैर, जो हुआ सो हुआ। भगवान् का शुक्र है कि आकांक्षा बच गई। जब आप उससे मिलने जाएं तो डांटियेगा नहीं। उससे प्यार से बात कीजिएगा…।’

दोनों चुपचाप रौशनी की बातें सुन रहे थे जैसे क्लास में विद्यार्थी टीचर की सुनते हैं। रौशनी धीरज और कामिनी की बड़ी लाडली बेटी है। यह बात अलग थी कि वह उसे रास्ते से उठाकर लाए थे।

‘… पर मुझे लगता है आकांक्षा को अभी कुछ घंटे बाद ही होश आएगा। मम्मी-पापा आपने अभी खाना नहीं खाया होगा। आप घर जाइए। मैं आज यहीं रुकूंगी। आप सुबह ही आना।’

‘लेकिन बेटी…।’

‘लेकिन-वेकिन कुछ नहीं पिता जी। मैं यहां पर हूं। आकांक्षा को कोई तकलीफ़ नहीं होगी।’ रौशनी ने अपने पिता की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।

‘फिर भी बेटी…।’

‘मम्मी आपको अपनी बेटी पर विश्वास नहीं है। मेरे होते हुए आपको फ़िक्र करने की कोई आवश्यकता नहीं है।’

रौशनी की ज़िद्द के आगे धीरज और कामिनी को झुकना पड़ा। दोनों घर चले गए।

रौशनी का अतीत आज बार-बार उसके ज़ेहन में दस्तक दे रहा था। उसे ऐसा लग रहा था। मानों अतीत की चादर ने उसे अपने आवरण में ले लिया हो। नींद होते हुए भी रौशनी का अतीत उसे जगाए हुए था। वह एक जानी-मानी महिला डॉक्टर थी। क़ामयाबी का यह अति कठिन सफ़र रौशनी के लिए आज भी वैसा ही ताज़ा था। जैसा यह कुछ साल पहले था।

उदास रौशनी कमरे में बैठकर टी. वी. देख रही थी। ‘मैं बड़ी होकर डॉक्टर बनती। अपने मम्मी-पापा का नाम रौशन करती। परन्तु न जाने आपको क्यों बेटा ही चाहिए था? न जाने आपने मुझे जन्म लेने से पहले ही क्यों मार दिया…।’ टी. वी. पर यह विज्ञापन देखते ही रौशनी के आंसू बह निकले।

 अपने आप से बातें करते हुए रौशनी बोली, ‘काश! मुझे भी जन्म लेते ही मार दिया होता तो यह नरक नसीब न होता।’

‘डॉक्टरनी जी, तुम्हें क्या हो गया अब? ये मोटे-मोटे आंसू किस लिए टपकाए जा रही हो और…।’ रौशनी के पिता ने एक बार फिर उस पर व्यंग्य बाण छोड़ दिया था।

अपने पिता की बात को अनसुना कर रौशनी दूसरे कमरे में चली गई। लेकिन दूसरे कमरे में पहले से ही शब्दों के बाण उसे भेदने का इंतज़ार कर रहे थे।

आ गई महारानी मुंह फुलाकर ज़्यादा आंसू बहाने की आवश्यकता नहीं है। रोटी खा और सो जा। अपने चोंचले आज ही बंद कर दे। सुबह घानी बनाने के लिए तैयार रहना। ये ऊंचे-ऊंचे ख़्वाब देखना बंद कर। तुझे यहीं इसी मिट्टी इन्हीं ईंटों में रहकर अपनी उम्र बितानी है। पढ़ लिख कर तुझे कुछ नहीं मिलने वाला। बच्चू जब पेट की आग सताती है न, तब पता चलता है कि ज़िन्दगी क्या है? सारी बड़ी-बड़ी बातें धरी की धरी रह जाती हैं। आज तो तू मां-बाप की गोद में खेलकर बड़े-बड़े ख़्वाब बुन रही है। आदमी को अपनी हैसियत देखकर ही अपने पांव पसारने चाहिए। दो दिन घर से बाहर निकलकर देख। ज़िन्दगी की ठोकरें सब कुछ बता देती हैं। तू हमसे कोई अलग नहीं है। तुझे इन्हीं झोंपड़ियों में ज़िन्दगी गुज़ारनी है। महलों के ख़्वाब देखना बंद कर दे और ख़बरदार जो आज के बाद उस राकेश के बच्चे से मिली तो। थोड़ा-सा पढ़-लिख क्या गया है वो, अपने आप को मास्टर समझने लगा है। कहता है ईंट-भट्टे वालों के बच्चों को पढ़ाकर उन्हें भी अन्य लोगों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलना सिखाएगा। जब जेब में रुपया न होगा तो सारे के सारे इरादे धरे के धरे रह जाएंगे राकेश के बच्चे के। काश! हमने तुझे पहले ही उसके पास जाने से रोक दिया होता तो आज यह नौबत न आती।

