-अरूण ‘खाक़सार’

अक्सर हमें परीक्षाओं से दो-चार होना पड़ता है। हम दो हमारे एक ने लगभग डेढ़ दशक पहले स्कूल में प्रवेश लिया था। दरअसल, प्रवेश तो साहबज़ादे का होना था पर उसके बहाने स्कूल में छीछालेदार हमारी हो गई।

हमें महसूस हुआ कि लोग नाहक की लांछन लगाते हैं कि भारतीय समाज में शिक्षकों को उचित महत्त्व और सम्मान नहीं दिया जाता जिसके वो हक़दार होते हैं। दो दिन के इंतज़ार के बाद हमें प्रिंसीपल महोदय के दिव्य दर्शन करने का हसीन मौक़ा मिला। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में हमारे योगदान के लिए बीस हज़ार रुपए के दान की प्रार्थना या आदेश के साथ दो मिनट में हमारी छुट्टी कर दी। वह तो भला हो शिक्षा मंत्रालय के अवर सचिव का कि हमारे लख़्ते जिगर का दाख़िला भी हो गया और हमें बीस हज़ार के डोनेशन के हथौड़े की चोट भी न लगी। वह दिन है कि आज का दिन, हमें एक पल चैन का नसीब नहीं हुआ। हम साल-दर-साल होमवर्क करते हैं, ट्यूशन पढ़ाते और इम्तिहान देते हैं।

इधर बोर्ड का इम्तिहान सिर पर है साहबज़ादे फ़िल्मी गाने सुनते हैं, टी.वी. बांचते हैं और हम घर और दफ़्तर में उनकी पाठ्य-पुस्तकों का गहन अध्ययन करते हैं। परीक्षा के क़रीब दो महीनों पहले हमें ऐसी परिस्थितयों और आपदाओं में घिरे देखकर हमारी बेगम ने हमें साहबज़ादे के टीचर से संपर्क करने का मशविरा दिया। उनके एक टीचर हमारे जानकार थे। हमने बेगम की सलाह मान उनसे संपर्क साधा। उन्होंने हमारी समस्या हल की और हमें विभिन्न विषयों के बीस-बीस प्रश्नों की सूची हमारे हाथ में थमा दी। इम्तिहान में सवाल इन्हीं में से आएंगे। उत्तर लिखकर पुत्र को तोते की तरह रटा दो। अपनी गारंटी है कि लड़का टॉप करेगा। उन्होंने सुझाव व सहायता के एवज़ में हमसे प्रभावी क़िस्म के द्रव्य और मुर्गे की पार्टी ली। हम पुत्र के पास होने की कल्पना में खोए खुशी-खुशी घर लौटे और आदर्श बीस उत्तर बनाने में जुट गए। प्रश्नों के जवाब बनाना आसान था पर पुत्र को याद कराना कठिन। उनके व्यस्त सामाजिक कार्यक्रम में प्रश्न और उत्तर पढ़ने के लिए वक़्त ही नहीं था। जब इम्तिहान क़रीब आ गए और केवल एक महीना बाक़ी रह गया तो हमने बीस में से दस अति-अति महत्वपूर्ण सवाल छांटने की योजना बनाई। हिंदुस्तान देश में चांस की बड़ी अहमियत है, क्रिकेट का खेल इसीलिए इतना लोकप्रिय है।

हमने चौराहे के तोता ज्योतिषी से संपर्क साधा। सवालों की बीस परचियां बना कर उसके सामने पेश कीं। उसने अपनी चोंच से दस सवालों का चयन किया। शायद परीक्षक भी इसी तरक़ीब से परीक्षा पत्र बनाते होंगे?

हम और हमारी बेगम, पुत्र के सामने गिड़गिड़ाए कि वह इम्तिहान के लिए चन्द लम्हें निकालने की कृपा करें। हमारे सम्मिलित प्रयास का असर हुआ। साहबज़ादे ने दस-दस उत्तर रटने की हामी भर दी। हम थोड़ा आश्ववस्त हुए कि अगर दस में से तीन सवाल भी परीक्षा में आ गए तो पुत्र के पास होने की पूरी-पूरी संभावना है। इम्तिहान मौन अध्ययन और ज्ञान की जांच होनी होती है भारत में परीक्षा सिर्फ़ रटने की योग्यता और नक़ल करने की कला परख है।

हमारे साहबज़ादे अपने वायदे के पक्के निकले। उन्होंने कमर कस कर हर प्रश्न पत्र के दस-दस सवालों को बार-बार पढ़ा। शाम को निश्चित कार्यक्रम के मुताबिक़ हमारी उनसे हर उत्तर के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करने की योजना थी। हमने उनसे पहले दिन भारतीय इतिहास के स्वर्णकाल की जानकारी चाही। उस दिन उनके इतिहास रटने की बारी थी। हमारा सवाल सुनते ही साहबज़ादे छत को निहारने लगे। फिर मस्तिष्क पर हाथ रख कर अपनी याद्दाश्त पर ज़ोर दिया। एक गिलास पानी गटका और बोले, भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल उन्नीस सौ पचहत्तर का दशक था जब ‘शोले’ फ़िल्म हिट हुई थी।

हम उनके इस आश्चर्यजनक शोध का लोहा मान गए। हमें बस एक ही दुःख था कि शायद परीक्षक इस खोज से सहमत न हो। यह भारतीय शिक्षा व्यव्स्था का दुर्भाग्य है कि वह ऐसे मौलिक ज्ञान की क़दर न कर अतीत के बेमानी तथ्यों की लीक पीटती है। हमने उनका दिल न तोड़ने की दृष्टि से उनके ज्ञान की प्रशंसा की। लेकिन साथ ही अपने उत्तर की आशंका व्यक्त की, अगर हम निजी निष्कर्षों की बजाय पुस्तक में लिखे तथ्यों का हवाला देंगे तो सफलता की संभावना अधिक है।

