चौका, चूल्हा, चारदीवारी! ‘च’ की इस परिधि में महिला को युगों-युगों से क़ैद रखा गया, जिससे वह ‘कुएं के मेंढक’ की तरह अपने घर को ही सब कुछ मानकर उसके प्रति समर्पित रही है, भले ही उसके इस समर्पण के बदले में उसे दुत्कार, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण सहन करना पड़ता हो। इस परिधि में रहते हुए स्त्री की स्थिति ऐसी बना दी गई कि उसे केवल घरेलू वस्तु ही माना जाने लगा। फलतः स्त्री बाहरी दुनियां व समाज से कटती गई और शोषण, ज़ुल्मो सितम को अपनी नियति मानते हुए इसे चुपचाप बर्दाश्त करती रही।

लेकिन आज की नारी में जागृति पैदा हुई। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ उसने घर की चारदीवारी से बाहर क़दम रखकर खुद को मज़बूत बनाया है। साथ ही उसने नारी के अस्तित्त्व को गरिमा, महानता तथा स्वतंत्र वजूद प्रदान करने की कोशिश की है।

इसी तरह भ्रमण के द्वारा स्त्री कूप मंडूक की स्थिति से निकलकर दुनियां को नए सिरे से देखने की कोशिश भी कर रही है। समाज में विचरण करते हुए ही उसे पता लग सकता है कि उसकी स्थिति अब तक क्या थी और आगे क्या हो सकती है?

भ्रमण के ज़रिए समाज की अन्य महिलाओं के संपर्क में आकर जहां एक ओर नारी खुद को भावनात्मक रूप से सशक्त महसूस करती है वहीं दूसरी तरफ़ उसे जनजीवन से जुड़े नारी विषयक अन्य पहलुओं का भी पता चलता है। जैसे कि ज़रूरतमंद महिला अपनी स्थिति के मुताबिक़ विभिन्न कानूनों की जानकारी पा सकती है। आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित विभिन्न महिला कल्याण योजनाओं व कार्यक्रमों के अलावा बैंकों की योजनाओं, अनुदान, कुटीर या लघु उद्योगों हेतु ऋण आदि की जानकारी हासिल कर सकती है।

यदि वह शोषण अथवा ज़ुल्मो सितम की शिकार है तो भ्रमण द्वारा अन्य महिलाओं से संपर्क होने पर उसे पता चलता है कि वह अबला नहीं है, वह भी एक इंसान है जो समाज में सिर उठाकर जीने तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने का अधिकार रखती है। उसे नारी हित व नारी सुरक्षा का कानूनी परामर्श भी प्राप्त होता है। इन सबसे बढ़कर उसमें आत्मगौरव तथा स्वाभिमान विकसित होता है।

इस संबंध में यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि भ्रमण द्वारा केवल एक महिला मज़बूत नहीं बनेगी बल्कि उसके साथ पूरा परिवार तथा अंततः पूरा नारी वर्ग मज़बूत बनेगा। उसका यह सशक्त रूप अन्य दबी तथा कमज़ोर महिलाओं को प्रेरणा व प्रोत्साहन देकर सामर्थ्य प्रदान करेगा।

इसके अलावा भ्रमण द्वारा अन्य क्षेत्रों की महिलाओं से संपर्क होने पर स्त्री को उनके रीति रिवाज़ों, रहन-सहन, सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी प्राप्त होती है जिससे सांप्रदायिक सद्भावना तथा एकता को बल मिलता है।

भ्रमण द्वारा महिलाओं को अपने व्यक्तित्व की कर्मठता व शक्ति का बोध होता है। एक अकेली लड़की यदि किसी दूसरे शहर में नौकरी करने जाती है या वहीं अस्थायी तौर पर निवास करती है तो इससे वह आर्थिक तौर पर स्वावलंबी तथा शक्तिशाली अनुभव करते हुए समाज की किसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार रहती है। मानसिक तौर पर भी वह खुद को सबल महसूस करती है। उसमें साहस तथा आत्मविश्वास के गुण पनपते हैं तथा वह कभी भी, किसी के साथ भी अन्याय सहन न कर पाते हुए उसका प्रतिकार करने की कोशिश करती है।

भ्रमण के दौरान ही नारी को अपने शक्ति रूपा होने का एहसास होता है और तब ही ‘नारी-नारायणी’ की उपमा सार्थक होती है। इस प्रकार भ्रमण एक कमज़ोर, शोषित महिला को सिर उठाकर जीने की प्रेरणा देते हुए उसके लिए अनेक स्तरों पर उपयोगी साबित होता है।

पत्रकार, वकील, चिकित्सक, प्रशासनिक अधिकारी के रूप में महिलाओं का विविध स्थानों पर भ्रमण उस क्षेत्र की समस्त महिलाओं में भी कुछ कर दिखाने की प्रेरणा पैदा करता है। वास्तव में यह प्रेरणा नारी में भीतर ही भीतर विद्यमान रहती है और अक्सर ये महिलाएं आते ही ज्वाला की भांति रौशन होकर उनका मार्ग प्रशस्त करती हैं। उसे पता चलता है कि वह सिर्फ़ बर्तन मांजने, झाड़ू-पोछा करने या खाना बनाने जैसे कामों तक ही सीमित नहीं है।

यदि कोई सुशिक्षित महिला किसी पिछड़े इलाके का भ्रमण करती है तो वहां की महिलाओं के स्वास्थ्य, रहन-सहन तथा दिनचर्या में सुधार लाने के साथ-साथ वैचारिक स्तर को भी ऊंचा उठाने के लिए प्रेरित करती है। इसी प्रकार निम्न वर्ग की महिलाएं भ्रमण करते हुए अन्य क्षेत्रों में महिलाओं के उच्च स्तर का अनुसरण करते हुए अपने परिवेश में उन्हें ढालने की कोशिश करती हैं जिससे हर स्तर पर महिला सशक्तिकरण को बल मिलता है।

विज्ञान तथा सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में महिला घर की देहरी तथा पुरुष प्रधान समाज द्वारा निर्मित संकीर्ण दायरे को लांघकर ही अपने लक्ष्य को हासिल करते हुए, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है और तभी वह सशक्त रूप से अपनी स्वतंत्र पहचान क़ायम करते हुए पूरी नारी जाति को नई दिशा प्रदान कर सकेगी।

 

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