रौशनी आंखों में आंसू लिए चुपचाप अपनी मां की कड़वी बातें सुने जा रही थी। यह अब रोज़ की बात हो गई थी। उसकी भावनाओं की किसी को परवाह न थी। रौशनी की बात को समझने वाला घर में कोई न था। रौशनी ईंट-भट्टे में रह कर भी सारे लोगों से अलग थी। उसकी अपनी इच्छाएं अपने स्वप्न थे। वह सारी उम्र इसी गारे में घुल कर नहीं जीना चाहती थी। वह पढ़ना चाहती थी और एक क़ाबिल डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन उसकी इच्छाएं, मां-बाप के तानों के आगे मरने को मजबूर हो जाती थी। यह सब यहां के परिवेश का ही नतीजा था। पूरे लोगों में दो ही ऐसे शख़्स थे जिनसे रौशनी अपने दिल की बात कह पाती थी। एक रौशनी की छोटी बहन और दूसरा राकेश। राकेश के ही परिश्रम का फल था कि रौशनी ने पांचवी पास कर ली थी। लेकिन परिवार की टोका-टाकी के कारण वह आगे न पढ़ सकी। राकेश के बाद पूरे लोगों में वही थी जो थोड़ा पढ़ना लिखना जानती थी। उसके छोटे भाई, बहन की भी पढ़ने की कोई इच्छा नहीं थी। रौशनी नहीं चाहती थी कि वह पूरी उम्र इस कमर तोड़ मेहनत के सहारे जिए। वह समाज में अपना एक मुक़ाम हासिल करना चाहती थी।

रौशनी ने दोबारा राकेश से छुप-छुप कर पढ़ना शुरू किया लेकिन यह बात ज़्यादा समय तक छुपी न रह सकी और रौशनी के परिवार वालों ने रौशनी को बुरी तरह से पीटा। रौशनी और राकेश के विषय में मां-बाप ने ही तरह-तरह की बातें बना डाली। वह चुपचाप सारी बातें सुनती गई। मार झेलती रही। सब्र का बांध अब टूटने ही वाला था।

दो दिन से रौशनी ने मुंह में रोटी का एक निवाला तक न डाला था। वह सिर्फ़ रोए जा रही थी। उसे बार-बार अपने मां बाप की घटिया सोच पर ग़ुस्सा आ रहा था। जो उसके और राकेश के विषय में बहुत ग़लत सोचने लग पड़े थे। बाहर वालों को तो बोलने का मौक़ा मिल गया था।

रौशनी के दिल में कई विचार जन्म लेते लेकिन फलने-फूलने से पहले ही वे दम तोड़ देते। ऊंची उड़ान भरने से पूर्व ही उसके पर काट लिए जाते थे। वह हर बार कटे पर वाले पक्षी की तरह फड़फड़ा कर धरती पर ज़ोर से आ गिरती।

‘रौशनी के बापू, अब मुझ से बर्दाश्त नहीं होता। ये लड़की रौशनी तो सारी बिरादरी में हमारी नाक कटवाने पर तुली हुई है। आज फिर राकेश के घर गई थी। कर्मजली, जाने कौन से पापों का बदला ले रही है हमसे।’ रौशनी की मां ग़ुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी।

‘मैं तो कहता हूं इसकी जल्द से जल्द शादी करवा देनी चाहिए। न जाने कब यह हमारे सामने नई मुसीबत खड़ी कर दे। मुझे तो बड़ी फ़िक्र लगी रहती है।’ रौशनी के पिता ने चिंतित स्वर में कहा।

