दुनियां के सभी रिश्तों से सर्वोपरि माना जाने वाला रिश्ता है पति-पत्‍नी का रिश्ता। पति-पत्‍नी का रिश्ता इतना महत्वपूर्ण होता है कि दोनों अपने इष्‍ट देव को साक्षी मान कर जीवन भर साथ निभाने का वायदा करते हैं। जब एक लड़की दुलहन बन कर पति के घर में आती है तो वहां का सब कुछ उसके लिए नया और अनजाना होता है, परिवार के रहन-सहन का ढंग, तौर-तरीके और व्यवहार। वह उस वातावरण में अपने आप को ढालने का प्रयत्‍न करती है। यह सब करते समय वह अपने मायके की स्वतंत्रता को भूल जाती है। इन सब बातों को करने में अगर उसे अपने पति का भी सहयोग प्राप्‍त हो जाए तो यह उसकी कठिनाई को आसान बना देता है। पति को चाहिए कि‍ वह अपनी पत्‍नी को उचित परामर्श देकर उसका मार्ग दर्शन करे। वह उसे परिवार के विषय में पूरी जानकारी दे व उसे परिवार के सदस्यों के स्वभाव और आदत के बारे में जानकारी दे ताकि नवविवाहिता उसके अनुसार अपने आप को ढाल सके। परिवार के संबंधों का सीधा प्रभाव पति-पत्‍नी के दाम्पत्य जीवन पर पड़ता है। इसलिए अपने दाम्पत्य जीवन को खुशियों से परिपूर्ण रखने के लिए यह ज़रूरी है कि पारिवारिक संबंध उदार और स्नेहपूर्ण हों। पति-पत्‍नी के रिश्ते में थोड़ी सी कड़वाहट भी इस रिश्ते को कठि‍नाइयों से भर सकती है। यह नाज़ुक रिश्ता प्यार और विश्‍वास पर टिका होता है। अगर इस प्यार और विश्‍वास के साथ-साथ पति-पत्‍नी अच्छे दोस्त भी बन जाएं तो उनका यह रिश्ता और भी मज़बूत हो जाएगा। दोस्ती का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जो खून का रिश्ता न होते हुए भी भावनात्मक रूप से बहुत करीब होता है। हम अपने दोस्त से अपने दिल की बात आसानी से कर लेते हैं, उससे हम कुछ भी नहीं छुपाते। जो बातें हम अपने मां-बाप या भाई-बहनों से करने से हिचकिचाते हैं वही बातें हम अपने दोस्त के साथ बहुत आसानी से कर लेते हैं। अगर पति-पत्‍नी भी इसी तरह एक सच्चे दोस्त की तरह अपने जीवन की मुश्किलों को सुलझाएं तो इनका यह रिश्ता बहुत ही सुख, शान्ति तथा प्यार से सीधा अपनी मंज़िल तक पहुंचेगा। यह मित्रवत् व्यवहार पति को कितनी ऊर्जा देता है शायद आप इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकते। सच्ची दोस्ती में अहम कभी भी आड़े नहीं आता।

दूसरी बात सोचने की यह है कि आख़िर पति-पत्‍नी का स्नेहिल एवं प्यार से परिपूर्ण रिश्ता होने पर भी इस रिश्ते में दरार क्यों आती है? इसके कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहला तथा अहम कारण है दहेज़। कई बार दहेज़ के कारण मां-बाप अपने बेटे की राय जाने बिना ही उसका रिश्ता कर देते हैं। जब कि वह लड़की उसके लिए उपयुक्‍त नहीं होती। यह रिश्ता उनके लिए केवल नाम का ही रिश्ता बन कर रह जाता है। दूसरा कारण है – पुत्र की लालसा। अगर शादी के 5 – 6 साल बाद भी लड़की के घर पुत्र नहीं होता है तो भी लड़का तथा उसका परिवार ऐसी लड़की को छोड़ना ही पसंद करते हैं। वे यह नहीं सोचते कि इन सब में दोष तो उनके बेटे का ही है। वह इसका सारा दोष लड़की को ही देते हैं। तीसरा कारण है, कुछ लड़कियां विवाह से पहले अपने रास्ते से भटक जाती हैं तथा किसी लड़के के प्रेम जाल में फंस जाती हैं। इस रिश्ते में वह इतनी दूर निकल जाती हैं कि वहां से लौट कर आना मुश्किल होता है। प्रेम में वह यह भी भूल जाती हैं कि लड़का स्वावलम्बी है या नहीं। इससे भी उनका रिश्ता बिगड़ने का डर बना रहता है।

