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 हाथों में माईक और कैमरा लेकर हवाओं में अपना वर्चस्व स्थापित करने की नई नई भूख और बिना किसी लंबे-चौड़े झंझट के घर-घर तक पहुंचने की मिली ताकत का आधार किस कदर ‘बस एक ख़बर का सवाल है’ जैसी कमज़ोर सी बुनियाद पर खड़ा है? इसका अहसास, अपरिपक्व व तमाशे और हकीकत में अंतर न जान पाने वाले भारतीय दर्शक वर्ग को अभी नहीं हो रहा। पर चाट मसाले व गोलगप्पे की तरह परोसी जाती चटपटी सामग्री का केंद्र बिंदु या मुख्य पात्र बनाये गए व्यक्ति को निर्दोष होने के बावजूद कई बार व्यवस्था के कुचक्र का शिकार होने के साथ-साथ कई प्रकार का दंड भुगतना पड़ता है जिसका कि वो न तो पात्र होता है न ही बनाई गई कहानी में जबरदस्ती फिट कर दिये जाने का ज़िम्मेवार। जी हां, ये बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए हवाओं में जंग लड़ रहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का वो चेहरा है जो बाहर से कुछ और है और भीतर से कुछ और है। सत्ताईस साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत रहने के दौरान हमारे गुरुओं व वरिष्‍ठ लोगों ने हमेशा यही कहा कि नो न्यूज़ मीन गुड न्यूज़ होता है। यानि यदि कोई ख़बर नहीं तो ये भी अच्छी ख़बर ही है। जबकि विज़ुअल मीडिया ने तो जैसे नए मुहावरे भी गढ़ लिए हैं। इनका समझ में आता फंडा ये है कि ख़बर नहीं है तो भी ख़बर को क्रिएट किया जाए!

नीचे दी गई उदाहरण उस मामले की अंतर्कथा है जिसमें एक पात्र, योग के योद्धा कहलाए जाते स्वामी रामदेव हैं। एक पात्र 22 वर्षीय युवक गौरव कपूर है जो पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था अपनी किस्मत आजमाने, एक स्ट्रिंगर रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया जबकि उसे चार दिन तक योग गुरू को मारने वाला खूंख़ार आतंकवादी प्रचारित किया जाता रहा। ऐसा माहौल बन गया कि उससे हाथ मिलाने वाले भी इन चार दिनों में उसके नाम तक को छूत की बीमारी समझते रहे और दो प्रदेशों की सारी की सारी सरकारी मशीनरी में उथल-पुथल मची रही, दिल्ली से भी कई एजेंसियों ने ‘जांच-पड़ताल’ शुरू कर दी। चौथे दिन खोदा पहाड़ और निकला चूहा वाली बात प्रमाणित हो गई जब ‘ख़तरनाक आतंकवादी’ की बीस हज़ार रुपए के निजी मुचलके पर ज़मानत हो गई। वो नौबत भी तभी आई कि मीडिया की भयंकर चांदमारी से थर्राए हिमाचल के पुलिस प्रशासन को इस युवक को 420, 467 और 471 की धाराओं के तहत इसलिए बुक करना पड़ा ताकि मीडिया द्वारा प्रचारित ‘ख़तरनाक आतंकवादी’ की तफ़तीश करने में कोई कानूनी अड़चन न आ सके।