‘यही तो मैं भी आपको कई दिनों से कहने वाली थी। खैर, जाने दो। रौशनी के बापू मैंने पास ही में रौशनी के लिए एक लड़का देख रखा है। लड़का बांका गबरू जवान है। मेहनती भी खूब है। दिन में दो हज़ार ईंटें अकेला ही डाल लेता है। रौशनी वहां बड़ी खुश रहेगी। इन दोनों की जोड़ी खूब जमेगी।’ रौशनी की मां की आंखों में खुशी की चमक साफ़ दिखाई पड़ रही थी।

‘तो बात करके देखो। हमारे सिर से भी एक बोझ कम हो जाएगा। रौशनी को ब्याह दिया तो मैं समझूंगा हमने गंगा नहा ली।’ पिता ने राहत की सांस लेते हुए कहा।

‘दीदी, बिल्लू से मिलने कब जा रही हो। रौशनी की छोटी बहन रेखा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।’

‘बिल्लू, कौन बिल्लू?’ रौशनी के चेहरे पर प्रश्न के भाव उभर आए।

‘दीदी, वही पास ही के ईंट-भट्टे में काम करता है वह। याद है एक बार लड़की को छेड़ने पर उसे लोगों ने बुरी तरह पीटा था।’

‘हां, हां याद आया। यह वही ज़ुल्फ़ों वाला तो नहीं है।’

‘हां, दीदी ठीक पहचाना आपने।’

‘पर तू मुझे उससे मिलने के लिए क्यों कह रही है?’

‘दीदी, इसलिए क्योंकि मां और पिता जी तुम्हारी शादी की बात उससे करने जा रहे हैं।’

‘क्या? रेखा तू ठीक तो है न। न जाने तबसे क्या बक-बक किए जा रही है। मेरी उम्र क्या तुझे शादी करने की लगती है। महीना पहले ही तो मैं 15 वर्ष की हुई हूं। वैसे भी मैं अभी खूब पढ़ना चाहती हूं।’

‘दीदी, इतनी मार खाकर भी अभी तुम्हारी पढ़ने की लालसा ख़त्म नहीं हुई है।’ रेखा ने रौशनी की दुखती रग को छू लिया था।

‘रेखा, चाहे कुछ भी हो जाए। मैं कुछ बन कर ही दिखाउंगी।’ रौशनी के चेहरे पर आत्म-विश्वास झलक रहा था।

‘बिल्लू से शादी करने के बाद?’ रेखा ने रौशनी को एक बार फिर छेड़ दिया था।

‘ख़बरदार जो उस गुंडे मवाली का नाम लिया तो।’

‘दीदी, ग़ुस्सा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मां कह रही थी कि महीने भर में ही तुम्हारी शादी करवा दी जाएगी।’

‘ऐसा नहीं होगा रेखा। मेरे अरमानों का गला कोई ऐसे ही नहीं घोंट सकता। मैं खुले आकाश में उड़ना चाहती हूं। आकाश से बातें करना चाहती हूं। मैं इसी समाज में रह कर अपना वजूद नहीं खोना चाहती। मैं अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। रेखा, ज़िंदगी बार-बार नसीब नहीं होती है। मेरी बहन, मुझे बहुत आगे जाना है। मेरी क़ामयाबी की राह अब मुझे साफ़ नज़र आ रही है। लगता है अब समय आ गया है इस राह पर अपने क़दम बढ़ाने का।’ रौशनी रेखा से बातें तो किए जा रही थी लेकिन उसके चेहरे के भावों को देखकर लगता था कि वह वर्तमान से आगे निकल भविष्य के सपने को साकार होते हुए साफ़ देख रही थी।

‘रेखा मैं यहां रहूं या न रहूं लेकिन तुम्हें मां और पिता जी का ख़्याल रखना है। उनकी हर बात माननी है। मैं तो उनकी अच्छी बेटी न बन सकी। तुम उनकी नज़रों में खुद को एक अच्छी बेटी की तरह रखना और…।’

‘लेकिन दीदी तुम आज ऐसी अजीब सी बातें क्यों कर रही हो?’ रेखा ने रौशनी को बीच में ही टोक दिया था।