वैवाहिक जीवन के नीरस बनने का एक कारण यह भी है कि अकसर शादी के पुराने हो जाने तथा बच्चे हो जाने के बाद औरतें घर गृहस्थी की ही होकर रह जाती हैं। वह इतनी प्रेक्टिकल हो जाती हैं कि अपने जीवन से रूमानियत को बिल्कुल ही निकाल देती हैं। वह यह भूल जाती हैं कि थोड़ी सी रूमानियत, चुहल, छेड़छाड़ ज़िन्दगी को जीने लायक बनाती है। कुछ पत्‍नियां ऐसी भी होती हैं जो पति द्वारा किये जाने वाले मज़ाक तथा चुहल बाज़ियों को चीप समझकर उसकी आलोचना करती हैं क्योंकि वह यह नहीं जानती कि यह छोटे-मोटे मज़ाक ही तो दाम्पत्य जीवन को खुशहाल बनाए रखते हैं।

सुखी दाम्पत्य के लिए हमेशा पत्‍नी की तरफ़ से ही प्रयत्‍न हो ऐसी ही आशा की जाती है लेकिन इसके लिए पतियों को भी प्रयत्‍न करने चाहिए। पति को चाहिए कि वह कभी भी बच्चों के सामने पत्‍नी के साथ लड़ाई-झगड़ा न करे क्योंकि अगर वो ऐसा करेगा तो बच्चों के मन में मां के प्रति इज़्ज़त नहीं रहती। पति को हमेशा हर काम में अपनी पत्‍नी की राय लेनी चाहिए तथा उसके द्वारा दी गई राय को सीधे-सीधे नकारना नहीं चाहिए। पति को पत्‍नी की मुश्किलों को भी ध्यान से सुन कर उसका हल निकालना चाहिए।

हर पत्‍नी की एक अहम इच्छा होती है जवान बने रहने की, इसलिए पत्‍नी को केवल पत्‍नी ही नहीं बल्कि प्रेयसी भी समझना चाहिए जो कि उसके प्यार की केन्द्र बिन्दू है। प्यार सुखी दाम्पत्य जीवन का आधार है। प्यार आत्मिक, मानसिक और शारीरिक सुख के लिए बहुत ज़रूरी है। लेकिन दाम्पत्य जीवन का उद्देश्य केवल शारीरिक सुख प्राप्‍त करना ही नहीं है बल्कि इनका काम एक अच्छे तथा स्वस्थ समाज का निर्माण करना भी है।

दाम्पत्य एक सुन्दर-सजीली स्वप्निल बगिया है और इसे प्रफुल्लित करने के लिए दोनों को ही समझदारी और सहयोग का आंचल नहीं छोड़ना चाहिए। सुखी दाम्पत्य जीवन जीने के लिए, इस बंधन को सचमुच ही एक अटूट बंधन बनाने के लिए दोनों तरफ़ से ही (पति-पत्‍नी) प्रयत्‍न होने चाहिए। क्योंकि पति-पत्‍नी गृहस्थी रूपी भवन के दो स्तम्भ हैं अगर इनमें से एक भी स्तम्भ हिल गया तो सारा गृहस्थी रूपी भवन ही डांवांडोल हो जाएगा। दोनों को हीे एक दूसरे की ज़रूरतों का ध्यान रखना चाहिए। अगर कोई मुश्किल आ भी जाए तो दोनों को ही मिलजुल कर उसका समाधान करना चाहिए। पति-पत्‍नी को एक सुखी और सफल गृहस्थ के निर्माण के लिए एक-दूसरे को भरपूर सहयोग देना चाहिए।

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