ये वर्ष 2006 के मई का आखिरी सप्‍ताह था। 28 मई को रविवार के  दिन वर्किंग डेज़ की तुलना में मैं अधिक रिलैक्स था सो लंबी तान कर सोना चाहता था। सुबह के साढ़े सात बजे होंगे। तभी मोबाइल की घंटी बजने लगी। दूसरी तरफ पंजाब के जाने माने फोटो जर्नलिस्ट शिव जैमिनी थे। आदतन सहजता से बात करने वाले शिव उस दिन लगभग चिल्ला रहे थे। उनकी उत्तेजना भरी आवाज़ से मुझे केवल एक ही शब्द समझ में आया,वो था ‘न्यूज़ चैनल लगाओ।’ टीवी ऑन किया तो हर चैनल पर एक ही ख़बर बड़ी प्रमुखता से दिखाई जा रही थी,‘आतंकवादियों ने योग गुरू बाबा रामदेव की सुरक्षा का घेरा तोड़ा, उनकी सुरक्षा में हुई सेंधमारी,बाईस वर्षीय युवक mediaaहमीरपुर (हिमाचल प्रदेश) में काबू’ मेरी हैरानी की वजह ये थी कि मैं उस दिन जो लंबी तान कर सोना चाहता था, उसका कारण भी बाबा रामदेव ही थे। अभी एक दिन पहले ही तो उनका कारवां भेज कर हमने सुख की सांस ली थी। स्वामी जी बीस से सत्ताईस मई तक हमारे शहर जालंधर में थे व हमारे संस्थान द्वारा आयोजित योग शिविर में हज़ारों लोगों को योग की शिक्षा देकर बीते कल यानि 27 मई को ही हमीरपुर में तयशुदा योग शिविर में भाग लेने हेतू जालंधर से रवाना हुए थे। उन दिनों मैं जालंधर स्थित शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर प्रबंधक कमेटी द्वारा संचालित धार्मिक साप्‍ताहिक ‘दिव्य टाइम्स’ में बतौर कार्यकारी संपादक कार्यरत था। मंदिर कमेटी द्वारा आयोजित योग शिविर के दौरान देश विदेश से आए मीडिया कर्मियों को सहयोग देने का काम मेरे ज़िम्मे था। मैं स्वामी रामदेव की सुरक्षा में सेंधमारी की ख़बर में ही उलझा हुआ था पर अभी मुझे बहुत सारे झटके लगने वाले थे। अगला दृष्य देख कर मैं भीतर तक कांप उठा। सलाखों के पीछे से बिटर-बिटर देख रहा युवक जिसे ‘आतंकवादी’ बताया जा रहा था, वो हमारे समाचार पत्र का स्ट्रिंगर रिपोर्टर बाईस वर्षीय गौरव कपूर था। चैनल वालों में मारकाट मची हुई थी। ‘ख़बर’ की ‘पुष्‍ट‍ि’ के लिए मरे जा रहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले बस पुलिस के श्रीमुख से ये सुनने को तड़प रहे थे कि ‘आतंकवादी’ किस आऊटफिट से संबंधित है? फूहड़ किस्म की कमैंट्री कर रहे रिपोर्टर लोगों के ‘अंदाज़े’ भी प्रसारित हो रहे थे। किसी का ‘अंदाज़ा’ था कि गौरव हिज्बुल मुज़ाहिद्दीन का सदस्य है तो किसी का ‘अनुभव’ जताता था कि नहीं ये जैश-ए-मोहम्मद का आदमी है। मैंने तुरंत अपनी अख़बार के प्रकाशक व मालिक शीतल विज को फ़ोन लगाया। वे काफ़ी सहमे हुए थे। बाबा रामदेव उन्हीं के घर एक सप्‍ताह तक ठहरे थे, बाबा के अनन्य भक्त होने के चलते उनकी प्रतिक्रिया मुझे अजीब नहीं लगी। टीवी चैनलों पर प्रसारित  हो रहे मसाले से उन्हें भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं गौरव का संबंध किन्हीं गलत किस्म के लोगों के साथ हो सकता था। उन्होंने मुझे कहा कि गौरव कपूर के साथ अख़बार के संबंध प्रकट न ही हों तो अच्छा है। पर मुझे पता था कि ये बात नहीं छिप सकती क्योंकि हमारे अख़बार के जूनियर रिपोर्टर के तौर पर गौरव मीडिया सर्किल में उठने बैठने लगा था। यहां तक कि स्वामी रामदेव के साथ वो पूरा सप्‍ताह रहा था व उसके द्वारा किए गए स्वामी रामदेव के इंटरव्यू के अलावा बाबा के विभिन्न कार्यक्रमों की कवरेज उसके नाम से दिव्य टाइम्स में प्रकाशित थी जो उसी दिन रविवार को मार्किट में आया था। ये संभव ही नहीं था कि न्यूज़ चैनलों की जालंधर में तैनात बैक-अॅप टीम इन तथ्यों की जानकारी अपने हैड क्वार्टर को न भेजे। शीतल विज पंजाब के चर्चित उद्योगपति होने के साथ मंदिर प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष थे। साढ़े छ: सौ करोड़ की टर्न ओवर वाली शीतल फाईबर्स के प्रबंध निदेशक थे। समाज में विचरने वाले प्राणी व अपनी छवि के प्रति हमेशा सजग रहने वाले। पर इस प्रकार के मीडिया अटैक से उनका वास्ता पहली बार पड़ा था। अब मैं उनकी व्यथा बेहतर तरीके से इसलिए भी समझ सकता हूं क्योंकि उस समय न्यूज़ चैनलों पर चल रहे तमाशे से भी काफ़ी ज़्यादा बातें उनकी जानकारी में थीं। मसलन उनका तेरह वर्षीय पुत्र अभिषेक विज भी बाबा के क़ाफ़िले के साथ था जो अपनी बचकाना ज़िद के चलते गौरव को भी साथ ले गया था। जालंधर से चल कर चंडीगढ़ तथा वहां से हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विशेष विमान चौपर पर सवार होकर हमीरपुर पहुंचे थे। शीतल विज इस बात से परेशान रहे होंगे कि उनके पुत्र व गौरव कपूर के साथ-साथ जाने के साधारण से मामले को मीडिया अपनी ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ वाली नज़र से न देख ले। जो कि बाद में हुआ भी।