रौशनी ने रेखा के सवाल का जवाब देना मुनासिब न समझा और फिर कहने लग पड़ी। ‘तू मेरी बात ध्यान से सुन। किसी के आगे कभी झुकना नहीं। मेरी बहन मेरे वश में होता तो मैं तुझे अपनी दुनियां में ले जाती पर अभी मुझे ही स्वयं का पता नहीं कि ज़िन्दगी मुझे कहां ले जाएगी? हालात के थपेड़े न जाने मुझे क्या-क्या सिखाएंगे? मुझे इन थपेड़ों का सामना करने की हिम्मत जुटानी है। बहन, शायद मैं इस रास्ते में बहुत कुछ खो दूं लेकिन देखना एक दिन तू भी मुझ पर फ़ख़्र करेगी लेकिन…।’

‘रौशनी, ओ रौशनी…।’

रौशनी के शब्दों की माला को मां की आवाज़ ने तोड़ डाला था।

‘दीदी, शायद मां आ गयी है।’

‘रौशनी’, मां ने अन्दर आते ही कहा, ‘रौशनी मेहमान आने वाले हैं। तब तक तू उनके लिए चाय पानी का बंदोबस्त कर ले। और हां अपनी रोनी सूरत ज़रा सजा-संवार कर लाना। कपड़े भी ज़रा ढंग के पहन लेना। तुझे लड़का देखने आ रहा है।’

रौशनी के लिए यह बहुत बड़ा आघात था। उसे उम्मीद भी नहीं थी कि यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा।

चाय की ट्रे थामे हुए रौशनी की नज़र लड़के पर पड़ी तो वह जान गयी कि वह बिल्लू ही है। उसका हुलिया ही सब बता रहा था।

दूसरे कमरे में बैठी रेखा अभी भी उलझन में ही थी। उसे रौशनी की बातों ने इस क़दर उलझाया हुआ था कि वह न चाहते हुए भी रौशनी की बातों की ओर खिंची चली जा रही थी उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि कभी तो रौशनी बिल्लू की सूरत भी देखने से इन्कार करती थी लेकिन अब वह बन-संवर कर उस बिल्लू के बच्चे के लिए चाय ले जा रही है। आख़िर यह माजरा क्या है?

रौशनी की आंखों से अश्रुधारा बह निकली थी। उसके दिल में एक दर्द रह-रह कर अंगड़ाई ले रहा था। वह भगवान् को कोसे जा रही थी। ‘भगवान् मुझे इस घर में जन्म क्यूं दिया? अगर जन्म दे दिया था तो मेरी सोच इनसे अलग क्यों बनाई? क्यों मुझे ऊंचाई के स्वप्न दिखाए?’

‘दीदी, क्या हुआ तुम अकेले किससे बातें किए जा रही हो?’ रेखा ने रौशनी के तारतम्य को तोड़ दिया था। रौशनी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘किसी से नहीं।’

‘बात क्या है दीदी तुम मां और पिता जी के सामने मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर बैठ जाती हो लेकिन अकेले-अकेले आंसू बहाती रहती हो। मैं आपको अभी तक समझ नहीं पाई हूं।’ रेखा इस बार गंभीर थी।

‘इसमें समझना क्या रेखा। मैं तो तेरे लिए शीशे की तरह हूं। मुझ में जानने लायक़ ऐसा कुछ भी नहीं है। मेरा नाम रौशनी ज़रूर है लेकिन मेरे सभी रास्ते अंधेरी गलियों से होकर गुज़रते हैं।’ इतना कहते ही रौशनी रेखा के कंधों पर सिर रख कर फफक कर रो पड़ी।

थोड़ी देर तक कमरे में रौशनी के रोने की आवाज़ ही सुनाई देती रही। फिर न जाने क्या सोच कर रौशनी ने अपने आंसू पोंछ डाले। वह एकदम सामान्य हो गई। रेखा के साथ हंस-हंस कर बातें करने लग पड़ी। रेखा एक बार फिर रौशनी के व्यवहार से हतप्रभ थी।