साहबज़ादे ने बेझिझक हमें दिलासा दिया, ‘पापा, आप चिंता न करें। हम जानते हैं कि आप ने बड़ी मेहनत से ये नोट्स बनाए हैं पर इन्हें इतने सीमित समय में याद करना संभव नहीं। आप दस नहीं पूरे बीस प्रश्नों के उत्तर हमें दे दीजिए, हम कोई चांस नहीं लेना चाहते हैं। हम आपको पास होकर दिखाएंगे।’

उसके आश्वासन और आत्मविश्वास से हमारे दिल को तसकीन हुई। पर बच्चों के बारे में चिंतित रहना मां-बाप की नियति है। हमें डर लगा कि कहीं साहबज़ादे क़लम की बजाए चाकू से इम्तिहान देने का कमाल न कर दिखाएं। आजकल यह परीक्षा देने की एक बेहद लोकप्रिय तरक़ीब है। छात्र क़लम घर पर भूल आते हैं और चाकू चला कर पास हो जाते हैं। जब कभी इम्तिहान के निरीक्षक इस विधि का विरोध करते हैं तो भूले-भटके पुलिस वाले हरकत में आ जाते हैं।

मगर साहबज़ादे हमें आश्वस्त करके फिर से अपनी दिनचर्या में लीन हो गए। परीक्षा के दिन उन्हें शुभकामनाएं देकर विदा करने के बाद बेगम ने हमें निर्देश जारी किया, ‘हम तो चाहते थे कि आप पुत्र को अपने साथ ले जाकर परीक्षा स्थल छोड़कर आते, उसका और हम सबका आज इम्तिहान का दिन है। आप कम से कम वहां जाकर देख तो आते कि सब कुशल मंगल है।’

हमें बेगम की बात में हमेशा की तरह दम लगा। हमने खुफ़िया तौर पर जांच करने का निश्चय किया और दफ़्तर के बजाए केंद्र की तरफ़ रवाना हो गए। वहां चारों ओर पुलिस का सख़्त पहरा था। एक जवान ने हमें गेट पर ही रोक दिया। हमने उसे बताया कि हमारे पुत्र अन्दर परीक्षा के चक्रव्यूह में उलझे हुए हैं हम उनकी ख़ैरियत से वापसी के इंतज़ार में हैं। उसने हमें लॉन में बैठने की इजाज़त दे दी।

वहां जाकर हमने देखा कि परीक्षा हॉल के बाहर एक कमरा-सा बना है। पुलिस के सिपाही उसकी सुरक्षा में खड़े हैं। हॉल के अंदर से उस कमरे तक लड़कों का आवागमन जारी है। हमने पुलिस वाले से इस चलाचली के बारे में पूछा। उसने मुस्कुराकर बताया कि यह लघुशंका केन्द्र है। लड़के नक़ल न करें इसलिए पुलिस वाले यहां तैनात हैं।

एक बार हमें साहबज़ादे जाते हुए वहां से नज़र आए। उनके हाथ में काग़ज़ थे। तीन घंटे समाप्त होने से पहले वह फिर आते-जाते नज़र आए। परीक्षा समाप्त होने पर जब साहबज़ादे बाहर आए तो उनके हाथ ख़ाली थे और अंदर दाख़िल हुए थे काग़ज़ों सहित। हमने उनसे परीक्षा के बारे में पूछा। उनके चेहरे पर ऐसा भाव आया, मानों हमने उनसे किसी अनजान स्थान का ज़िक्र कर दिया हो उन्होंने कहा कि सब ठीक हो गया।

हमारे मन में शक का कीड़ा कुलबुलाया परन्तु हम विवश थे। हम यही सोचकर संतुष्ट थे कि उनकी जेब में क़लम थी चाकू नहीं। वैसे भी सरकार ने पुलिस का इंतज़ाम कर चाकू वालों को चेतावनी दे दी थी। अब परीक्षा में क़लम वालों की चलेगी चाकू वालों की नहीं।

दूसरे दिन से हमारी परीक्षा की ड्यूटी ख़त्म हो गई। हम अपने जानकार शिक्षक का शुक्रिया अदा करने उनके घर गए तो उन्होंने हमें बताया कि एक शिक्षक है जो उचित दर पर नंबर बढ़वाने का धंधा करता है। हमारे उनसे निजी ताल्लुकात हैं। हमें उनसे संपर्क करना चाहिए। आपके साहबज़ादे पास हो सकते हैं। हमें लगा के बेकारी की डिग्री पाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। पुत्र प्रेम का रोग इन्सान से कुछ भी करवा सकता है।

हम उन शिक्षक महाशय के पास जाने के लिए पैसों का हिसाब लगा रहे थे कि समाचार पत्र की हैडलाईन ने हमें चौंका दिया, नक़ल करते लड़कों और पुलिस में सांठ-गांठ, कॉपियां बदली गई, छह पुलिस वाले और कई विद्यार्थी गिरफ़्तार अपने ही अपनों के दुश्मन होते हैं। निगरानी शाखा ने नागवार हरकत की और अपने ही साथियों सहित हमारे और न जाने किन-किन साहबज़ादों को धर पकड़ा।

अब हम साहबज़ादे की ज़मानत के लिए वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं। हमारे दोस्तों का मत है कि हमारे साहबज़ादे का भविष्य उज्ज्वल है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि भविष्य में हमारे साहबज़ादे शिक्षा मंत्री का पद सुशोभित करेंगे।

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