उधर न्यूज़ चैनलों की फायरिंग बदस्तूर जारी थी। मीडिया हिमाचल पुलिस के अधिकारियों से जेम्स बांड जैसी आशा लगाए हर पांच मिनट बाद कैमरा व माईक ऑन करके सवाल पर सवाल दाग रहा था। मज़ेदार बात ये थी कि 28 जुलाई को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बुलेटन में वन टू टैन गौरव कपूर ही था। उसके बाद स्टार न्यूज़ ने करीब दस बजे बाबा रामदेव को ‘पेश’ किया। बाबा ने ‘रहस्योदघाटन’ किया कि गौरव के साथ उन्होंने ‘पूछताछ’ की है जिसमें गौरव कपूर ने ‘कबूल’ किया है कि वो  घर की किसी ‘मजबूरी’ के चलते आतंकवादियों के साथ ‘मिला हुआ’ है व उनकी हत्या में सहभागिता करके योग के प्रचार प्रसार को रोकने के लिए बाकायदा किसी आतंकवादी संगठन के ‘पे-रोल’ पर है। इस बात के प्रसारित होते ही तूफ़ान खड़ा हो गया। जो पुलिस ने नहीं उगला, वो बाबा रामदेव के मुंह से कहलवा कर न्यूज़ चैनल्ज़ के रिपोर्टरों में मानो एक ‘उत्साह’ का ‘संचार’ हो चुका था। इस ख़बर का असर जालंधर शहर में तो बेहद नकारात्मक हुआ। शीतल विज ने मुझे हिदायत दी कि गौरव के साथ समाचारपत्र के संबंधों को लेकर किसी न्यूज़ चैनल वाले को कोई टिप्पणी न दूं। जब उनकी हिदायत आ रही थी तब मैं आजतक पर उनका फ़ोन सुन रहा था जिसमें उन्होंने बहुत भोले बनते हुए कहा ‘दिव्य टाइम्स के वे प्रकाशक ज़रूर हैं पर कार्यकारी संपादक अर्जुन शर्मा को रिपोर्टरों की नियुक्ति का अधिकार है, इसलिए वही बता सकते हैं कि गौरव कपूर किन परिस्थितियों में हमारे अख़बार के साथ बावस्ता है। वैसे उन्हें जहां तक पता है, उस हिसाब से गौरव का दिव्य टाइम्स के साथ कोई सीधा संबंध नहीं है, वो कुछ प्रेस नोट लेकर कभी कभार आ जाया करता है।’

तभी न्यूज़ चैनलों की अगली ‘ब्रेकिंग’ न्यूज़ थी, ‘गौरव के पास आई.बी (इंटैलीजेंस ब्यूरो) का फ़र्ज़ी परिचय पत्र भी मिला है जिसमें उसने खुद को सब-इंस्पैक्टर ज़ाहिर किया है जबकि उसे ये ‘फ़र्ज़ी’ आई कार्ड बनाते समय शायद पता नहीं होगा कि आई.बी में सब इंस्पैक्टर का पद ही नहीं होता।’ इस नए ‘इंकशाफ’ ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ न्यूज़ चैनलों पर गौरव व किसी आतंकवादी संगठन के मुखिया की दिल्ली में हुई ‘मुलाक़ात’ के ‘ब्यौरे’ बताए जा रहे थे तो कहीं जालंधर पुलिस द्वारा गौरव के घर में आई.बी की नकली मोहरों को ढूंढ़ने की ख़बरें न्यूज़ स्ट्रिप्स पर चल रहीं थी। मानो उस दिन देश के सभी बड़े राजनेता व अपराधी सामूहिक छुट्टी पर चले गए हों। गौरव कपूर देश के प्रधानमंत्री की कवरेज पर भी भारी पड़ रहा था। (बाद में आई.बी वाले परिचय पत्र की हक़ीक़त ये निकली कि गौरव के पास पथिक संदेश नामक अख़बार का परिचय पत्र बरामद हुआ था जिसकी पीठ पर लिखा था- रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज़पेपर सोसायटी, इन्फरमेशन (आई) एंड ब्रॉडकास्टिंग (बी) मिनिस्टरी से पंजीकृत) उस उथल-पुथल भरे दौर में जिस व्यक्ति ने सबसे पहले इस सच्चाई को परखा, वो थे हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह। उन्होंने 28 मई को बाद दोपहर तक कह दिया था कि इस मामले को मीडिया बिना वजह ही उछाल कर मसाला पत्रकारिता कर रहा है, असल में गौरव कपूर कोई आतंकवादी नहीं है बल्कि एक पत्रकार है। पर ये बाईट केवल एक चैनल ने चलाई और वो भी एक ही बार, वो भी लाईव के चक्कर में एयर पर आ गई। उसके बाद उस प्रदेश के मुख्यमंत्री की इस महत्वपूर्ण बाईट को इसलिए ज़्यादा भाव नहीं दिया गया क्योंकि मुख्यमंत्री का बयान सारे ‘सनसनीखेज़ खुलासों’ की हवा निकालने के लिए काफ़ी था।