कई दिनों बाद रौशनी मां-बाप और अपने भाई-बहन के साथ खुश नज़र आ रही थी। उसके व्यवहार को देखकर मां-बाप यही सोच रहे थे कि रौशनी बिल्लू के साथ रिश्ते से खुश है। रौशनी को देखकर लग रहा था जैसे वह आज ही अपना सारा प्यार घर वालों के ऊपर न्योछावर कर देगी। आज उसने खूब मेहनत लगाकर ईंट के लिए घानी तैयार कर ली थी। सुबह सबसे पहले उठ गई थी। खाना तैयार करके ईंटें डालने निकल पड़ी थी। रौशनी के मां-बाप रौशनी के व्यवहार से बहुत खुश थे।

घर में आज क़ोहराम मचा हुआ था। रौशनी घर से भाग चुकी थी। अब रेखा को रौशनी की पिछले कल बताई गई हर बात का मतलब समझ आ चुका था। वह जाने से पहले घर वालों को दुखी नहीं देखना चाहती थी। इस लिए सारा व्यवहार रौशनी ने बदल दिया था। रेखा को रौशनी के जाने का दुख था लेकिन खुशी भी थी और वह भगवान् से प्रार्थना कर रही थी कि दीदी के हर स्वप्न को भगवान् साकार करे।

रौशनी को कुछ दिनों में दुनियां की चाल-ढाल का अंदाज़ा हो चुका था। दूर के मामा द्वारा उसे एक फ़ैक्टरी में एक हज़ार रुपए की नौकरी मिल गई थी। वह रात में काम करती और दिन में स्कूल जाती थी फ़ैक्टरी में मज़दूरों से जमकर काम लिया जाता था। रौशनी बुरी तरह से थक जाती थी। थोड़े ही दिनों में रौशनी को काम का काफ़ी अनुभव हो चुका था। दुनियांदारी उसे बहुत कुछ सिखा गई थी। उसने देखा यहां तो आदमी-आदमी की लाश के ऊपर चढ़ कर खुद को ऊंचा करने में कोई गुरेज़ नहीं करता है। चाहे वह फिर उसका अपना ही क्यों न हो। लड़कियों को तो हर क़दम फूंक-फूंक कर रखना पड़ता है। समाज में छुपे नक़ाबपोश भेड़िए कब उन्हें अपना शिकार बना लें यह समझ पाना मुश्किल था। रौशनी का हर क़दम सही दिशा की ओर बढ़ रहा था। लेकिन उसका जीवन यहां भी नरक के समान ही था। एक हज़ार में उसका गुज़ारा आसानी से हो सकता था। लेकिन कुछ समय से रौशनी का मामा उससे आधे रुपए वसूलने लग पड़ा था। वह चाहते हुए भी मामा का घर नहीं छोड़ सकती थी। स्वप्न जो पूरे करने थे। उसे पता था नरक भोगने से ही उसे स्वर्ग मिल सकता है। उसे यहां सिर्फ़ एक ही सुख था यहां उसे मां-बाप के तरह-तरह के व्यंग्य बाण नहीं झेलने पड़ते थे।

एक दिन रौशनी के ऊपर इतने ज़ोर से वज्रपात हुआ कि कई दिनों तक वह सदमे से उबर नहीं पाई। बिल्लू ने रौशनी के घर वालों को मार डाला था। मामा ने बताया कि ‘तेरे जाने के बाद वह, रेखा से शादी की बात करने लगा घरवालों की इन्कारी के बावजूद जब वह ज़बरदस्ती करने लगा तो बात इतनी बढ़ी कि बिल्लू ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरे घरवालों को मौत के घाट उतार डाला।’

दूर के मामा के अलावा रौशनी का अब इस दुनियां में कोई न बचा था। अब तो रौशनी का संघर्ष और भी बढ़ चुका था। वह मामा की किसी भी बात को नहीं टालती थी। मामा के लिए वह बोझ न बने इसलिए उसने दुगुना कार्य करना शुरू कर दिया ताकि वह अपने भविष्य के लिए कुछ रुपए जोड़ सके। परन्तु रौशनी की मेहनत उस वक़्त बेकार चली गई जब मामा ने सारी जमा पूंजी जुए और शराब में उड़ा दी। रौशनी ने अपने मामा को इसके लिए रोका-टोका भी लेकिन उसके मामा के ऊपर इसका कोई असर न हुआ।

