-डॉ.पांडुरंग भोपले
मनुष्य की शारीरिक अवस्था और आयु पर यह निर्भर करता है कि किसे कितने घंटे सोना चाहिए। सामान्यतया देखा यही जाता है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे नींद की अवधि कम होती जाती है। नवजात शिशु 22 से 23 घंटे तक सोता है जबकि वयस्कों के लिए 7 या 8 घंटे नींद लेना पर्याप्त होता है।
नींद की दो प्रधान अवस्थाएं होती हैं। गहरी नींद की स्थिति तथा हलकी नींद। गहरी नींद रात में शुरू के कुछ घंटों में आती है। हलकी नींद में सपने आते हैं। जिसे नींद अच्छी तरह से नहीं आती उसकी नींद का अधिकांश समय गहरी नींद की बजाय हलकी नींद में बीत जाता है। यह हलकी नींद सोने और जागने के मध्य के निकट की अवस्था होती है। हमारे जीवन का लगभग एक तिहाई हिस्सा नींद में बीत जाता है। शारीरिक तथा मानसिक तंदरुसती के लिए मनुष्य को नींद लेना बहुत ज़रूरी है। किसी कारणवश पर्याप्त नींद न ले सकने से शरीर में तनाव व दर्द बना रहता है। थकावट महसूस होती है। झपकियां आने लगती हैं। जब तक हम कुछ घंटे तक सो नहीं पाते तब तक खुद को तरोताज़ा महसूस नहीं कर पाते। नींद हमारे शरीर और मस्तिष्क के लिए अति आवश्यक है।
नींद न आने के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे-शारीरिक तथा मानसिक तनाव, परेशानियां, दर्द, ज़ख़्म, कामकाज के कारण अनावश्यक कठिनाइयां, पारिवारिक तथा रिश्ते-नातों में एवं मित्रों में किसी कारणवश तनाव, मनमुटाव, आर्थिक समस्याएं हल न होना, अनुचित निर्णय, असंतुलित भोजन, रात में देर से सोना, किसी बीमारी की वजह से नींद न आना।इसके अलावा भी नींद न आने के अनेक कारण हो सकते हैं। प्रात: नींद जल्दी खुल जाना, रात में सोते समय कठिनाई से नींद आना, बार-बार जागना इससे निद्राहीनता की स्थिति पैदा होती है। उत्तेजक पेय पदार्थ का सेवन करना, चिंता, कष्ट, बेचैनी, उत्तेजना, मनोवैज्ञानिक कारणों से भी निद्राहीनता की अवस्था उत्पन्न होती है। कुछ लोगों को नींद नहीं आती इसलिए नींद की गोली का सेवन कर नींद लाने की कोशिश करते हैं। ऐसी आदत डालना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। नींद की दवाई कुशल डॉक्टर की सलाह से ही लेनी चाहिए। जहां तक मुमकिन हो नींद न आने के कारणों को जान-समझकर दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
नींद आने के लिए खाये जाने वाली दवाई से बदहज़मी, त्वचा पर दाने उभर आना, रक्तचाप में वृद्धि, यकृत तथा गुर्दे में रक्तप्रवाह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मानसिक उलझने बढ़ती हैं। बीमारियों से लड़ने की शारीरिक क्षमता में कमी आती है।
सुख की नींद आने के लिए कुछ बातों पर ग़ौर कर कुछ नियमों का पालन करना ज़रूरी है।
रात में निश्चित समय पर किंतु जल्दी सोना चाहिए। सुबह सूर्योदय के पहले उठने की आदत डालनी चाहिए।
मौसम के अनुकूल संतुलित तथा पौष्टिक आहार लेना चाहिए। रात में देर से भोजन नहीं करना चाहिए।
सोने के पहले चाय, कॉफी या मादक, नशीले पेय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सोने के पूर्व देर रात तक कोई पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए, फ़िल्म नहीं देखनी चाहिए। किसी गंभीर विषय पर बातें करने से नींद आने में बाधा उत्पन्न होती है।
जो शारीरिक मेहनत का काम नहीं करते उन्हें अपनी दिनचर्या में योगासन तथा व्यायाम शामिल कर लेना चाहिए। सोने के कुछ देर पहले व्यायाम नहीं करना चाहिए। जो शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो उसे व्यायाम नहीं करना चाहिए क्योंकि यह निद्राहीनता का कारण बन सकता है।
ठंड के दिनों में ठंड से बचना चाहिए ताकि अच्छी नींद आ सके। गर्मी के दिनों में यदि नींद न आए तो ठंडे पानी से नहाना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में हलके तथा सूती कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। सोने का कमरा हवादार होना चाहिए। सिर के नीचे का तकिया अपनी सुविधानुसार होना ज़रूरी है।
सोने का कमरा तथा बिस्तर स्वच्छ होना चाहिए। सोने के पूर्व अपनी चिंताओं को भुलाकर निश्चिंत होकर श्वासन में सोना चाहिए। श्वासन में सोने से शरीर में धीरे-धीरे शिथिलता आती है जिससे गहरी नींद आती है।
नींद में शरीर तथा मस्तिष्क का विकास होता है इसलिए मनुष्य को पर्याप्त नींद ज़रूरी है।