इधर न्यूज़ चैनल वालों ने हमारा दफ़्तर घेरा हुआ था। मंदिर परिसर में स्थित दफ़्तर में बैठा सारा स्टाफ थर्राया हुआ था। सभी की नज़रें टीवी पर थी। तभी मंदिर परिसर में स्थित देवी तालाब मंदिर चैरीटेबल अस्पताल के आसपास के चित्र दिखाई देने लगे। ये अस्पताल उत्तर भारत के समस्त चैरीटेबल अस्पतालों में उपकरणों, मशीनों व सुविधाओं के मामले में सबसे अधिक हाईटैक है। अस्पताल के बीच की गली हमारे दफ़्तर के रास्ते के साथ जुड़ी हुई है। अस्पताल के चित्र दिखाते-दिखाते फोकस एक नीले रंग की कार पर हुआ जो हिमाचल के नंबर की नेम प्लेट वाली थी। उदघोषक अंदाज़ा लगा रहे थे कि हो न हो इस गाड़ी में हिमाचल पुलिस दिव्य टाइम्स के दफ़्तर में छापेमारी करने के लिए आई है। उस कार की फुटेज लेने के लिए धक्का मुक्की करते रिपोर्टर लोग भी दिखाई दे रहे थे। बाद में पता चला कि उस गाड़ी में कोई सज्जन अपने परिवार सहित अस्पताल में दाखिल किसी रिश्तेदार की मिज़ाजपुर्सी के लिए आए थे।

उसके बाद सारा सीन बदल गया। ज़ी न्यूज़ ने ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ दी कि गौरव कपूर सचमुच पत्रकार ही है। इस ‘स्कूप’ के लिए ढूंढ़ा गया ‘सबूत’ दिव्य टाईम्स की उस दिन की अख़बार में छपी वो ख़बरें थीं जो बाबा रामदेव के कैंप व अन्य गतिविधियों की थीं जो गौरव कपूर की बाईलाईन के साथ छपी हुई थी। इसके अलावा गौरव कपूर व बाबा रामदेव की गुरू-चेला वाली मुद्रा में फोटो भी ‘तलाश’ कर ली गई। वैसी तस्वीरें सारे जालंधर के प्रेस फोटोग्राफरों ने लगातार सात दिन तक खींची थी। हर कोई बाबा के साथ फोटो खिंचवाने का शौक़ रखता था जिनमें गौरव ने भी वैसी फोटो खिंचवाई हुई थी।

 उसके बाद उन क्लिपिंग्स व फोटो के प्रचार का सिलसिला शुरू हुआ। चैनल वालों ने ये सब परोस कर ‘विश्‍लेषण’ शुरू किया व पिछले तीन दिनों में किस ने क्या कहा था? उसका अर्थ निकालने में लगे रहे। तब तक गौरव कपूर की ज़मानत हो गई व वो जालंधर आ गया। बस चैनल किसी दूसरी दिशा की तरफ मुड़ गए। किसी ने गौरव की रिहाई का समाचार भी बताना गवारा न समझा। उसके बाद कभी भी हमीरपुर पुलिस ने गौरव को तलब नहीं किया तथा उस ‘आतंकवादी’ को किसी अख़बार ने भी काम नहीं दिया। अपने नाना के साथ एक साल तक जालंधर की कचहरियों में अष्‍टाम बेचता रहा गौरव जब किसी टीवी प्रेमी की नज़र में आता तो वे हैरानी से कहते, ‘क्या ये वही गौरव है जो कई दिन तक टीवी पर छाया रहा था?’ आजकल गौरव किसी चैनल के रिपोर्टर के साथ लाईटमैन का काम कर रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन शर्मा के संस्मरणों पर आधारित प्रस्तावित पुस्तक सफर के अनुभव से विशेष अंश)

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