शायद रौशनी का यहां भी ज़्यादा दिन का दाना-पानी नहीं लिखा था। उसके मामा ने ही उसे एक दिन अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा। रौशनी के ऊपर दुखों के पहाड़ टूट पड़े थे। रौशनी की आख़िरी छत भी उजड़ चुकी थी। उसे अपना भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा था। वह दुनियां से संघर्ष करते-करते थक गयी थी। उसने छोटी-सी उम्र में ही पूरी ज़िन्दगी का अनुभव पा लिया था। अब तो उसे अपने सारे स्वप्न सारी इच्छाएं बिखरती नज़र आ रही थी। उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी। उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ चुका था। वह ज़िन्दगी से हार गई थी। वह दिन भी आया जब रौशनी ने दुखी होकर नदी में छलांग लगा दी।

कार में बैठे धीरज ने सारा दृश्य देख लिया था। कार को एक तरफ़ खड़ी करके धीरज ने फटाफट नदी में छलांग लगा दी और रौशनी को नदी की लहरों से बचा कर फिर से नया जीवन दिया। रौशनी की सारी व्यथा सुनने के पश्चात् धीरज बोला, ‘हमारे कोई संतान नहीं है। मैं चाहता हूं तुम हमारी बेटी बनकर रहो। मुझे और मेरी पत्नी को इस बुढ़ापे में एक सहारा मिल जाएगा और तुम्हें ममता की छांव।’

‘लेकिन साहब, मैं अब किसी के ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती।’

‘कौन कहता है तुम हमारे ऊपर बोझ बनोगी बल्कि तुम्हें पाकर तो हम निहाल हो जाएंगे और हां, मुझे साहब की जगह तुम ‘पिता जी’ कहो तो मुझे बहुत खुशी मिलेगी। रौशनी बेटी, तुम नहीं जानती संतान के बग़ैर जीवन कितना नीरस हो जाता है।’ धीरज की आंखें भर आई थी।

रौशनी ख़ामोश बैठी रही। तभी कामिनी चाय लेकर आई। चाय देते हुए कामिनी भी अपने जज़बात को रोक न पाई। ‘बेटी, ऐसे ख़ामोश न बैठी रहो। संतान की खुशी न पाने का स्वप्न मैं स्वप्न समझ कर ही भूल चुकी थी। तुम्हारे आने से हममें आशा की एक किरण जगी है। बेटी, इस किरण को पूर्णतया उजाले में बदलने दो। बेटी की खुशी से मेरी गोद भर दो। मुझे, मेरी ममता को पूर्ण कर दो। मुझे मां का सुख दे दो।’ कामिनी फफक कर रो पड़ी थी।

‘नहीं मां, तुम्हें रोने की ज़रूरत नहीं है। मैं तुम्हारी बेटी बनकर रहूंगी।’

यह सब सुनकर धीरज और कामिनी फूले नहीं समा रहे थे। रौशनी को सहारा मिल गया था और धीरज और कामिनी को औलाद। वे रौशनी की ज़ुबां पर आने से पहले उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते थे। आज धीरज और कामिनी का घर खुशी की लहरों से सराबोर हो चुका था।

‘पिता जी, मुझे हॉस्पिटल से इंटरव्यू कॉल आई है।’ रौशनी खुशी से पागल हुई जा रही थी। ‘देखना पिता जी, यह नौकरी मुझे ही मिलेगी।’ रौशनी के चेहरे पर आत्म विश्वास झलक रहा था।

‘बेटी, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। ईश्वर मेरी बेटी के स्वप्न को अवश्य पूरा करेगा।’

रौशनी की मेहनत रंग लाई। वह अब एक बड़े अस्पताल की डॉक्टर हो चुकी थी। वह आज प्रसन्नता के सागर में हिलोरे मार रही थी। घर में जश्न का सा माहौल था। खुशी से चहकती रौशनी अचानक रो पड़ी थी।

‘बेटी यह क्या! इस खुशी के मौक़े पर यह आंसू किस लिए?’ कामिनी ने रौशनी को अपने गले से लगाते हुए पूछा।

‘मां, मुझे अम्मा-बापू की बहुत याद सता रही है। काश! वो ज़िंदा होते तो मैं उन्हें बताती कि उनकी रौशनी ने अपने स्वप्नों को पा लिया है। ऊंचाइयों को छू लिया है। वह उनके माथे पर कलंक का टीका नहीं थी बल्कि वह तो समाज में उनका सिर ऊंचा करना चाहती थी। पर अफ़सोस, वे कभी मेरी बात ही नहीं समझ पाए…।’

‘डॉक्टर, आकांक्षा-बेबी को होश आ गया है।’ रौशनी के यादों के सफ़र को नर्स के शब्दों ने विराम लगा दिया था। रौशनी ने देखा रात के दो बजे थे। फटाफट वह आकांक्षा के कमरे में पहुंची। रौशनी को देखते ही आकांक्षा बोल पड़ी, ‘दीदी मुझे माफ़ कर दो। मैंने अपनी ज़िद्द के लिए अपने मां-बाप को बहुत कष्ट दिया है। मैं अपने किए पर शर्मिन्दा हूं। अब मैं कैसे उनसे नज़रें मिला पाऊंगी।’

‘अरे पगली मां-बाप से नज़रें मिलाने में शर्मिन्दगी कैसी? तुम्हें अपने किए पर पछतावा है यही हम सब के लिए काफ़ी है। जीवन में दोबारा कभी ऐसी हरकत न करना।’ रौशनी ने आकांक्षा को समझाते हुए कहा।

‘मैंने तुम्हारे मम्मी-पापा को ज़बरदस्ती घर तो भेज दिया है लेकिन मुझे पता है वे तुम्हारे होश में आने की ख़बर को सुनने के लिए जाग रहे होंगे। मैं अभी उन्हें फ़ोन करती हूं।’

‘रौशनी ने अभी फ़ोन रखा ही था कि नर्स दौड़ती हुई आई। डॉक्टर जल्दी चलिए, एमरजैंसी केस है। शायद वक़्त से पहले ही उस लड़की की डिलीवरी…।’

‘ठीक है, तुम चलो मैं आती हूं।’ ऑपरेशन थियेटर के बाहर खड़े व्यक्ति का चेहरा रौशनी के लिए जाना-पहचाना था लेकिन इस वक़्त वह कुछ भी याद करने के मूड में नहीं थी। ऑपरेशन थियेटर के अन्दर पहुंचते ही वह उस लड़की को देख कर चिल्ला पड़ी।

‘रेखा! तुम? मेरी बहन, तुम ज़िंदा हो? हे भगवान, तेरा लाख-लाख शुक्र है। तुमने मुझे मेरे परिवार के एक हिस्से से दोबारा मिला दिया। आज मैं बहुत खुश हूं।’ रौशनी ने रेखा का चेहरा अपने हाथों में लेकर चूम लिया था। रेखा दर्द से कराह उठी। दर्द की सिसकारियों से रौशनी के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आईं थीं।

‘नहीं मेरी बहन, तुम्हें कुछ नहीं होगा। तेरी बहन तेरे पास है। तुम्हें अब डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।’

क़रीब एक घंटे के बाद जब रौशनी ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकली तो उसके चेहरे पर दौड़ती खुशी की तरंगें साफ़ देखी जा सकती थी। अपनों से मिलने की खुशी रौशनी के सिर चढ़कर बोल रही थी। वह आज खुशी के सागर में डूब चुकी थी। शायद, इससे पहले रौशनी इतनी खुश कभी नहीं हुई थी। रौशनी को अब बाहर खड़े व्यक्ति को पहचानने में ज़रा भी वक़्त न लगा। थियेटर का दरवाज़ा खुलते ही वह उस व्यक्ति के पास जाते हुए बोली, ‘राकेश, मैं मासी बन गयी। रेखा के एक सुन्दर बच्ची हुई है।’

‘लेकिन राकेश तुम यहां…।’ अचानक रौशनी ने राकेश पर प्रश्न दाग़ दिया था।

‘रौशनी, रेखा मेरी पत्नी है।’

‘राकेश, ओह भगवान्, आज तुमने मुझे प्रसन्नता के सागर में डुबो दिया है। राकेश तुम बाप बन चुके हो। मुबारक हो।’

‘तुम्हें भी रौशनी। मैं कैसे, तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं। आज तुम न होती तो शायद रेखा…।’

‘ऐसा न कहो राकेश, चलो जब तक रेखा को होश नहीं आता तुम मेरे ऑफ़िस में मेरे साथ चलो। तुम सबसे ढेर सारी बातें करनी हैं।’

सुबह के तीन बजे राकेश और रौशनी ऑफ़िस में चाय की चुसकियां ले रहे थे। रौशनी ने राकेश से एक बार फिर प्रश्न कर डाला था। ‘राकेश! मामा ने तो कहा था कि हमारे परिवार के सभी सदस्यों को बिल्लू ने मारा डाला था।’

‘तुम किस मामा की बात कर रही हो?’

‘वही जो इलाहाबाद में रहते हैं।’

‘अच्छा तुम उस पाखंडी लालची और घटिया इंसान की बात कर रही हो। बिल्लू ने कुछ नहीं किया लेकिन तुम्हारे मामा ने ज़रूर तुम्हारे परिवार को बदनाम करने की कोशिश कर डाली थी। वह रेखा को कोठे पर बिठाना चाहता था। वह उसे ज़बरदस्ती यहां से ले जा रहा था। उसी हालात में मैंने रेखा का हाथ थाम लिया था। हमें शक हुआ कि तुम भी शायद उसी के पास हो। अतः हमने तुम्हें उसके घर ढूंढ़ा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। तुम उसका घर छोड़ कर जा चुकी थी।’

‘इसका मतलब अम्मा-बापू और मेरा भाई भी ज़िंदा हैं?’

‘हां रौशनी सब ज़िंदा हैं और रौशनी तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे मां-बाप का व्यवहार बिल्कुल ही बदल चुका था। उन्होंने तुम्हें बहुत सी जगह ढूंढ़ा लेकिन तुम कहीं न मिली। जब तुम्हारे मामा ने तुम्हारी मौत की ख़बर हमें सुनाई तो हमने तुम्हें तलाश करना छोड़ दिया। तुम्हारे मां-बाप स्वयं को तुम्हारी मौत का ज़िम्मेवार मानते रहे और इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने रेखा और तुम्हारे भाई को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। रौशनी तुम जानती हो तुम्हारा भाई पुलिस में भर्ती हो चुका है और तुम्हारे मां-बाप भी उसी के पास रहते हैं।

मैंने उन्हें ख़बर कर दी है वे यहां जल्द आते ही होंगे।’

‘ओ राकेश, मुझे इतनी भी खुशी मत दो कि मैं पागल हो जाऊं। मुझे तो यह सब सुनकर यक़ीन ही नहीं हो रहा है।’

‘और सुनो रौशनी, रेखा स्कूल में टीचर है।’

‘सच!’ रौशनी का चेहरा खुशी से लाल हो चुका था। उसे अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करने के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे थे।

रौशनी और राकेश जब रेखा के कमरे में पहुंचे तो वहां पहले से ही रौशनी के अम्मा-बापू आ चुके थे। रौशनी को देखते ही उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। भावुक स्वर में कहने लगे, ‘बेटी, हमें माफ़ कर देना हम तुम्हें कभी समझ ही न पाए और तुम्हारे स्वप्नों को रौंदते चले गए। आज हमें पढ़ाई की क़ीमत पता चल चुकी है। हमने तुम्हें बहुत दुख दिये हैं बेटी, हो सके तो इन मूर्खों को माफ़ कर देना।’

‘अरे अम्मा-बापू आप ये क्या कह रहे हैं? भला मैं कौन होती हूं तुम्हें माफ़ करने वाली। यह सब तो ईश्वर की लीला थी। जिसने आज हमारे पूरे परिवार को इतनी ऊंचाई तक पहुंचा दिया।’

धीरज और कामिनी दूर से यह दृश्य देख रहे थे। वे संतान के मिलने की खुशी को समझ सकते थे। ईश्वर ने रौशनी के साथ पूरा-पूरा न्याय किया था। रौशनी आंखों में खुशी के आंसू लिए तथा ईश्वर के आगे हाथ जोड़कर उसका धन्यवाद कर रही थी। आज उसके स्वप्न हक़ीक़त बन चुके थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*